मंगलवार, 13 मई 2014

पोकरण परमाणु परीक्षण- १३ मई १९९८ भारत ने विश्व में बनाई थी पहचान


पोकरण परमाणु परीक्षण- १३ मई १९९८ भारत ने विश्व में बनाई थी पहचान


  जैसलमेर



पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में खेतोलाई गांव के पास 11 व 13 मई को भारत की ओर से किए गए परमाणु परीक्षण की अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भनक तक नहीं लगी, जिसका उसे आज भी मलाल होगा। पूरे विश्व में परमाणु संयंत्रों पर सैन्य गतिविधियों पर सैटेलाइट से निगरानी करने वाला अमेरिका उस समय स्तब्ध रह गया जब भारतीय वैज्ञानिकों ने 11 मई व 13 मई को पोकरण में परमाणु परीक्षण किए। 1974 के बाद 11 मई 1998 को पोकरण में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो विश्व के सारे देश भारत के खिलाफ उठ खड़े हुए। अमेरिका सहित कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए लेकिन भारतीय सरकार पीछे नहीं हटी और 13 मई को फिर से परमाणु परीक्षण कर दिया।
उस समय डरे सहमे जिलेवास आज अपने आप पर गर्व करते हैं कि जैसलमेर जिले में परीक्षण करके भारत ने अपने आप को परमाणु शक्ति के रूप में विश्व के सामने रखा। यही नहीं 16 साल पहले का मंजर लोगों के जहन में आज भी ताजा है। खेतोलाई के पास फील्ड फायरिंग रेंज में हुए सिलसिलेवार परमाणु परीक्षण की गूंज ने देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
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 18 से 20 घंटे जवानों ने की मेहनत
परमाणु परीक्षण की तैयारियों को लेकर सेना के सभी अधिकारी व जवान लक्ष्य को लेकर मेहनत कर रहे थे। जानकार सूत्रों के अनुसार भारतीय सेना के जवानों ने इसकी तैयारी के दौरान 18 से 20 घंटे काम किया। एक जवान को उस दौरान बिच्छू ने भी काट लिया था लेकिन उसने परवाह किए बिना अपना काम जारी रखा। कई महीनों की मेहनत का नतीजा आखिरकार सफल रहा।
वैज्ञानिक भी सेना के ड्रेस में आते जाते
परमाणु हथियार तैयार करने वाले भारतीय वैज्ञानिक भी परीक्षण को लेकर कई महीनों तक जुटे रहे। यहां तक फील्ड फायरिंग रेंज में पहुंचने वाले वैज्ञानिक सेना के ड्रेस पहनकर सेना के ट्रकों में सवार होकर जाते। ताकि किसी को भनक तक न लगे।



लाफिंग बुद्धा था कोड वर्ड
जानकार सूत्रों के अनुसार सेना व रक्षा विशेषज्ञों ने 11 व 13 मई को किए गए परमाणु परीक्षा का कोड वर्ड लाफिंग बुद्धा रखा था।
परीक्षण सफल होने के बाद जब फोन पर दिल्ली में बैठे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाफिंग बुद्धा (बुद्ध मुस्कराया) के रूप में सफलता का संकेत दिया गया। पूरा कार्यक्रम इतना गुपचुप तरीके से हुआ कि सभी अत्याधुनिक सैटेलाइट तकनीकें धरी रह गई और भारत को बहुत बड़ी कामयाबी मिली।



खेतोलाई गांव खाली करवा दिया
खेतोलाई वासियों के अनुसार परमाणु परीक्षण से पहले उनके इलाके में सेना की गतिविधियां तेज हो गई थी। लेकिन ऐसा कई बार हो चुका था। खेतोलाई निवासी नाथूराम विश्नोई के अनुसार परमाणु परीक्षण से कुछ घंटे पहले गांव खाली करवा दिया और दीवारों व पेड़ों की ओट में खड़े रहने की हिदायतें सेना के अधिकारियों ने दी। उस समय लोगों को पता चल गया था कि कुछ न कुछ हो रहा है। वहीं इससे पूर्व भी प्याज आदि के ट्रक पहुंचने पर लोगों को भनक लग चुकी थी लेकिन देश हित में उन्होंने भी इसे चर्चा का विषय नहीं बनाया और खेतोलाई गांव से ये बातें बाहर तक नहीं निकली।
जैसलमेर व पोकरण का रास्ता रोक दिया गया
11 व 13 मई को हुए परमाणु परीक्षण से दो घंटे पहले तक जैसलमेर व पोकरण के बीच का रास्ता रोक दिया गया। जैसलमेर व पोकरण के बीच आने वाले गांवों व इस सड़क मार्ग पर किसी को आने जाने नहीं दिया। केवल सेना के वाहन ही आते जाते रहे। जैसे ही परमाणु परीक्षण हुआ जैसलमेर की धरती कांपने लगी और जिन्हें 1974 का परीक्षण देखा था वे समझ गए कि भारत ने एक बार फिर परमाणु परीक्षण किए हैं।



खेल गतिविधियों की आड़ में हुई तैयारी
 

देश की सरकार, वैज्ञानिकों व रक्षा विभाग ने तय कर लिया था कि परमाणु परीक्षण की भनक तक किसी को नहीं लगनी चाहिए। इसके लिए कई महीनों तक तैयारियां की गई। जानकार सूत्रों के अनुसार फील्ड फायरिंग रेंज में परमाणु परीक्षण से पहले रोजाना खेल गतिविधियां आयोजित की जाती। अमेरिका व अन्य देशों के सैटेलाइट की स्थिति को भांप कर काम किया जाता। जिस समय सैटेलाइट भारतीय सीमा में निगरानी करता उस समय खेल गतिविधियां की जाती और जिस समय सैटेलाइट की निगरानी नहीं होती उस समय खुदाई कार्य व अन्य संसाधनों की आवाजाही होती। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।

जैसलमेर. पोकरण फील्ड फायरिंग का परमाणु परीक्षण स्थल और परमाणु परीक्षण के अवशेषों को आज भी समेटे है शक्ति स्थल।
 सभी अत्याधुनिक सैटेलाइट तकनीकें धरी रह गई और भारत ने अपनी वैज्ञानिक शक्ति का पूरे विश्व में परचम लहरा दिया
 कई महीनों की मेहनत के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने एक के बाद एक परमाणु परीक्षण किए और किसी भी देश को इसकी भनक तक नहीं लगी

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