जयपुर। शौर्य, साहस और बलिदान का प्रतीक भारतीय सेना अपनी बढ़ती ताकत के साथ 66 वां सेना दिवस मना रही है। देश की रक्षा की पहरेदार बनकर खड़ी सेना ने हर मोर्चे पर अमिट इतिहास लिखा है, अमेरिका और चीन के बाद भारतीय सेना दुनिया की तीसरी बड़ी सैन्य टुकड़ी है।
आजादी के बाद लेफ्टिनेंट जनरल केएम करियप्पा (बाद में फील्ड मार्शल) द्वारा इस दिन सेना की कमान सम्ंभाले जाने के उपलक्ष्य में भारतीय थल सेना हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाती है।
देश की आजादी के बाद तो सेना ने पाकिस्तान और चीन के साथ हुई लड़ाइयों के अलावा विभिन्न सैन्य अभियानों के साथ साथ गोवा व बांगलादेश को आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाई ही है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शान्ति सेना के अंग के रूप में भी अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया है। सेना का स्वर्णिम इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है। अदम्य साहस, वीरता और बलिदान आज भी भारतीय सेना के रग-रग में बसता है... साहस और बलिदान के तमाम अध्याय लिखने वाली हमारी सेना के तमाम पहलुओं को जानने के लिए पत्रिका डॉट कॉम की खास रिपोर्ट-
प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पश्चिम मोर्चे पर अहम भूमिका अदा की थी। बेटल ऑफ गल्लीपोली, सिनाई व फलीस्तीन अभियान, मेसौपोटामियां अभियान, और पूर्वी अफ्रीका (बैटल ऑफ टांगा सहित)में हमारी सेनाओं ने भाग लिया। विश्व युद्ध पूरा हो जाने के बाद सेना की टुकडियों ने फ्रांस, बेल्जियम,गल्लीपोली, सालोनिका, पेलेस्टीन, इजिप्ट, सुडान, मैसोपोटामियां, अडेन, सोमालीलैण्ड, कैमरून और पूर्वी अफ्रीका उत्तर पश्चिम पर्शिया तथा कुर्दीस्तान व पर्सियन खाड़ी स्थित उत्तर चीन में लड़ाई लड़ी।
दूसरा विश्व युद्ध
इस लड़ाई में भारतीय सेना ने मेडिटेरेनियन, मिडल ईस्ट व अफ्रीकन थियेटर में अहम भूमिका अदा की। इस दौरान ईस्ट अफ्रीकन कैम्पेन, नॉर्थ अफ्रीकन कैम्पेन (ऑपरेशन कॉम्पास, ऑपरेशन बैटलएक्स, ऑपरेशन क्रूसेडर, अल अलामिन का पहला व दूसरा युद्ध), एंगलो-इराकी युद्ध, सीरिया-लेबनान अभियान, इटालियन अभियान, (बैटल ऑफ मोन्टे कैसिनों समेत), हांगकांग का युद्ध, मलाया का युद्ध, सिंगापुर का युद्ध व बर्मा अभियान में अपने साहस का परिचय दियाा। रियासतों के सैन्य रिसालों ने विदेशों में लड़ाई लड़ी। इस युद्ध के बाद इन रियासती टुकडियों को भारतीय संघीय सेनाओं के रूप में मान्यता दी गई। दूसरे विश्व युद्ध में 49 राज्यों-रियासतों के 50 हजार से अधिक सैनिकों ने हिस्सा लिया। आजादी के बाद, भारत सरकार इन रियासती सेनाओं को अपने अधीन कर लिया और 1951 में इन्हें पूर्ण भारतीय थल सेना के रूप में मान्यता दी गई।
भारत-पाक युद्ध 1948
आजादी के ऎलान के बाद अक्टूबर 1947 में भारतीय सेना को जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से पठानी कबाइलियों के आक्रमण से बचाने के लिए बुलाया गया। अक्टूबर 1947 से जनवरी 1949 तक जम्मू-कश्मीर के विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भारतीय सैना ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नैस्ताबूद करते हुए ऎतिहासिक विजय हासिल की।
