गुरुवार, 6 मार्च 2014

रंगोत्सवों की सौगात गुजरात



वैसे तो गुजरात के पर्यटन स्थल दुनियाभर में मशहूर हैं, पर जब अपनी बहुरंगी एवं विशिष्ट शैली के लिए विख्यात यहां की पारंपरिक लोक-संस्कृति के प्रतीक विभिन्न उत्सवों की हो, तो उसे देखने के लिए हम और आप कुछ खास दिन गुजरात में गुजारने को बेकरार हो उठते हैं। गुजरात में रंगोत्सवों की ढेरों सौगातें हैं-खासकर दिसंबर मध्य से मार्च मध्य के बीच। इनमें हर वर्ष कच्छ की सफेद भूमि पर होने वाले विश्व भर में लोकप्रिय रण-उत्सव और उत्तरायण के अवसर पर अहमदाबाद में होने वाले भव्य अंतरराष्ट्रीय पतंगोत्सव का कोई सानी नहीं। आइए जानते हैं गुजरात के इन दो खास रंगोत्सवों के बारे में..

विकसित गुजरात में पर्यटन के

कई आकर्षक स्थल हैंसो मनाथ, अंबाजी मंदिर, अक्षरधाम, गिर अभयारण्य, द्वारका, सापूतारा, बडोदरा आदि। लेकिन जब बात लोकोत्सवों की निकले, फिर गुजराती संस्कृति का वह स्वरूप नजर आता है, जिसकी पूरी दुनिया कायल है। गुजरात की परिधान एवं पाक कला से परिपूर्ण पारंपरिक जीवनशैली लोगों के बीच सदा से ही कुतूहल का केंद्र रही है, लेकिन जो रंग कच्छ के रण-उत्सव या अहमदाबाद

के अंतरराष्ट्रीय पतंगोत्सव में दिखता है, वैसा रंग शायद संसार के किसी भी कोने में आपको ढ़ूंढने से भी नहीं मिलेगा। यह रंग इतना गाढ़ा, इतना चटख होता है कि ताउम्र आपके मन से कभी भी नहीं उतरता। कच्छ न केवल गुजरात, बल्कि पूरे भारत के सबसे बड़े जनपदों में से एक है, जिसका क्षेत्रफल 45,652 वर्ग किमी. है। कच्छ के शाब्दिक अर्थानुसार ही यहां की भूमि नमीयुक्त एवं शुष्क है। इस जनपद का सबसे बड़ा हिस्सा कच्छ का रण कहलाता है, जो असल में छिछलेदार नमभूमि है। यह अपने दलदली नमकयुक्त विस्तार-क्षेत्र के लिए जाना जाता है, जहां चांदनी रात में भ्रमण करना चांद पर पहुंचने जैसा आनंद देता है। चांदनी रात में कच्छ की भूमि पर ऐसा लगता है, मानो चांद जमीं पर उतर आया हो और हमारे साथ अठखेलियां कर रहा हो। रण-उत्सव के दौरान कच्छ अपने सर्वोत्कृष्ट आकर्षक स्वरूप में होता है, जिसका वर्णन शब्दों से सर्वथा परे है। यहां पहुंचकर ही वह अतुल्य अहसास महसूस किया जा सकता है। लोकगीत एवं संगीत आयोजनों से सराबोर इस उत्सव में आपको गुजराती शिल्प कला की बेहतरीन वस्तुएं देखने और खरीदने का सुनहरा अवसर भी प्राप्त होता है। यहां का जिला-मुख्यालय भुज शहर है, जो भौगोलिक रूप से जनपद के मध्य में स्थित है। वहीं काला डूंगर यहां का सबसे ऊंचा स्थल है, जिसकी ऊंचाई लगभग 458 मी. है।

कच्छ का यह रहस्यमय स्थल बहुचर्चित लगान एवं रिफ्यूजी सहित बहुत सारी फिल्मों का शूटिंग-स्पॉट भी रह चुका है। अब तो यह स्थल बॉलीवुड के पसंदीदा शूटिंग-स्पॉट्स में शुमार हो चुका है, क्योंकि यहां के जीवंत सांस्कृतिक रंगों की छटा बस देखते ही बनती है, जो बड़े पर्दे पर ऐसा जादू बिखेरती है कि दर्शक बस मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। ऐसा आपने संजय लीला भंसाली की फिल्म रामलीला के कुछ दृश्यों में भी जरूर महसूस किया होगा।

रण-उत्सव के खास आकर्षण

गुजराती लोक-नृत्य, सांस्कृतिक एवं संगीत समारोह, विशिष्ट शिल्पगत वस्तुएं, रण एवं कैमल सफारी, कच्छ कार्निवाल (आनंदोत्सव), वैकल्पिक भ्रमण के साथ ही ग्रामीण जीवन का दर्शन एवं अन्य साहसिक गतिविधियों का दीदार, टेंट सिटी धोरोडो में बने वातानुकूलित लक्जरी टेंट्स में ठहराव के साथ ही गुजराती व्यंजनों का जायकेदार अनुभव।

कच्छ के अन्य समीपवर्ती पर्यटन स्थल

यहां प्राचीन हड़प्पाकालीन शहर धौलावीरा, मोढेरा स्थित सूर्य मंदिर, बहुचारा माता मंदिर, नारायण सरोवर, भगवान शिव का कोटेश्वर मंदिर और विभिन्न अभयारण्यों के साथ ही मशहूर वाइल्ड ऐस सैंक्चुअरी भी आप देख सकते हैं।

कैसे पहुंचें

गुजरात की राजधानी गांधीनगर से जुड़े लगभग 23 किमी. दूर अहमदाबाद शहर पहुंचने के लिए आप हवाई, रेल एवं सड़क के संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। राजकोट से लगभग 240 किमी., बडोदरा से लगभग 445 किमी. और अहमदाबाद से लगभग 350 किमी. दूर स्थित कच्छ के जिला-मुख्यालय भुज पहुंचने के लिए आप अहमदाबाद के पालडी इलाके में स्थित विभिन्न टूर कंपनियों द्वारा संचालित स्लीपर बसों के जरिए शाम 8 बजे से रात 11 बजे के बीच रवाना होकर अगली सुबह 6 से 8 बजे तक भुज पहुंच सकते हैं। भुज-मुंबई के बीच कई हवाई उड़ानें भी उपलब्ध हैं, जबकि रोजाना दो एक्सप्रेस रेलगाड़ियों भुज एक्सप्रेस एवं कच्छ एक्सप्रेस द्वारा अहमदाबाद से भुज 8 घंटे में तथा मुंबई से भुज 16 घंटे में पहुंचा जा सकता है। उत्कृष्ट सरकारी एवं निजी परिवहन सेवाओं द्वारा इस क्षेत्र का सुरक्षित एवं यादगार भ्रमण किया जा सकता है।

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

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