गुरुवार, 12 जून 2014

बहुत याद आते हैं गजल सम्राट मेहदी हसन

मौहव्बत करने वाले कम न होंगे तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे। मेहंदी हसन की गायी यह प्रसिद्ध गजल आज हकीकत बन गयी है। पाकिस्तान के कराची शहर मे पूरी दुनियां में अपने चाहने वालों को 13 जून 2012 को अलविदा कहते हुए मेहंदी हसन इस दुनिया से रूखसत हो गए। आज उनकी गायी हुई गजलें ही हम सब के जहन में जिंदा है।
Miss the ghazal king Mehdi Hassan on his death anniversary 
दिल को छू जाने वाली सुरीली आवाज के धनी हसन साहब का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को हुआ।

हसन साहब को आज जैसे पाकिस्तान में याद करते है उसी प्रकार से लूणा के लोग भी याद करते है। हसन साहब मादरे वतन के दीदार की ख्वाहिश दिल में लिए ही दुनिया से रूखसत हो गए। मेहंदी हसन कहते थे कि बुलबुल ने गुल से, गुल ने बहारों से कह दिया, एक चौदहवीं के चांद ने तारों से कह दिया, दुनिया किसी के प्यार में जात से कम नहीं, एक दिलरूबा है दिल में, तो हुरों से कम नहीं।

उनके गले से निकले यह शब्द हर प्यार करने वाले की आवाज बन जाते हैं। उनकी गजलों ने जैसे लोगों के अन्दर का खालीपन पहचान कर बडी खूबी से उस खालीपन को भर दिया। न किसी की आंख का नूर हूं, न किसी की दिल का करार हूं, जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्ते गुबार हूं कहते, कहते मेहंदी हसन साहब एक बडी बात कह जाते हैं।

तन्हा-तन्हा मत सोचाकर, मर जाएगा मर जाएगा, मत सोचाकर..। उनके जाने के बाद हम कह देते हैं कि लो... अब हम नहीं सोचेंगे। पर आपने तो हमें जिन्दगी भर सोचने का सामान दे दिया। आज हसन साहब की पुण्य तिथि पर उनकी यादें उनके चाहने वालों की आंखें फिर गमगीन कर गई। 

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