जीवनसाथी का हनीमून के दौरान सेक्स से मना करना क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता। बोम्बे हाईकोर्ट ने इस आधार पर जोड़े को तलाक की अनुमति देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि शादी के तुरंत बाद पत्नी का दफ्तर के काम के लिए कस्बे से बाहर जाना और कभी-कभार शर्ट और पतलून पहनकर ऑफिस जाना पति के प्रति क्रूरता नहीं है। जस्टिस वीके ताहिलरमानी और पीएन देशमुख की पीठ ने कहा, शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में मूल्यांकन होना चाहिए। कुछ वक्त के लिए छिट-पुट दृष्टांत क्रूरता की श्रेणी में नहीं आते।
पीठ ने कहा, बुरा बर्ताव पहले से लंबे वक्त से होना चाहिए और जीवनसाथी के बर्ताव और कार्यो की वजह से संबंध इस स्तर तक बिगड़ जाएं जहां एक पक्ष को लगता है कि दूसरे पक्ष के साथ लंबे वक्त तक साथ रहना नितांत मुश्किल है तो उसे मानसिक क्रूरता कहा जा सकता है।
केवल नगण्य चिढ़ और झगड़े जो हर परिवार में हर दिन होते रहते हैं,को क्रूरता कहकर तलाक देने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं है। केवल निरंतर अन्यायोचित और निंदनीय बर्ताव,जो दूसरे साथी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा हो वही मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। मौजूदा केस में इसके कोई सबूत नहीं है।
दिसंबर 2012 में फैमिली कोर्ट ने एक जोड़े को तलाक की अनुमति दे दी थी। क्रूरता को आधार बनाकर फैमिली कोर्ट ने तलाक की डिक्री दे दी। फैसले से असंतुष्ट 29 साल की पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि शादी के तुरंत बाद पत्नी का दफ्तर के काम के लिए कस्बे से बाहर जाना और कभी-कभार शर्ट और पतलून पहनकर ऑफिस जाना पति के प्रति क्रूरता नहीं है। जस्टिस वीके ताहिलरमानी और पीएन देशमुख की पीठ ने कहा, शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में मूल्यांकन होना चाहिए। कुछ वक्त के लिए छिट-पुट दृष्टांत क्रूरता की श्रेणी में नहीं आते।
पीठ ने कहा, बुरा बर्ताव पहले से लंबे वक्त से होना चाहिए और जीवनसाथी के बर्ताव और कार्यो की वजह से संबंध इस स्तर तक बिगड़ जाएं जहां एक पक्ष को लगता है कि दूसरे पक्ष के साथ लंबे वक्त तक साथ रहना नितांत मुश्किल है तो उसे मानसिक क्रूरता कहा जा सकता है।
केवल नगण्य चिढ़ और झगड़े जो हर परिवार में हर दिन होते रहते हैं,को क्रूरता कहकर तलाक देने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं है। केवल निरंतर अन्यायोचित और निंदनीय बर्ताव,जो दूसरे साथी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा हो वही मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। मौजूदा केस में इसके कोई सबूत नहीं है।
दिसंबर 2012 में फैमिली कोर्ट ने एक जोड़े को तलाक की अनुमति दे दी थी। क्रूरता को आधार बनाकर फैमिली कोर्ट ने तलाक की डिक्री दे दी। फैसले से असंतुष्ट 29 साल की पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें