बाड़मेर। साढ़े पांच वर्ष पहले बाड़मेर नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी की ओर से तबादले के बाद जारी किए गए 45 पट्टों के मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने छियालीस जनों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जिनके खिलाफमामला दर्ज किया गया है, उसमें नगरपालिका के तत्कालीन अधिशासी अधिकारी राजेन्द्र चौधरी, पालिकाध्यक्ष बलराम प्रजापत, कनिष्ठ सुरेशचंद्र, नगरपरिषद के दो लिपिकों एवं इकतालीस लाभान्वितों के नाम है। एसीबी ने धारा 13(1) डी 13(2) पीसी एक्ट 1988 के तहत अनियमितता व भ्रष्टाचार तथा धारा 120 बी के तहत षड़यंत्र व धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया।
इस तरह हुई बंदरबांट
ये फंसे एसीबी के फंदे में
इस तरह हुई बंदरबांट
वर्ष 2008 में पांच जुलाई को नगरपालिका के तत्कालीन अधिशासी अधिकारी राजेन्द्र चौधरी को सिरोही तबादला हो गया। तबादला होने के बाद व रिलीव होने से पहले अधिशासी अधिकारी ने आनन-फानन में पैंतालीस पट्टे जारी कर दिए। जबकि इससे पूर्व करीब पैंतीस दिन में उन्होंने एक भी पट्टा जारी नहीं किया था। कृषि भूमि पर जारी इन पट्टों के मामले में कईअनियमितताएं बरती गई। ग्रीन बेल्ट, पेरा फेरी बेल्ट, सुविधा क्षेत्र के लिए आरक्षित तथा मास्टर प्लान में उपयोग अंकन नहीं होने के बावजूद पट्टे जारी कर दिए गए। आवेदन पत्रों में भी कईखामियां थी, लेकिन उनकी अनदेखी की गई। पत्रावलियों में भू उपयोग परिवर्तन का अनुमोदन जिला स्तरीय कमेटी में नहीं करवाया गया। भूखण्डों तक नक्शे तक प्रमाणित नहीं किए गए। पांच सौ वर्ग गज से कम व अधिक दोनों मामलों में भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क समान लिया गया।
तत्कालीन जिला कलक्टर के निर्देश पर इन पट्टों से संबंधित रिकॉर्ड की सीज कर दिया गया। कलक्टर ने एक कमेटी का गठन कर जांच करवाई, जिसमें सभी पट्टे निरस्त योग्य पाए गए। कलक्टर ने पट्टे निरस्त करने के आदेश दिए, लेकिन तब तक देर हो गई। नगरपालिका ने पट्टाधारकों को भूखण्ड बेचने की एनओसी तक जारी कर दी। इस पर कलक्टर के आदेश बेअसर हो गए। बाद में वर्ष 2011 में शहर कोतवाली थाने में मामला दर्ज हुआ, लेकिन इसका नतीजा भी सिफर रहा।
तत्कालीन जिला कलक्टर के निर्देश पर इन पट्टों से संबंधित रिकॉर्ड की सीज कर दिया गया। कलक्टर ने एक कमेटी का गठन कर जांच करवाई, जिसमें सभी पट्टे निरस्त योग्य पाए गए। कलक्टर ने पट्टे निरस्त करने के आदेश दिए, लेकिन तब तक देर हो गई। नगरपालिका ने पट्टाधारकों को भूखण्ड बेचने की एनओसी तक जारी कर दी। इस पर कलक्टर के आदेश बेअसर हो गए। बाद में वर्ष 2011 में शहर कोतवाली थाने में मामला दर्ज हुआ, लेकिन इसका नतीजा भी सिफर रहा।
ये फंसे एसीबी के फंदे में
साढ़े पांच वर्ष पुराने इस मामले में प्रशासन व पुलिस के शिकंजे से बचने में कामयाब रहे नगरपालिका से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी व लाभान्वित अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के फंदे में फंसे हैं। एसीबी में दर्ज हुए मामले में तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष बलराम प्रजापत, अधिशासी अधिकारी राजेन्द्र चौधरी, कनिष्ठ अभियंता सुरेशचंद्र, लिपिक गिरीशकुमार, विशनचंद, लाभान्वित (पट्टों के लाभार्थी) पुखराज, धर्मेन्द्रकुमार, त्रिभुवनदान, श्रीमती बालीदेवी, राणीदान, अुर्जनराम, दयारामदास, श्रीमती शांतिदेवी, पूनमाराम, श्रीमती भगवतीदेवी, डूंगराराम, श्रीमती हरियोदेवी, चम्पालाल, मोहम्मद कमल, हिन्दूसिंह, श्रीमती मथरीदेवी, नरेन्द्रसिंह, कृष्णकुमार, हीराराम, रायचंद, गोपालसिंह, माधुसिंह, श्रीमती मटकोंदेवी, श्रीमती गोरी, चम्पालाल, केशाराम, हेमाराम, रामलाल, मालाराम, प्रेमसिंह, राउराम, केवलचंद, रेवंतदान, हेमाराम, पारसमल, केशाराम, नारायणराम, गोरधनसिंह, श्रीमती पप्पूदेवी, पे्रमसिंह, लिछमणाराम को आरोपी बनाया गया है।
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