भारतीय सैनिकों ने कश्मीर व कश्मीर घाटी की रक्षा की। स्कार्डू किले की इकाई को आखिरी दम तक लड़ने का हुकम दिया गया। जोजिला पास टैंकों के बेहतरीन इस्तेमाल के जरिए वापस कब्जे किया गया। यह पहला मौका था जब भारत के सामरिक इतिहास में पहली बार 13 हजार फीट की ऊंचाई पर टैंकों का इस्तेमाल किया गया। एक जनवरी 1949 को संघर्ष विराम घोषित होने तक थिवाल व ऊरी भारतीय हाथों में आ चुके थे। इसी तरह पुंछ व द्रास-करगिल ने लेह व आगे की राह खोल दी थी। इस दौरान चौदह महीनों तक चले सैन्य अभियान में डेढ़ हजार सैनिक शहीद हुए, साढ़े तीन हजार जख्मी हुए और एक हजार का पता नहीं चला। जबकि पाकिस्तान के बीस हजार सैनिक हताहत हुए। इनमें से 6 हजार से ज्यादा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस लड़ाई के लिए सेना को पांच परमवीर चक्र, 48 महावीर चक्र व 284 वीर चक्र के अलंकरणों से नवाजा गया। इनमें से दो परमवीर चक्र, 11 महावीर चक्र व 48 वीर चक्र मरणोपरान्त प्रदान किए गए।
गोवा मुक्ति अभियान
भारत से अंग्रेजों की विदाई के बाद भी पुर्तगाल ने गोवा, दमन व दीव पर कब्जा जमा रखा था और ये लोग स्वतंत्र भारत के साथ बात करने को भी तैयार नहीं थे। इस पर मेजर जनरल के पी चन्दैथ की अगुवाई में 17 इन्फेन्ट्री डिविजन को 48 व 63 इन्फेन्ट्री ब्रिगेड व 50 इन्डीपेन्डेंट पैरा ब्रिगेड को 1961 में गोवा को आजाद करवाने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू करने का आदेश दिया गया। इस युद्ध में 76 भारतीय जवान हताहत हुए। इनमें से 22 शहीद हो गए और 54 जख्मी हुए, जबकि पुर्तगाली सेना के 87 लोग हताहत हुए इनमें से 30 मारे गए और 53 जख्ख्मी हुए।
भारत-चीन युद्ध 1962
चीन के 1962 में हुए हमले ने भारत को चकित कर दिया था। हिमालय की पहाडियों में चीनी सेना की घुसपैठ ने समूचे राष्ट्र को हतप्रभ कर दिया, लेकिन भारतीय सेना बहुत ही जल्दी इस सदमे से उबरने में कामयाब रही। नेफा क्षेत्र में भारतीय सेना ने थगला की पहाड़ी, तवांग से ला, बोमडिला व चाकू में चीन से लोहा लिया। इसके साथ चीनी सेना ने सुबनसिरी, सियांग, दिबांग और लोहित में भी हमला किया था। लद्धाख में चुशूल व रेजांगला में भीषण युद्ध हुआ। भयानक सर्दी में भी राशन, कपड़ों व अन्य सामग्री के साथ साथ युद्धक सामग्री की कमी के बावजूद हमारी सेनाओं ने अदम्म्य साहस का परिचय दिया।
चीनी सेना के छुड़ाए थे छक्के
आखिरी गोली व आखिरी आदमी तक भारतीय जवान चीनी आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ाते रहे। इस लड़ाई ने भारतीय सेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया। इस युद्ध में अदम्य साहस व बहादुरी के लिए भारतीय फौज को तीन परमवीर चक्र, 22 महावीर चक्र, 175 वीर चक्र प्रदान किए गए। इनमें से एक परमवीर चक्र, 11 महावीर चक्र व 32 वीर चक्र मरणोपरान्त प्रदान किए गए। इस युद्ध में 722 चीनी सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा और 1697 जख्मी हुए। दो को बंदी बनाया गया। भारतीय सेना के 3128 जवानों ने इस लड़ाई में प्राणोत्सर्ग किया, 3123 को बंदी बनाया गया और 1047 भारतीय जवान जख्मी हुए।
पाक को दिया करारा जवाब
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में घुसने के लिए गिलब्रेटर फोर्स का गठन करते हुए 5 अगस्त 1965 को सादी वर्दी में हजारों हथियारबन्द सैनिकों के साथ घुसपैठ की। फिर 15 अगस्त को भारतीय सेना ने इसका जवाब दिया और करगिल सेक्टर में सीएफएल के आगे तक कई ठिकानों पर कब्जा कर लिया, जो लेह तक संचार साधनों के लिए बड़ा खतरा थे। ऊरी व पुंछ को जोड़ने वाले हाजीपुर पास को भी कब्जे किया गया।
1 सितम्बर 1965 को पाकिस्तानी सेना ने छम्ब-जूरियां सेक्टर में अखनूर पर कब्जे के लिए ग्रांड स्लेम अभियान शुरू कर दिया। भारतीय थल सेना व भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। 6 सितम्बर को सियालकोट सेक्टर में ताबड़तोड़ हमले के कारण सियालकोट व लाहोर सीधे निशाने पर थे। जम्मू-कश्मीर से लाहौर तक समूचे मोर्चे पर लड़ाई फैल गई। खेमकरण, कसूरव फाजिल्का व सुलेमंकी से लेकर बाड़मेर के धोरों व कच्छ-रण तक लड़ाई फैल गई। इसके बाद 23 सितंम्बर को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। इस लड़ाई में भारत ने 740 वर्ग माइल्स में कब्जा किया। इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना को दो परमवीर चक्र (दोनों मरणोपरान्त), 37 महावीर चक्र (11 मरणोपरान्त) व 175 वीर चक्र (44 मरणोपरान्त) प्रदान किए गए।
बांगलादेश मुक्ति अभियान 1971
दिसम्बर 1971 में 14 दिन चली लड़ाई में भारतीय सेना के पराक्रम की बदौलत बांगलादेश नाम नए देश का उदय हुआ। दुनिया के सामरिक इतिहास में अब तक के सबसे बड़े आत्मसमर्पण के साथ पाकिस्तान को अपना यह इलाका खोना पड़ा। दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स, पूर्वी बंगाल रेजिमेन्ट व पुलिस ने असंख्य शरणार्थियों को भारतीय इलाके में धकेलना शुरू किया।
मई 1971 तक इनकी संख्या पांच लाख तक पहुंच गई। भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने पूर्वी पाकिस्तान में फौजियों को खदेड़ने के लिए बड़ा अभियान शुरू किया ताकि चितोंग, तचलना व खुलना जैसे पूर्वी पाकिस्तान के एंट्री पोइन्ट्स पर कब्जा किया जा सके। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में हुई सैन्य कार्रवाई 17 दिसम्बर 1971 को बांगलादेश की आजादी के साथ पूरी हुई। इसी दिन पाकिस्तानी सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
पश्चिम मोर्चे पर 1971 की लड़ाई
पाकिस्तान ने 3 दिसंम्बर,1971 को बिना किसी चेतावनी के युद्ध शुरू कर दिया। पश्चिम मोर्चे पर यह लड़ाई बाड़मेर-जैसलमेर सेक्टर तक सीमित रही। भारतीय सेना ने पहली बार इस रेतीले इलाके में इतने बड़े सैन्य अभियान को हाथ में लिया था। 4 दिसंम्बर 1971 को भारतीय सेना ने ताबड़तोड़ हमले करते हुए 12,200 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा कर लिया और भारतीय सेना सिन्ध के ग्रीन बेल्ट तक पहुंचने ही वाली थी कि 17 दिसंम्बर 1971 को युद्ध विराम घोषित कर दिया गया।
सियाचिन ग्लेशियर
सियाचीन ग-लेशियर में भी भारतीय फौज ने दुश्मन की नापाक हरकतों का करारा जवाब दिया है। सियाचिन 18 से 21 हजार फीट ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा सामरिक स्थल के रूप में पहचाना जाता है। यह तापमान जमाव बिन्दु पर रहता है और नवंम्बर से अप्रेल तक यह माइनस 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। मई से अक्टूबर तक भी यहां तापमान 10 से पन्द्रह डिग्री माइनस ही रहता है। भारतीय सेना ने यहां 13 अप्रेल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के तहत पाकिस्तान को करार जबाव दिया था।
करगिल युद्ध जीता
मई से जुलाई 1999 के बीच भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत करगिल सेक्टर में घुस आए 5 हजार से अधिक पाकिस्तान सैनिकों को खदेड़ निकाला था। इन पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा पर 1998-99 में सर्दियों के दिनों के दौरान कई चौकियों पर कब्जा जमा लिया था। भारतीय जवानों ने पाकिस्तान की इस हरकत का करारा जवाब देते हुए न सिर्फ इन चौकियों पर वापस कब्जा किया, बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों को खेदड़ बाहर निकाला।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
भारतीय फौज ने विश्व शांति के लिए कोरिया, गाजा, लेबनान व कंगों में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में काम करते हुए अपने साहस व बहादुरी का परिचय दिया है। भारतीय सेना अभी 7 प्रमुख संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में शामिल है। इनमें लेबनान, इजरायल व सीरिया की गोलन हाइट्स, कोंगो, सूडान, आइवरी कोस्ट, हैती व पूर्वी तैमूर प्रमुख हैं।
हिटलर ने की तारीफ
लड़ाई के मैदान में दुश्मन को धूल चटाने वाली भारतीय सेना की प्रशंसा सिर्फ देश ही नहीं करता,दूसरे देशों के नेता भी सेना की बहादुरी को सलाम करते हैं।
दुनिया के बड़े तानाशाहों में शुमार रहे हिटलर ने एक बार कहा था कि मैं सारा यूरोप जीत सकते हूं, लेकिन गोरखालैंड रेजीमेंट के अधिग्रहण करके, क्योंकि यही वो सेना है, जो जर्मनी और दूसरे मुल्कों की सेनाओं का सामना कर सकती है।
आजादी के बाद लेफ्टिनेंट जनरल केएम करियप्पा (बाद में फील्ड मार्शल) द्वारा इस दिन सेना की कमान सम्ंभाले जाने के उपलक्ष्य में भारतीय थल सेना हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाती है।
देश की आजादी के बाद तो सेना ने पाकिस्तान और चीन के साथ हुई लड़ाइयों के अलावा विभिन्न सैन्य अभियानों के साथ साथ गोवा व बांगलादेश को आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाई ही है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शान्ति सेना के अंग के रूप में भी अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया है। सेना का स्वर्णिम इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है। अदम्य साहस, वीरता और बलिदान आज भी भारतीय सेना के रग-रग में बसता है... साहस और बलिदान के तमाम अध्याय लिखने वाली हमारी सेना के तमाम पहलुओं को जानने के लिए पत्रिका डॉट कॉम की खास रिपोर्ट-
प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पश्चिम मोर्चे पर अहम भूमिका अदा की थी। बेटल ऑफ गल्लीपोली, सिनाई व फलीस्तीन अभियान, मेसौपोटामियां अभियान, और पूर्वी अफ्रीका (बैटल ऑफ टांगा सहित)में हमारी सेनाओं ने भाग लिया। विश्व युद्ध पूरा हो जाने के बाद सेना की टुकडियों ने फ्रांस, बेल्जियम,गल्लीपोली, सालोनिका, पेलेस्टीन, इजिप्ट, सुडान, मैसोपोटामियां, अडेन, सोमालीलैण्ड, कैमरून और पूर्वी अफ्रीका उत्तर पश्चिम पर्शिया तथा कुर्दीस्तान व पर्सियन खाड़ी स्थित उत्तर चीन में लड़ाई लड़ी।
दूसरा विश्व युद्ध
इस लड़ाई में भारतीय सेना ने मेडिटेरेनियन, मिडल ईस्ट व अफ्रीकन थियेटर में अहम भूमिका अदा की। इस दौरान ईस्ट अफ्रीकन कैम्पेन, नॉर्थ अफ्रीकन कैम्पेन (ऑपरेशन कॉम्पास, ऑपरेशन बैटलएक्स, ऑपरेशन क्रूसेडर, अल अलामिन का पहला व दूसरा युद्ध), एंगलो-इराकी युद्ध, सीरिया-लेबनान अभियान, इटालियन अभियान, (बैटल ऑफ मोन्टे कैसिनों समेत), हांगकांग का युद्ध, मलाया का युद्ध, सिंगापुर का युद्ध व बर्मा अभियान में अपने साहस का परिचय दियाा। रियासतों के सैन्य रिसालों ने विदेशों में लड़ाई लड़ी। इस युद्ध के बाद इन रियासती टुकडियों को भारतीय संघीय सेनाओं के रूप में मान्यता दी गई। दूसरे विश्व युद्ध में 49 राज्यों-रियासतों के 50 हजार से अधिक सैनिकों ने हिस्सा लिया। आजादी के बाद, भारत सरकार इन रियासती सेनाओं को अपने अधीन कर लिया और 1951 में इन्हें पूर्ण भारतीय थल सेना के रूप में मान्यता दी गई।
भारत-पाक युद्ध 1948
आजादी के ऎलान के बाद अक्टूबर 1947 में भारतीय सेना को जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से पठानी कबाइलियों के आक्रमण से बचाने के लिए बुलाया गया। अक्टूबर 1947 से जनवरी 1949 तक जम्मू-कश्मीर के विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भारतीय सैना ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नैस्ताबूद करते हुए ऎतिहासिक विजय हासिल की।
