शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

श्री क्षत्रिय युवक संघ कार्य करने हेतु प्रेरणा कार्यक्रम का आयोजन

श्री क्षत्रिय युवक संघ कार्य करने हेतु प्रेरणा कार्यक्रम का आयोजन 
 

बाड़मेर ! भारतीय ग्राम्य अलोकामन गेंहू रोड बाड़मेर में आयोजित बाड़मेर,शिव,बालोतरा, धोरीमना, सिवाना क्षेत्र के आंमत्रित स्वय सेवकोव् क्षत्रिय युवक संघ के कार्यकर्ताओ को संघ कार्य करने हेतु प्रेरणा कार्यक्रम में उपस्थित कार्यक्रताओ को सम्बोधित करते हुए संघ प्रमुख श्री भगवानसिंह रोलसाहबसर ने कहा की पूर्व जन्म के पुण्य कर्मो व् ईश्वरीय कृपा से हमने राजपूत के घर जन्म लिया ! इस राजपूत जीवन को क्षत्रिय जीवन बनाना हे हमें क्षत्रिय बनना हे सामान्यता लोग राजपूत व क्षत्रिय को एक ही मानते हे तो क्षत्रिय कर्म से हम क्षत्रिय कैसे बने यह जीवन दरहसँ 1946 में पूज्य तनसिंह जी ने क्षत्रिय युवक संघ रूपी सामूहिक संस्कार मई कर्म प्रणाली दी ! इस संस्कार मयी कर्मप्रणाली का ध्येय हे क्षात्र धर्म पालन क्षात्र धर्म पालन के बड़े आसान व सहज तरीके हमें दिए हे वो हे संघ कार्य करना ! संघ कार्य में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष जिससे संस्कार निर्माण कार्य सर्वाधिक उपयुक्त व प्रतिदिन संघ का स्मरण करने वाला कार्य हे क्षत्रिय युवक संघ की दैनिकशाखा के संघ कार्य के माध्यम से ईश्वरीय कार्योन्मुख होते हे उन्होंने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा की क्षात्र धर्म पालन मात्र राजपूतो के लिए ही नही इस पृथ्वी पर क्षात्र धर्म की पुनस्थार्पणा होगी !
हम सभी संघ से कई वर्षो से जुड़े हे संघ से परिचित हे संघ हमें अपना मानता हे पर आवश्यकता हे हमें संघ को अपना मने संघ की पीड़ा हमारी पीड़ा हो जाये क्योकि संघ की पीड़ा प्राणी मात्र की पीड़ा व ईश्वर की चाह हे अतः यदि ईश्वर की तरफ कदम बढ़ाना हे तो सेवा व कर्म करना पड़ेगा और वो कर्म हे क्षत्रिय युवक संघ की शाखा शिविर साहित्य अध्ययन साहित्य रचना आदि इन सभी के माध्यम से हम संघ से बने जुड़ाव को सतत एवं स्थयी बना सकते हे संघ चाहता हे की पूरा विश्व क्षत्रिय बन जाय तो इससे पूरी पृथ्वी किसी प्रकार की आराजकता नही रहेगी !और व्ही हे क्षत्रिय राज्य व्यवस्था जिसे 'राम राज्य' की संज्ञा दी गई हे !
अतः आज इस अवसर पर आहवन करना चाहूंगा की अपने भीतर ऐसी लगन लगा दो, अगन जला दो जो आपको बेचन कर दे संघ कार्य किये बगैर चेन व राहत की अनुभूति ही ना हो ! समय प्रतिकूल हे परिस्थितियों विपरीत हे घर परिवार व् परिवेश सभी हमारी साधना को अधोगामी बनाती हे अधोगमन पतन का मार्ग हे सरल हे पर ऊध्र्वगामी साधना कष्टदायक हे पर इसी से लक्ष्य की तरफ बढ़ा जा सकता हे प्रतिकूल प्रवाह में भी अपनी रह न भटके व्ही क्षत्रिय हे और हमें भी क्षत्रिय बनना हे ! इस अवसर पर देवीसिंह जी माडपुरा,रामसिंहजी माडपुरा, पदमसिंहजी, प्रकाशसिंहजी, स्वरूपसिंहजी, चन्दनसिंहजी,प्रेमसिंहजी,कंवराजसिंह रानीगाँव,महिपालसिंह चूली, मूलसिंह जी काठाडी, सोहनसिंह ,गोविंदसिंह, किशनसिंह चूली, आदि सहित लगभग 200 स्वयसेवक कार्यकर्ता उपस्थित रहे !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें