मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का लवकुश नगर माता सीता की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है और यहां के पहाड़ पर स्थित एक विशाल चट्टान पर प्रगट हुए एक नन्हें कुंड का रहस्य आज भी बरकरार है।
विशाल चट्टान पर प्रगट हुआ यह कुण्ड पहले बिबरबैनी फिर कालांतर में बंबरबैनी के रूप में विख्यात यह घार्मिक स्थल अपने आप आगोस में अनेक रहस्य समेटें हुए है। विशाल पहाडी पर स्थित शिलाओं के अवशेष आज भी सीता पुत्र लवकुश की शौर्य गाथा का बखान करते हैं और त्रेता युग के उन दिनों की याद आज भी ताजा करा देते हैं।
किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम द्वारा माता सीता का पत्यिाग करने के बाद माता सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम पर आकर रहीं। यहां लवकुश का जन्म लालन पालन बाल्मीकि जी की देखरेख में हुआ। श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को लवकुश द्वारा रोके जाने से महाराज शत्रुघ्न से उनका भीषण युद्ध हुआ तथा महाराज शत्रुघ्न को लवकुश के हाथों पराजय झेलनी पड़ी। सीता पुत्र लवकुश के नाम पर ही इस नगर का नाम लवकुश नगर रखा गया। बुंदेलखण्ड का यह लवकुश मंदिर आज भी आस्था का केंद्र है।
विशाल चट्टान पर प्रगट हुआ यह कुण्ड पहले बिबरबैनी फिर कालांतर में बंबरबैनी के रूप में विख्यात यह घार्मिक स्थल अपने आप आगोस में अनेक रहस्य समेटें हुए है। विशाल पहाडी पर स्थित शिलाओं के अवशेष आज भी सीता पुत्र लवकुश की शौर्य गाथा का बखान करते हैं और त्रेता युग के उन दिनों की याद आज भी ताजा करा देते हैं।
किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम द्वारा माता सीता का पत्यिाग करने के बाद माता सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम पर आकर रहीं। यहां लवकुश का जन्म लालन पालन बाल्मीकि जी की देखरेख में हुआ। श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को लवकुश द्वारा रोके जाने से महाराज शत्रुघ्न से उनका भीषण युद्ध हुआ तथा महाराज शत्रुघ्न को लवकुश के हाथों पराजय झेलनी पड़ी। सीता पुत्र लवकुश के नाम पर ही इस नगर का नाम लवकुश नगर रखा गया। बुंदेलखण्ड का यह लवकुश मंदिर आज भी आस्था का केंद्र है।
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