नई दिल्ली। पवनपुत्र हनुमान इन दिनों चर्चा में हैं। दरअसल गुरूवार को खबर थी कि भगवान हनुमान के नाम आधार कार्ड जारी हुआ है, जिस पर बकायदा उनके पिता का नाम पवन लिखा गया है। अब खबर है कि श्रीलंका के जंगलों में हनुमान जी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। रामायण काल में जन्में हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि वे अमर हैं और सैकड़ों साल बाद महाभारत काल में भी जिंदा थे। कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई से पहले हनुमान जी पांडवों से मिले थे।
अब इस डिजिटल युग में भी हनुमान जी के जीवित होने के संकेत मिले हैं। दरअसल न्यू इंडिया एक्सप्रेस नाम के एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऎसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे हनुमान जी मिलने आते हैं। अखबार ने यह सनसनीखेज खुलासा इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले संगठन "सेतु" के हवाले से किया है।
खबर के मुताबिक हनुमान जी इस साल हाल ही इस जनजाति के लोगों से मिलने आए थे। इसके बाद अब वे 41 साल बाद यानी कि 2055 में आएंगे। इन लोगों को "मातंग" नाम से जाना जाता है और इनकी तादाद काफी कम है। सेतु के मुताबिक इस कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।
हनुमान जी को वरदान था कि उनकी कभी मृत्यु नहीं होगी। भगवान राम के स्वर्ग सिधारने के बाद हनुमान जी अयोध्या से दक्षिण भारत के जंगलों में लौट गए थे। उसके बाद वे श्रीलंका के जंगलों में गए जहां इस कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की। हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध करवाया और वादा किया कि हर 41 साल बाद वे इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे।
बताया जाता है कि हनुमान जी इस कबीले के साथ रहते हैं, कबीले का मुखिया हर बातचीत और घटना को एक लॉग बुक में दर्ज करता है। सेतु इसी लॉग बुक का अध्ययन कर रहा है। सेतु ने इस किताब का पहला पाठ अपनी वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सेतु डॉट एशिया पर पोस्ट किया है। इसी के जरिए यह खुलासा हुआ है कि हनुमान जी ने इस जंगल में आखिरी दिन 27 मई 2014 को बिताया था। -
खबर के मुताबिक हनुमान जी इस साल हाल ही इस जनजाति के लोगों से मिलने आए थे। इसके बाद अब वे 41 साल बाद यानी कि 2055 में आएंगे। इन लोगों को "मातंग" नाम से जाना जाता है और इनकी तादाद काफी कम है। सेतु के मुताबिक इस कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।
हनुमान जी को वरदान था कि उनकी कभी मृत्यु नहीं होगी। भगवान राम के स्वर्ग सिधारने के बाद हनुमान जी अयोध्या से दक्षिण भारत के जंगलों में लौट गए थे। उसके बाद वे श्रीलंका के जंगलों में गए जहां इस कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की। हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध करवाया और वादा किया कि हर 41 साल बाद वे इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे।
बताया जाता है कि हनुमान जी इस कबीले के साथ रहते हैं, कबीले का मुखिया हर बातचीत और घटना को एक लॉग बुक में दर्ज करता है। सेतु इसी लॉग बुक का अध्ययन कर रहा है। सेतु ने इस किताब का पहला पाठ अपनी वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सेतु डॉट एशिया पर पोस्ट किया है। इसी के जरिए यह खुलासा हुआ है कि हनुमान जी ने इस जंगल में आखिरी दिन 27 मई 2014 को बिताया था। -
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