शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

खोये हुए लाल को मिलाने का जूनून बन रहा दूसरे के घर की खुशियाँ

इमरान जहीर की रिपोर्ट 

एक ऐसे इन्सान का जूनून जो खुद को नहीं दुसरे को खुशियाँ पहुचाता हो वो शख्स सच में काबिले तारीफ होगा | कितनी माँ ऐसे इंसान के लिए दिल से दुआ देती होंगी जो उनके खोये हुए लाल को ढूंढने का जिम्मा लिए आगे बढ़ रहा हो|
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हम बात कर रहे मुरादाबाद के वाणिज्य कर विभाग में कार्यरत डा० अजय पोरवाल की जिन्होंने जिम्मा लिया है खोये हुए बच्चो को उनके माँ बाप से मिलाने का | निःस्वार्थ भाव से इस सेवा में लगे डा० अजय पोरवाल के साथ उनकी पत्नी अरुणा पोरवाल भी इस मुहीम में साथ दे रही है

वर्ष २००१ के जून माह में इन्होने अख़बार में एक खबर देखी जिसमे एक बच्चे के ट्रेन से गिर कर घायल होने की जानकारी थी जिसमे बच्चे के घर का पता किसी को नहीं मालूम था | इसे देख कर इन्होने उस बच्चे की फोटो लेने के बाद कई अख़बार में विज्ञापन दे कर उसके परिवार को खोजने का काम शुरू किया |उनकी मुहीम रंग लाई और २० दिन के बाद दिल्ली में रह रहे उनके परिवार को अख़बार द्वारा उनके बच्चे के मुरादाबाद में होने की जानकारी मिली | और वो अपने जिगर के टुकड़े को लेने मुरादाबाद पहुच गए | डा० अजय पोरवाल ने इसे अपने जीवन की सबसे बड़ी उब्लाब्धि मान कर समाज सेवा के लिए इस रास्ते को चुनने का संकल्प ले लिया | पिछले १३ वर्ष से वो लगातार इस सेवा में लगे हुए है और खोये हुए बच्चो की फोटो को जगह जगह छपवाने के साथ अखबार में एक विज्ञापन भी देते है |

इन मानवीय सेवाओं का एक औलोकिक उदाहरण प्रस्तुत करने पर इनको वर्ष २००१ के तत्कालीन जिलाधिकारी, मुरादाबाद मनोज कुमार सिंह, वरिष्ट पुलिस अधीक्षक जी.के.गोस्वामी सहित कई प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया | इन्हें पुरस्कार राशि भी देने की पेशकश भी की गई लेकिन इन्होने उसे ठुकरा दिया और कहा की वो इस प्रकार की सेवा को निःस्वार्थ करते रहंगे |

वो इस सेवा को आजीवन करने का संकल्प भी ले चुके है | इस बदले हुए दौर में उन्होंने इस मुहीम को इन्टरनेट पर एक ब्लॉग के माध्यम से भी जारी कर दिया है जिससे देश के दूर दराज के लोगो की भी सेवा की जा सके | उनकी इस मुहीम को देख कर इनके द्वारा दिए जा रहे गुमशुदगी के विज्ञापन पर भी कई अख़बार ने भी विशेष छूट देने की पहल कर दी है |

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