शनिवार, 3 मई 2014

मान्यता : यहां नि:संतान दंपतियों की गोद जरूर भर जाती है



समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर कीलांचल पर्वत (ऋष्यलकु पर्वत) की तलहटी में स्थित सती मां अनुसूया मंदिर निसंतान दंपतियों के लिए साक्षात् भगवती से मिलन का तीर्थ है। कहते हैं कि यहां तप करने वाले नि:संतान दंपती की गोद जरूर भरती है। यह मान्यता सदियों से चली आ रही है।

वैसे तो सालभर इस मंदिर के कपाट खुले रहते हैं, परंतु प्रत्येक वर्ष दिसंबर माह में दत्तात्रेय जयंती पर यहां दो दिन का विशाल मेला लगता है। चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 13 किलोमीटर सड़क मार्ग से मंडल पहुंचने के बाद पांच किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर कीलांचल पर्वत की तलहटी में होते हैं मां अनुसूया के दर्शन। इस मंदिर में एक शिला पर गणोश की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह में सती मां अनुसूया की मूर्ति चांदी के छत्रों से जड़ी हुई है। मंदिर प्रांगण में शिव, पार्वती, गणोश के अलावा सती मां अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय की त्रिमुखी प्रतिमा विराजमान है।

अनुसूया मंदिर के निकट ही महर्षि अत्रि की तपस्थली भी है। सती मां अनुसूया के बारे में कथा प्रचलित है कि इसी स्थान पर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने मां के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही तो मां अनुसूया ने तीनों देवों को बालक बनाकर अपना स्तनपान कराया। यहां बारी प्रथा से पूजा-अर्चना की परंपरा है। मंदिर में सुबह छह बजे स्नान, श्रृंगार, पूजा, 10 बजे रोट, आटे का चूरमा, मालपुआ का भोग और शाम सात से आठ बजे के बीच संध्या आरती संपन्न होती है।

अनुसूया मंदिर

कपाट खुलने का समय: वर्षभर खुले

रहते हैं मंदिर के कपाट।

मौसम: अप्रैल से सितंबर तक मौसम

गर्म, कभी-कभार बारिश, अक्टूबर से

मार्च तक बारिश एवं बर्फबारी।

पहनावा: अप्रैल से सितंबर तक हल्के

वस्त्र, अक्टूबर से मार्च तक गर्म ऊनी

वस्त्र।

यात्री सुविधा: यात्रा पड़ावों पर मंदिर

समिति के गेस्ट हाउस, गढ़वाल मंडल

विकास निगम के गेस्ट हाउस व निजी

विश्राम गृह।

वायु मार्ग: 273 किलोमीटर दूर जौलीग्रांट

हवाई अड्डा।

रेल मार्ग: ऋषिकेश निकटतम रेलवे स्टेशन।

दूरी 253 किलोमीटर।

सड़क मार्ग: देहरादून, ऋषिकेश व हरिद्वार।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें