प्राचीन सोने के भंडार की खोज करने के लिए लोग अपना जीवन लगा देते हैं लेकिन फिर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगता।
कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन यह सभी जानते हैं कि सोने के यह अपार भंडार धरती के इतने अंदर समाए होते हैं कि वहां तक पहुंचना किसी भी इंसान के लिए नामुमकिन होता है।
ऎसा ही एक सोने का भंडार मौर्य साम्राज्य के प्रतापी राजा बिंबसार का हुआ करता था जो कि बिहार के नालंदा जिले के राजगिर शहर की अंधेरी गुफाओं में दफन है। इन गुफाओं को सोन भंडार गुफाओं का नाम दिया गया है।
प्राचीन समय में यह मगध की राजधानी थी। यही पर भगवान बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। यह शहर बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
इस गुफा के पास उस जेल के अवशेष है जहां पर बिम्बिसार को उनके पुत्र अजातशत्रु ने बंदी बना कर रखा था।
लेकिन यह भी सच है कि इस बेशकीमती खजाने को आज तक कोई नहीं खोज पाया है।
चट्टानों को काटकर बनाई गई सोन भंडार गुफा
सोन भण्डार गुफा मे प्रवेश करते हि 10 . 4 मीटर लम्बा, 5 . 2 मीटर चोडा तथा 1 . 5 मीटर ऊंचा एक कक्ष आता है, इस कमरा खजाने कि रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए था।
इसी कमरे कि पिछली दीवार से खजाने तक पहूंचने का रास्ता जाता है। इस रास्ते का प्रवेश द्वार पत्थर कि एक बहुत बडी चट्टान नुमा दरवाजे से बन्द किया हुआ है। इस दरवाजे को आज तक कोई नही खोल पाया है।
गुफा कि दीवार पर लिखी जानकारी
कुछ लोगो का यह भी मानना है कि खजाने तक पहुचने का यह रास्ता वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओ तक जाता है, जो कि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ तक पहुँचती है।
अंग्रजों ने एक बार तोप से इस चट्टान को तोड़ने कि कोशिश कि थीं लेकिन वो इसे तोड़ नही पाये। तोप के गोले का निशान आज भी चट्टान पर मौजुद है।
गुफा की एक दीवार पर शंख लिपि मे कुछ लिखा है जो कि आज तक पढ़ा नही जा सका है। कहा जाता है की इसमें ही इस दरवाजे को खोलने का तरीका लिखा है। -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें