जयपुर। साहित्य के मेले में हर भाषा, संस्कृति और फैशन की झलक आप बखूबी देख सकते हैं, लेकिन एक नजारा आज ऎसा भी दिखाई दिया, जिसमें बॉलीवुड के उम्दा अभिनेताओं में से एक इरफान खान, विजयदान देथा(बिज्जी) के साहित्य में जीते नजर आए, बिज्जी की कहानियों में गोते लगाते दिखाई दिए। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में बिज्जी के साहित्य और लेखन को जगह देना, एक ऎतिहासिक लम्हा रहा।
निर्देशकों की जरूरत थे "बिज्जी"
"बिज्जी पारस पत्थर थे, बिज्जी को फिल्मकारों की जरूरत नहीं थी, कई फिल्मकारों ने बिज्जी के लेखन के जरिए खुद को स्थापित भी किया है। श्याम बेनेगल, हबीब तनवर, मणिकौल जैसे फिल्म निर्देशकों ने बिज्जी की कई कहानियों पर फिल्में बनाईं हैं", इरफान ने विजयदान देथा (बिज्जी) के लेखन और समूचे साहित्य को सलाम करते हुए बिज्जी पर विस्तार से बात की, उन्होंने कहा कि हम ये कहें कि इनकी निर्देशकों की वजह से बिज्जी को बड़ी पहचान मिली, ऎसा कहना गलत है, उन्होंने कहा कि बिज्जी का लेखन ही ऎसा था कि इन निर्देशकों की जरूरत बन गया था।
हर दिल ने सुना "बिज्जी"
जयपुर लिटरेटर फेस्टिवल(2014 )के इस साहित्य इस समंदर में जब बच्चों से लेकर युवा, बुजुर्ग बिज्जी को दिल और दिमाग से सुन रहे थे, जो इस महान साहित्यकार की धोरां री धरती बहुत सुकून महसूस कर रही थी।
गूगल मुगल टैन्ट में दोपहर के 2.15 बजे "नमन- होमेज टू ए स्टोरी टेलर" के नाम के सेशन में सीपी देवल, मोहम्मद फारूखी, अर्जुन देव चारण, प्रहलाद शेखावत और बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान ने पदश्री एवं राजस्थान के विख्ख्यात साहित्यकार विजयदान देथा(बिज्जी) को साहित्य के उस पटल पर ले जाने की मुहिम छेड़ी जिसके बिज्जी हकदार हैं।
भाषा को मिले मान्यता
भाषा और बिज्जी पर जब सवाल-जबाव का सिलसिला शुरू हुआ, तो हनुमानगढ़ निवासी शालिनी सिंह ने सवाल किया कि विजयदान देथा और उनके साहित्य पर पर यहां विस्तार से बातें कर रहे हैं, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज तक संविधान में मान्यता भी नहीं मिली, जवाब में सीपी देवल ने कहा कि- राजनेताओं की गंदी राजनीति की बदौलत ही, राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा नहीं मिल रहा है, इस भाषा को संविधान में शामिल करके ही बिज्जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जब गया बोरूंदा
मेरा रिश्ता जयपुर से, लेकिन जब एक बार फिल्म की शूटिंग के लिए जोधपुर गया, तो मैंने वहां के लोगों से बिज्जी से मिलने के लिए कहा, मैं गाड़ी से बिज्जी के गांव बोरूंदा उनसे मिलने गया, मैंने इस गांव के वातावरण में अलग ही सुगंध का अहसास किया, उन्होंने कहा कि बिज्जी ने राजस्थानी भाषा में लिखने की ठानी और पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया।
इरफान ने कहा कि सबसे बड़ी बात बिज्जी के विषय बहुत दमदार थे, जिनकी वजह से दुनिया के साहित्य पर बिज्जी उभरे। उन्होंने कहा कि बिज्जी को इस बात का बहुत दुख था कि लेखक का युग खत्म हो गया है, एसएमएस का युग शुरू हो चुका है।
गड़रिया बोला...
