जैसलमेर, साहित्यकार लक्ष्मीनारायण खत्री के जुनून से संग्रहित और तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. के.के.पाठक द्वारा लोर्कापित ‘‘ दी थार हैरिटेज ‘‘ म्यूजियम को इग्लैण्ड ,फ्रान्स ,आस्ट्रेलिया से प्रकाशित ‘‘ ट्रेवल्स -बुकस ‘‘ में इसे बहुआयामी लोकसंस्कृति के एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल के रुप में मान्यता प्राप्त की गई हैं। इससे संग्रहालय को अर्न्तराष्ट्रीय ख्याति मिलने की जबरदस्त कामयाबी हासिल हुई हैं।
मरु प्रदेश के प्राचीन लोककला एवं संस्कृति में गहन अभिरुचि रखने वाले विश्व के अनेक विद्यार्थी ,शौधार्थी एवं कला अनुरागी पर्यटक संग्रहालय में प्रदर्शित दुर्लभ वस्तुओं का अध्य्यन एवं दर्शन का लाभ ले रहे हैं।
उल्लेखनीय हैं कि हाल ही में फ्रांस से प्रकाशित ‘‘ली गिद रोताज ‘‘ ने अनुशंषा करते हुए पृष्ठ संख्या ६४६ पर लेख में लिखा हैं कि थार म्यूजियम में लोकसंगीत के वाद्ययंत्रों , लोक चित्रों , पाण्डुलिपियों , फोटूओं इत्यादि का संग्रहण दर्शनीय हैं।
मरु प्रदेश के प्राचीन लोककला एवं संस्कृति में गहन अभिरुचि रखने वाले विश्व के अनेक विद्यार्थी ,शौधार्थी एवं कला अनुरागी पर्यटक संग्रहालय में प्रदर्शित दुर्लभ वस्तुओं का अध्य्यन एवं दर्शन का लाभ ले रहे हैं।
उल्लेखनीय हैं कि हाल ही में फ्रांस से प्रकाशित ‘‘ली गिद रोताज ‘‘ ने अनुशंषा करते हुए पृष्ठ संख्या ६४६ पर लेख में लिखा हैं कि थार म्यूजियम में लोकसंगीत के वाद्ययंत्रों , लोक चित्रों , पाण्डुलिपियों , फोटूओं इत्यादि का संग्रहण दर्शनीय हैं।
विश्व में भारत के बारे में सर्वाधिक पढी जाने वाली लोनली प्लेनेट ने पृष्ठ संख्या १८७ पर उल्लेखित किया हैं कि थार म्यूजियम में ऐतिहासिक जैसलमेर क्षेत्र की उत्कृष्ठ कलाओं का अनूठा खजाना विद्यमान ह। संग्रहालय में लोक कलाविद् ,इतिहासकार लक्ष्मीनारायण खत्री स्वयं मार्गदर्शन कर संग्रह को जीवंत बना देते हैं।
इसी प्रकार लन्दन से प्रकाशित ‘‘ रफ गाइड ‘‘ पृष्ठ क्रमांक २८९ पर जिक्र किया हैं कि मरु प्रदेश के रीति-रिवाज ,इतिहास ,लोकवाद्य एवं समुद्री जीवाश्म आदि का संग्रह दर्शनीय है। भारत के पर्यटन स्थलों के बारे में फ्रंास में छपी पुस्तक ‘‘पुंती पुते ‘‘में पृष्ठ संख्या २३१ पर उल्लेख कर जोरदार तारीफ में लिखा हैं कि यहां ऊँटों का श्रृंगार , गहने ,रसौई के बर्तन आदि के अलावा सैकडों कलात्मक वस्तुएँ हैं। जिनको देखने से रेगिस्तान की संस्कृति और इतिहास का ज्ञान होता हैं। इसके साथ ही फ्रैंन्च बुक ‘‘ गीद ब्लू ‘‘ ,अमेरिकन ‘‘ लेट्स-गो ‘‘ लाखों लोगों द्वारा देखी जाने वाली वेबसाईट आदि तमाम टूरिज्म एवं कला जगत के पुरोधाओं ने इसे देखने की अनुशंषा प्रदान की हैं।
इसी प्रकार लन्दन से प्रकाशित ‘‘ रफ गाइड ‘‘ पृष्ठ क्रमांक २८९ पर जिक्र किया हैं कि मरु प्रदेश के रीति-रिवाज ,इतिहास ,लोकवाद्य एवं समुद्री जीवाश्म आदि का संग्रह दर्शनीय है। भारत के पर्यटन स्थलों के बारे में फ्रंास में छपी पुस्तक ‘‘पुंती पुते ‘‘में पृष्ठ संख्या २३१ पर उल्लेख कर जोरदार तारीफ में लिखा हैं कि यहां ऊँटों का श्रृंगार , गहने ,रसौई के बर्तन आदि के अलावा सैकडों कलात्मक वस्तुएँ हैं। जिनको देखने से रेगिस्तान की संस्कृति और इतिहास का ज्ञान होता हैं। इसके साथ ही फ्रैंन्च बुक ‘‘ गीद ब्लू ‘‘ ,अमेरिकन ‘‘ लेट्स-गो ‘‘ लाखों लोगों द्वारा देखी जाने वाली वेबसाईट आदि तमाम टूरिज्म एवं कला जगत के पुरोधाओं ने इसे देखने की अनुशंषा प्रदान की हैं।
गौरतलब हैं कि इस संग्रहालय में पश्चिमी राजस्थान के दैनिक लोकजीवन , ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि , शिल्प सौंदर्य ,अद्भूत स्थापत्य कला से संबंधित सैकडों विलुप्त हो रही संस्कृति से संबंधित वस्तुओं का संकलन है। लक्ष्मीनारायण खत्री के एकल प्रयास से निर्मित इस संग्रह में रियासतकालीन राजाओं और ठाकुरों के चित्रों , जैसलमेर शैली की पेटिंग ,महिला-पुरुषों के वस्त्राभूषण , ऊँट व घोडे के श्रृंगार की कशीदाकारी ,देशी घी संग्रहण की चीपों , मिट्टी और गौबर से निर्मित कोठार ,रसौई में उपयोग लिये जाने वाले पीतल के बर्तन ,हस्त निर्मित लोहे के पुराने ताले , राजशाही सिक्के , भाटी राजपूतों के धारदार हथियारों के अलावा ग्राम्यसंस्कृति से सम्बन्घित बेमिसाल संग्रह हैं।
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