बुधवार, 27 अगस्त 2014

अष्टटविनायक मंदिर: पौराणिक और धार्मिक महत्व

अष्टविनायक यात्रा में आठ गणेश मंदिरों की तीर्थयात्रा को महाराष्ट्र में महत्वपूर्ण माना जाता है।

तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं।

धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए। यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिए। पूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है।

पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्रीगणेश विभिन्न रूपों मे अवतरित होंगे।

Ashtavinayak A tour of eight abodes of Lord Ganesha


कृतयुग में विनायक, त्रेता युग में मयूरेश्वर, द्वापर युग में गजानन व धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे। भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं। दैत्य प्रवृतियों के उन्मूलन हेतु ये ईश्वरीय अवतार हैं।

मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास बताता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमाएं स्वयंभू हैं अर्थात यह स्वयं प्रकट हुई हैं और इनका स्वरूप प्राकृतिक माना गया है। अष्टविनायक की यात्रा से आध्यात्मिक सुख, आनंद की प्राति होती है। अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है-

1. मोरेश्वर मंदिर मोरगाव, जिला पुणेे
2. सिद्धिविनायक मंदिर सिद्धटेक, जिला अहमदनगर
3. बल्लालेश्वर मंदिर पाली, जिला रायगढ़
4. वरदविनायक मंदिर महाड, जिला रायगढ़
5. चिंतामणि मंदिर थेऊर, जिला पुणे
6. गिरिजात्मज मंदिर लेण्याद्री, जिला पुणे,
7. विघ्नहर मंदिर ओझर, जिला पुणे
8. महागणपति मंदिर रांजणगांव, जिला पुणे

इन आठ पवित्र तीर्थ में 6 पुणे में हैं और 2 रायगढ़ जिले में हैं। सबसे पहले मोरेगांव के मोरेश्वर की यात्रा करनी चाहिए और उसके बाद क्रम में सिद्धटेक, पाली, महाड, थियूर, लेनानडरी, ओजर, रांजणगांव और उसके बाद फिर से मोरेगांव अष्टविनायक मंदिर में यात्रा समाप्त करनी चाहिए।

 

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