गुरुवार, 6 मार्च 2014

होली के रंग में नृत्य की तरंग



भारतीय शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक एवं फिल्मी संगीत-नृत्य में होली का विशेष महत्व है। ओडिसी सबसे प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है। ओडिसी में विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण के बारे में कथाएं बताई जाती हैं। यह कोमल, कवितामय शास्त्रीय नृत्य है, जिसमें उडीसा के सबसे लोकप्रिय देवता भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान किया जाता है। नृत्य और होली के संबंध पर ओडिसी नृत्यांगना रंजना गौहर का नजरिया।

कथक में राधा-कृष्ण

होली में रंगों के अलावा राधा-कृष्ण के नृत्य व संगीत का बडा महत्व है। कथक तो राधा-कृष्ण के प्रेम पर ही आधारित नृत्य शैली है। रास कथक नृत्य का प्रारंभिक नृत्य है। भक्ति आंदोलन के समय तक नृत्य आध्यात्मिकता से आगे बढ कर लोक-जीवन का हिस्सा बनने लगा था। कथक में राधा-कृष्ण के प्रेम की अलग-अलग अवस्थाएं दर्शाई जाती हैं। संगीत की बात करें तो ध्रुपद, धमार, छोटे-बडे खयाल व ठुमरी में होली का महत्व दिखता है। कथक में होली, धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली कई सुंदर बंदिशें हैं, जैसे, चलो गुइयां आज खेलें होरी कन्हैया घर..। ध्रुपद की सुंदर बंदिश है, खेलत हरी संग सकल, रंग भरी होरी सखी। कथक में होरी, ठुमरी का भाव होता है। ठुमरी गायकी में ख्ाूब चलती है। होली में बहुत ठुमरियां हैं। ध्रुपद, धमार होरी पर चलता है। होरी के कई पद ऐसे हैं जो कथक में मिलाए जा सकते हैं। फूलों की होली, पिचकारी वाली होली, अबीर-गुलाल की होली, कृष्ण-राधा और वृंदावन की होली.., सब कुछ कथक में भाव-भंगिमाओं के माध्यम से दर्शाया जाता है।

ओडिसी में गोविंद

होली हमारी मिट्टी में है। हमारी संस्कृति की ख्ाुशबू है इसमें। इसे संस्कृति से अलग नहीं किया जा सकता। यह भाईचारे, प्रेम और सामूहिकता का भी प्रतीक है। रंगों से भगवान श्रीकृष्ण का गहरा नाता है। राधा-कृष्ण का संबंध मधुर है और रस से भरा है। श्रीकृष्ण तो हर तरह की नकारात्मकता को मन से निकालने में माहिर हैं।

नृत्य की उत्पत्ति शिव (नटराज) से होती है, लेकिन कृष्ण ही हैं, जिन्होंने नटवरलाल बन कर नृत्य को जन-जन में लोकप्रिय बनाया। कोई भी नृत्य बिना राधा-कृष्ण के प्रेम के संभव नहीं। वैष्णव दर्शन में कृष्ण को विष्णु का अवतार कहा गया है। उडीसा का एक लोकप्रिय गीत है, जिस पर वसंत पंचमी से होली तक नृत्य किया जाता है। वह है, राधा रानी शंगे नाचे मुरलि पानी..।

होली रंगों के साथ ही उत्साह, उमंग और मस्ती का भी त्यौहार है। जयदेव की रचनाओं में वसंत और होली का सुंदर मेल है। मैंने भी जयदेव के ललित लवंग लता पर कई बार नृत्य प्रस्तुत किया है। इसमें विरह की नायिका राधा की मनोदशा का चित्रण है। कृष्ण गोपियों संग रास रचा रहे हैं और राधा प्रियतम बिछोह में दुखी हैं।

मणिपुरी शैली में होली

मणिपुर में विष्णु पुराण, भागवत पुराण और गीतगोविंदम की रचनाएं ही नृत्य का आधार हैं। यहां होली को यवशंग कहा जाता है और यह एक नृत्य विधा भी है। इसमें भी राधा-कृष्ण के प्रेम को दर्शाया जाता है। इसके अलावा एक अन्य मणिपुरी नृत्य विधा है पुंगचोलम। यह भी होली के दौरान ही होता है। महिला रास नृत्य राधा-कृष्ण पर आधारित है, जो बैले व एकल नृत्य का रूप है। पुरुष संकीर्तन नृत्य मणिपुरी ढोलक की ताल पर पूरी ताकत से किया जाता है। राधा-कृष्ण का मधुर समागम ही संकीर्तन है। यह प्रेम ही जीव और परमात्मा का मिलन है और यही मिलन संकीर्तन है।

बचपन की होली

मुझे बचपन का एक होली-गीत अब भी याद है, जिसमें सामूहिक गान व नृत्य हुआ करता था। वह था, होली खेले कन्हैया झुक झूम-झूम, वो तो खेले कमल मुख चूम-चूम..। इसे याद करके अब भी मेरी आंखें गीली होती हैं। अब मेट्रो सिटी में होली की वह धूम तो नहीं है, लेकिन मेरी डांस अकेडमी उत्सव में इस दिन छात्र आते हैं, होली पर डांस-मस्ती करते हैं, खेलते-खाते हैं। हम होली ऐसे ही मनाते हैं।

साभार प्रस्तुति : इंदिरा राठौर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें