गुरुवार, 3 जुलाई 2014

आज है राजकुमार की पुण्य तिथि: दमदार संवादों से जीता था दर्शकों का दिल -


मुंबई। हिन्दी सिनेमा जगत में यूं तो अपने दमदार अभिनय से कई सितारों ने दर्शकों के दिलो पर राज किया लेकिन एक ऎसा भी सितारा हुआ जिसने न सिर्फ दर्शकों के दिल पर राज किया बल्कि फिल्म इंडस्ट्री ने भी उन्हें "राजकुमार" माना। वह थे संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ "राजकुमार"।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 8 अक्टूबर 1926 को जन्मे राजकुमार स्नातक करने के बाद वह मुंबई के माहिम पुलिस स्टेशन में सब इंस्पेकटर के रूप में काम करने लगे। यहीं उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता बलदेव दुबे से हुई।

वह राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने राजकुमार से अपनी फिल्म "शाही बाजार" में अभिनेता के रूप में काम करने की पेशकश की। वर्ष 1952 मे प्रदर्शित फिल्म "रंगीली" में एक छोटी सी भूमिका कर ली। यह फिल्म सिनेमा घरो में कब लगी और कब चली गयी। इसके बाद फिल्म शाही बाजार भी प्रदर्शित हुई। इसके बाद वह कई फिल्मों में दिखाई दिए।

महबूब खान की वर्ष 1957 मे प्रदर्शित फिल्म "मदर इंडिया" में राजकुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। फिर भी वह अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फिल्म की सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।

वर्ष 1959 मे प्रदर्शित फिल्म "पैगाम" में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राज कुमार ने यहां भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद दिल अपना और प्रीत पराई, घराना, गोदान, दिल एक मंदिर और दूज का चांद जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए उन्होंने दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमा दी।

बी. आर. चोपड़ा की फिल्म वक्त में राजकुमार का बोला गया एक संवाद "चिनाय सेठ" जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते, दर्शकों के बीच क ाफी लोकप्रिय हुए। इसी तरह पाकीजा में उनका बोला गया एक संवाद "आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जायेगें" इस कदर लोक प्रिय हुआ कि लोग गाहे बगाहे उनकी आवाज की नकल करने लगे।

उन्होंने हमराज, नीलकमल, मेरे हुजूर, हीर रांझा और पाकीजा जैसी फिल्मों में रूमानी भूमिकाएं भी स्वीकार कीं और दर्शकों की वाहवाही लूटी। वर्ष 1978 मे प्रदर्शित फिल्म "कर्मयोगी" में राज कुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म मे उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं मे अपने अभिनय की छाप छोड़ी।

वर्ष 1991 में सुभाष घई की फिल्म सौदागर में राज कुमार वर्ष 1959 मे प्रदर्शित फिल्म "पैगाम" के बाद दूसरी बार दिलीप कुमार के सामने थे और अभिनय की दुनिया के इन दोनों महारथियों का टकराव देखने लायक था। नब्बे के दशक में राजकुमार ने फिल्मों मे काम करना काफी कमकर दिया। इस दौरान उनकी तिरंगा, पुलिस और मुजिरम, इ ंसानियत के देवता, बेताज बादशाह, जवाब, गाड और गन जैसी फिल्में प्रदर्शित हुई।

नितांत अकेले रहने वाले राजकुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफी करीब है, इसीलिए अपने पुत्र पुरू राजकुमार को उन्होंने अपने पास बुला लिया और कहा कि देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना।

मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फिल्म उद्योग को सूचित करना। अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिलपर राज करने वाले महान अभिनेता राजकुमार आज ही के दिन 3 जुलाई 1996 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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