सरकारी काम कि अनदेखी कर निजी अस्प्तालों में दी रहे सेवाए। सरकारी अलोउन्स भी उठा रहे चिकित्सक
बाड़मेर । सरकारी सेवारत चिकित्सकों के लिए "नॉन प्रेक्टिस अलाउंस" चुपड़ी और दो-दो बना हुआ है। जिला मुख्यालय से लेकर गांव तक अधिकांश चिकित्सक यह भत्ता उठा राज्य सरकार को लाखों रूपए प्रतिवर्ष का चूना लगा रह है और निजी प्रेक्टिस भी जारी है। राजकीय जिला चिकित्सालय बाड़मेर में कार्यरत आधा दर्जन से अधिक चिकित्सक निजी अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। कई अपने घर पर मरीज देखते हैं। नियमानुसार इनको नॉन प्रेक्टिस अलाउंस नहीं उठाना चाहिए लेकिन यह राशि ले रहे हैं। मूल तनख्वाह की 25 प्रतिशत राशि यानि एक चिकित्सक दस से बारह हजार प्रतिमाह उठा रहा है।
कोई नहीं देता ध्यान
नॉन प्रेक्टिस अलाउंस को लेकर स्वयं चिकित्सक को तो जानकारी देनी ही होती है साथ ही अस्पताल प्रबंधन भी नजर रखता है कि कौनसा चिकित्सक निजी तौर पर प्रेक्टिस कर रहा है। ऎसा होने पर अलाउंस नहीं देने के साथ ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।
निजी अस्पतालों की चांदी
सरकारी अस्पताल में सेवाएं देने के बाद निजी अस्पतालों में सेवाएं देने वाले चिकित्सक दोहरा लाभ उठा रहे हैं। ये सरकारी अस्पताल के मरीजों को भी निजी अस्पतालों में आने को मजबूर करते हैं।
नि:शुल्क चिकित्सा पर सवाल
सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवा का प्रावधान है लेकिन चिकित्सको के निजी अस्पताल और खुद की प्रेक्टिस होने से अस्पताल की बजाय मरीजों को घर और अस्पताल की कतार में खड़ा होना पड़ता है, जहां महंगी दवाइयां खरीदना मजबूरी हो जाता है।
कस्बों व गांवों में नहीं नियंत्रण
कस्बों और ग्रामीण स्तर पर तो कोईध्यान देने वाला ही नहीं है। नॉन प्रेक्टिस अलाउंस हर कोई उठा रहा है।
ध्यान में नहीं है
नॉन प्रेक्टिस अलाउंस उठाने के साथ प्रेक्टिस का मामला ध्यान में नहीं है। चिकित्सक खुद ही इसका प्रमाण पत्र देते हंै।
- डा.हेमंत सिंघल,
प्रमुख चिकित्सा अधिकारी राजकीय अस्पताल बाड़मेर
बाड़मेर । सरकारी सेवारत चिकित्सकों के लिए "नॉन प्रेक्टिस अलाउंस" चुपड़ी और दो-दो बना हुआ है। जिला मुख्यालय से लेकर गांव तक अधिकांश चिकित्सक यह भत्ता उठा राज्य सरकार को लाखों रूपए प्रतिवर्ष का चूना लगा रह है और निजी प्रेक्टिस भी जारी है। राजकीय जिला चिकित्सालय बाड़मेर में कार्यरत आधा दर्जन से अधिक चिकित्सक निजी अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। कई अपने घर पर मरीज देखते हैं। नियमानुसार इनको नॉन प्रेक्टिस अलाउंस नहीं उठाना चाहिए लेकिन यह राशि ले रहे हैं। मूल तनख्वाह की 25 प्रतिशत राशि यानि एक चिकित्सक दस से बारह हजार प्रतिमाह उठा रहा है।
कोई नहीं देता ध्यान
नॉन प्रेक्टिस अलाउंस को लेकर स्वयं चिकित्सक को तो जानकारी देनी ही होती है साथ ही अस्पताल प्रबंधन भी नजर रखता है कि कौनसा चिकित्सक निजी तौर पर प्रेक्टिस कर रहा है। ऎसा होने पर अलाउंस नहीं देने के साथ ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।
निजी अस्पतालों की चांदी
सरकारी अस्पताल में सेवाएं देने के बाद निजी अस्पतालों में सेवाएं देने वाले चिकित्सक दोहरा लाभ उठा रहे हैं। ये सरकारी अस्पताल के मरीजों को भी निजी अस्पतालों में आने को मजबूर करते हैं।
नि:शुल्क चिकित्सा पर सवाल
सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवा का प्रावधान है लेकिन चिकित्सको के निजी अस्पताल और खुद की प्रेक्टिस होने से अस्पताल की बजाय मरीजों को घर और अस्पताल की कतार में खड़ा होना पड़ता है, जहां महंगी दवाइयां खरीदना मजबूरी हो जाता है।
कस्बों व गांवों में नहीं नियंत्रण
कस्बों और ग्रामीण स्तर पर तो कोईध्यान देने वाला ही नहीं है। नॉन प्रेक्टिस अलाउंस हर कोई उठा रहा है।
ध्यान में नहीं है
नॉन प्रेक्टिस अलाउंस उठाने के साथ प्रेक्टिस का मामला ध्यान में नहीं है। चिकित्सक खुद ही इसका प्रमाण पत्र देते हंै।
- डा.हेमंत सिंघल,
प्रमुख चिकित्सा अधिकारी राजकीय अस्पताल बाड़मेर
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