इरफान ने बिज्जी को तहेदिल से याद करते हुए उनकी एक कविता के जरिए आज के समाज की कुरीतियों पर निशना साधा- "गड़रिया राजा से बोला- "आप काहे के राजा, बिना इतला आप कहीं नहीं जाते , मैं मर्जी का मालिक हूं, मैं तारे , पक्षियों, बिजली, पानी, चांदनी इन सबसे वाकिफ हूं, मैं कुदरत को पहचानता हूं, जो पहचानता और परखता है, वही उसका आनंद उठा सकता है।"
निर्देशकों की जरूरत थे "बिज्जी"
"बिज्जी पारस पत्थर थे, बिज्जी को फिल्मकारों की जरूरत नहीं थी, कई फिल्मकारों ने बिज्जी के लेखन के जरिए खुद को स्थापित भी किया है। श्याम बेनेगल, हबीब तनवर, मणिकौल जैसे फिल्म निर्देशकों ने बिज्जी की कई कहानियों पर फिल्में बनाईं हैं", इरफान ने विजयदान देथा (बिज्जी) के लेखन और समूचे साहित्य को सलाम करते हुए बिज्जी पर विस्तार से बात की, उन्होंने कहा कि हम ये कहें कि इनकी निर्देशकों की वजह से बिज्जी को बड़ी पहचान मिली, ऎसा कहना गलत है, उन्होंने कहा कि बिज्जी का लेखन ही ऎसा था कि इन निर्देशकों की जरूरत बन गया था।
हर दिल ने सुना "बिज्जी"
जयपुर लिटरेटर फेस्टिवल(2014 )के इस साहित्य इस समंदर में जब बच्चों से लेकर युवा, बुजुर्ग बिज्जी को दिल और दिमाग से सुन रहे थे, जो इस महान साहित्यकार की धोरां री धरती बहुत सुकून महसूस कर रही थी।
गूगल मुगल टैन्ट में दोपहर के 2.15 बजे "नमन- होमेज टू ए स्टोरी टेलर" के नाम के सेशन में सीपी देवल, मोहम्मद फारूखी, अर्जुन देव चारण, प्रहलाद शेखावत और बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान ने पदश्री एवं राजस्थान के विख्ख्यात साहित्यकार विजयदान देथा(बिज्जी) को साहित्य के उस पटल पर ले जाने की मुहिम छेड़ी जिसके बिज्जी हकदार हैं।
भाषा को मिले मान्यता
भाषा और बिज्जी पर जब सवाल-जबाव का सिलसिला शुरू हुआ, तो हनुमानगढ़ निवासी शालिनी सिंह ने सवाल किया कि विजयदान देथा और उनके साहित्य पर पर यहां विस्तार से बातें कर रहे हैं, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज तक संविधान में मान्यता भी नहीं मिली, जवाब में सीपी देवल ने कहा कि- राजनेताओं की गंदी राजनीति की बदौलत ही, राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा नहीं मिल रहा है, इस भाषा को संविधान में शामिल करके ही बिज्जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जब गया बोरूंदा
मेरा रिश्ता जयपुर से, लेकिन जब एक बार फिल्म की शूटिंग के लिए जोधपुर गया, तो मैंने वहां के लोगों से बिज्जी से मिलने के लिए कहा, मैं गाड़ी से बिज्जी के गांव बोरूंदा उनसे मिलने गया, मैंने इस गांव के वातावरण में अलग ही सुगंध का अहसास किया, उन्होंने कहा कि बिज्जी ने राजस्थानी भाषा में लिखने की ठानी और पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया।
इरफान ने कहा कि सबसे बड़ी बात बिज्जी के विषय बहुत दमदार थे, जिनकी वजह से दुनिया के साहित्य पर बिज्जी उभरे। उन्होंने कहा कि बिज्जी को इस बात का बहुत दुख था कि लेखक का युग खत्म हो गया है, एसएमएस का युग शुरू हो चुका है।
गड़रिया बोला...
इरफान ने बिज्जी को तहेदिल से याद करते हुए उनकी एक कविता के जरिए आज के समाज की कुरीतियों पर निशना साधा- "गड़रिया राजा से बोला- "आप काहे के राजा, बिना इतला आप कहीं नहीं जाते , मैं मर्जी का मालिक हूं, मैं तारे , पक्षियों, बिजली, पानी, चांदनी इन सबसे वाकिफ हूं, मैं कुदरत को पहचानता हूं, जो पहचानता और परखता है, वही उसका आनंद उठा सकता है।"
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