बाड़मेर। यूं तो इनका काम अनाज की बोरियां ढोना है, लेकिन इनके वेतन-भत्ते पास करने वाले अधिकारी भी शरमा जाते हैं। बाड़मेर में भारतीय खाद्य निगम में 16 मजदूरों को वेतन से दोगुना ज्यादा तो इन्सेंटिव मिलता है।
इनका वेतन है 33,500 रूपए प्रतिमाह। इस पर हर माह इन्सेंटिव मिलता है करीब 80,000 रूपए। सालाना आय 13 लाख रूपए से ऊपर पहुंच जाती है। यह आय निगम के कई अधिकारियों से भी ज्यादा है। मार्च का ही उदाहरण लीजिए।
हर मजदूर को मासिक एक लाख रूपए मिले हैं। इस वित्त वर्ष में इन्होंने 3.60 लाख रूपए का आयकर भरा है। इनका रहन-सहन देख कोई कह नहीं सकता कि ये पेशे से मजदूर हैं।
ऎसा इसलिए
दरअसल, ये सभी सरकारी मजदूर हैं। 1991 में केंद्र सरकार ने एफसीआई गोदाम में काम करने वाले मजदूरों को विभागीय श्रमिक पद पर स्थायी कर दिया था। बाड़मेर में भी 24 मजदूर स्थायी हुए थे, जिसके बाद वेतनमान तय हुआ।
यह शर्त भी लगी कि वेतनमान के तहत प्रत्येक मजदूर का दिन में 105 बोरी का लादना ड्यूटी का हिस्सा रहेगा। इसके अतिरिक्त लदान पर उसे इन्सेंटिव मिलेगा। फिलहाल यहां 16 मजदूर कार्यरत हैं।
ऎसे बनता है इन्सेंटिव
एक मजदूर को 105 से 30 प्रतिशत बोरियां तक अधिक उठाने पर 8 प्रतिशत इंसेंटिव मिलता है। यह इन्सेंटिव अगली 30-30 प्रतिशत बोरियों पर बढ़कर 25, फिर 35 और फिर 50 प्रतिशत तक मिलता है।
50 प्रतिशत इन्सेंटिव के साथ एक दिन का वेतन भी मिलता है। इसीलिए महीने के वेतन-भत्ते बन जाते हैं। ये मजदूर महीनेभर में 50-50 किलो की करीब एक लाख बोरियां उठाते हैं।
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