सोमवार, 2 जून 2014

आणंद : किराए की कोख का गढ़



दुग्ध क्रांति की वजह से देश की ‘दुग्ध राजधानी’ के रूप में मशहूर गुजरात का आणंद शहर इन दिनों एक और वजह से सुर्खियों में है। इन दिनों पश्चिम भारत का यह शहर दुनिया भर के नि:संतान दम्पत्तियों को किराए की कोख की मदद से माता-पिता बनने में मदद कर रहा है।

आणंद : किराए की कोख का गढ़ शहर को किराए की कोख यानी सरोगेसी के लिए दुनिया भर में मशहूर करने का श्रेय आकांक्षा फर्टीलिटी क्लीनिक के मैडीकल डायरैक्टर डा. नयना पटेल तथा उनके पति हितेश को जाता है।

उनके क्लीनिक के बाहर बैठी एक अधेड़ महिला बताती हैं कि कैसे उनकी बेटी की शादी के 13 साल बाद भी उसे मां बनने का सुख नसीब नहीं हो सका। एक बार उसका गर्भपात हो चुका है और अब वह तथा उसका पति डा.नयना के पास आए हैं। इसी तरह की उम्मीद लेकर भारत ही नहीं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान तथा हांगकांग से लोग 2 लाख की आबादी वाले इस शहर तक पहुंचते हैं। वे ऐसा बच्चा चाहते हैं जो बेशक किसी और की कोख से जन्म ले परंतु आनुवांशिक रूप से उनका हो।

यहां 9 महीने के लिए अपनी कोख किराए पर देने वाली अधिकतर युवा महिलाएं करीबी क्षेत्रों से हैं। आमतौर पर उनके पति रिक्शा चलाने, कपड़े बेचने, इलैक्ट्रीशियन, हीरा तराशने या दिहाड़ी जैसे काम करते हैं जिनकी आय से बमुश्किल परिवार का पेट भरता है।

क्लीनिक अपनी कोख किराए पर देने के बदले में करीब 6 लाख रुपए देती है जो उनके पतियों की कई साल की कमाई के बराबर है। डा. नयना के अनुसार ये महिलाएं आमतौर पर इस रकम का इस्तेमाल अपने बच्चों की शिक्षा या नया घर बनाने के लिए करती हैं।

वह कहती हैं, ‘‘जब उनका बच्चा अधिक फीस की वजह से अच्छे स्कूल में पढऩे नहीं जा पाता या मकान का कई महीने का किराया बकाया हो या उनका मकान गिरने की
हालत में हो तो वे यह त्याग करने को तैयार हो जाती हैं और इससे नि:संतान दम्पतियों को खुशी भी मिलती है।’’

क्लीनिक के प्रवेश द्वार पर प्लास्टिक की कुर्सियों की लम्बी कतार है। इनमें से चार पर गर्भावस्था के अंतिम महीनों में बैठी चार सरोगेट मांएं अपनी नियमित चिकित्सकीय जांच किए जाने की प्रतीक्षा कर रही हैं।

इनमें से 33 वर्षीय आशा दामोर एक कनाडाई दम्पति के जुड़वां बच्चों को जन्म देने वाली हैं जबकि अर्पिता क्रिश्चियन के पेट में एक अमेरिकी दम्पति का बच्चा है। क्लीनिक के करीब बने एक हॉस्टल में अन्य सैरोगेट मांओं के साथ रह रही आशा बताती हैं, ‘‘ये मेरे बच्चे नहीं हैं। ये उस दम्पत्ति के बच्चे हैं। हम रात चैन की नींद सोती हैं क्योंकि हमें पता है कि हम एक अच्छा काम कर रही हैं।’’

दूसरी बार अपनी कोख किराए पर दे रही 32 वर्षीय सलमा वोरा अपने बेटे को अच्छे कॉलेज में पढऩे के लिए भेजना चाहती हैं। अपने पहले सरोगेट गर्भधारण के बारे में वह बताती हैं, ‘‘मैं हर दिन उस बच्चे के बारे में सोचती हूं जो स्वाभाविक है परंतु जब मैं अपने परिवार के पास होती हूं तो मुझे उसकी याद नहीं आती।’’

एक डॉक्टर के अनुसार यही वजह है कि सरोगेट मां के अपने बच्चे होना जरूरी है। सरोगेट मां बनने के लिए अन्य अनिवार्यताओं में महिला को यौन संक्रमित रोग न होना, उसके पति की सहमति तथा बच्चे के जन्म के बाद उस पर किसी तरह का हक न जताने का करार शामिल है। डॉक्टरों के अनुसार गर्भावस्था में कोई जटिलता आने पर गर्भपात कर दिया जाता है। इस वक्त क्लीनिक के निकट लिए मकानों में 85 सरोगेट मांएं रह रही हैं। इन महिलाओं को कम से कम 9 महीने तक अपने परिवार से दूर रहना होता है ताकि उन्हें गहन चिकित्सकीय निगरानी में रखा जा सके। नाश्ते से लेकर रात को सो जाने तक इनका पूरा ख्याल रखा जाता है। दिन के दौरान वे सिलाई-कढ़ाई, खाना -पकाना तथा अंग्रेजी पढऩे जैसे कौशल सीखती हैं। हॉस्टल में दो माह की गर्भवती प्रीति ढाबी के अनुसार वहां उनके बच्चे तथा पति उनसे मिलने आ सकते हैं।

धर्मिष्ठाबेन नामक एक महिला बताती हैं, ‘‘हम यहां अच्छे से हैं। यहां रहने का यह फायदा भी है कि अपनी कोख किराए पर देने के बारे में गांव में किसी को पता नहीं चलेगा।’’

देश में सरोगेट गर्भधारण वैध है परंतु आज भी समाज इसे स्वीकार नहीं करता। इसके बावजूद यह व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है। देश भर में स्थित लगभग 3 हजार अस्पताल हर साल करोड़ों-अरबों रुपयों की कमाई कर रहे हैं। इन आंकड़ों से जाहिर है कि भारत को दुनिया भर में किराए की कोख के लिए सबसे अधिक पसंद किया जा रहा है। गत वर्ष ही इस संबंध में कानून सख्त किए गए हैं जिनके तहत अब समलैंगिक या अविवाहित जोड़े भारतीय सरोगेट मांओं से बच्चे हासिल नहीं कर सकते हैं।

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