भारतीय सैनिकों ने कश्मीर व कश्मीर घाटी की रक्षा की। स्कार्डू किले की इकाई को आखिरी दम तक लड़ने का हुकम दिया गया। जोजिला पास टैंकों के बेहतरीन इस्तेमाल के जरिए वापस कब्जे किया गया। यह पहला मौका था जब भारत के सामरिक इतिहास में पहली बार 13 हजार फीट की ऊंचाई पर टैंकों का इस्तेमाल किया गया। एक जनवरी 1949 को संघर्ष विराम घोषित होने तक थिवाल व ऊरी भारतीय हाथों में आ चुके थे। इसी तरह पुंछ व द्रास-करगिल ने लेह व आगे की राह खोल दी थी। इस दौरान चौदह महीनों तक चले सैन्य अभियान में डेढ़ हजार सैनिक शहीद हुए, साढ़े तीन हजार जख्मी हुए और एक हजार का पता नहीं चला। जबकि पाकिस्तान के बीस हजार सैनिक हताहत हुए। इनमें से 6 हजार से ज्यादा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस लड़ाई के लिए सेना को पांच परमवीर चक्र, 48 महावीर चक्र व 284 वीर चक्र के अलंकरणों से नवाजा गया। इनमें से दो परमवीर चक्र, 11 महावीर चक्र व 48 वीर चक्र मरणोपरान्त प्रदान किए गए।
गोवा मुक्ति अभियान
भारत से अंग्रेजों की विदाई के बाद भी पुर्तगाल ने गोवा, दमन व दीव पर कब्जा जमा रखा था और ये लोग स्वतंत्र भारत के साथ बात करने को भी तैयार नहीं थे। इस पर मेजर जनरल के पी चन्दैथ की अगुवाई में 17 इन्फेन्ट्री डिविजन को 48 व 63 इन्फेन्ट्री ब्रिगेड व 50 इन्डीपेन्डेंट पैरा ब्रिगेड को 1961 में गोवा को आजाद करवाने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू करने का आदेश दिया गया। इस युद्ध में 76 भारतीय जवान हताहत हुए। इनमें से 22 शहीद हो गए और 54 जख्मी हुए, जबकि पुर्तगाली सेना के 87 लोग हताहत हुए इनमें से 30 मारे गए और 53 जख्ख्मी हुए।
भारत-चीन युद्ध 1962
चीन के 1962 में हुए हमले ने भारत को चकित कर दिया था। हिमालय की पहाडियों में चीनी सेना की घुसपैठ ने समूचे राष्ट्र को हतप्रभ कर दिया, लेकिन भारतीय सेना बहुत ही जल्दी इस सदमे से उबरने में कामयाब रही। नेफा क्षेत्र में भारतीय सेना ने थगला की पहाड़ी, तवांग से ला, बोमडिला व चाकू में चीन से लोहा लिया। इसके साथ चीनी सेना ने सुबनसिरी, सियांग, दिबांग और लोहित में भी हमला किया था। लद्धाख में चुशूल व रेजांगला में भीषण युद्ध हुआ। भयानक सर्दी में भी राशन, कपड़ों व अन्य सामग्री के साथ साथ युद्धक सामग्री की कमी के बावजूद हमारी सेनाओं ने अदम्म्य साहस का परिचय दिया।
चीनी सेना के छुड़ाए थे छक्के
आखिरी गोली व आखिरी आदमी तक भारतीय जवान चीनी आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ाते रहे। इस लड़ाई ने भारतीय सेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया। इस युद्ध में अदम्य साहस व बहादुरी के लिए भारतीय फौज को तीन परमवीर चक्र, 22 महावीर चक्र, 175 वीर चक्र प्रदान किए गए। इनमें से एक परमवीर चक्र, 11 महावीर चक्र व 32 वीर चक्र मरणोपरान्त प्रदान किए गए। इस युद्ध में 722 चीनी सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा और 1697 जख्मी हुए। दो को बंदी बनाया गया। भारतीय सेना के 3128 जवानों ने इस लड़ाई में प्राणोत्सर्ग किया, 3123 को बंदी बनाया गया और 1047 भारतीय जवान जख्मी हुए।
पाक को दिया करारा जवाब
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में घुसने के लिए गिलब्रेटर फोर्स का गठन करते हुए 5 अगस्त 1965 को सादी वर्दी में हजारों हथियारबन्द सैनिकों के साथ घुसपैठ की। फिर 15 अगस्त को भारतीय सेना ने इसका जवाब दिया और करगिल सेक्टर में सीएफएल के आगे तक कई ठिकानों पर कब्जा कर लिया, जो लेह तक संचार साधनों के लिए बड़ा खतरा थे। ऊरी व पुंछ को जोड़ने वाले हाजीपुर पास को भी कब्जे किया गया।
1 सितम्बर 1965 को पाकिस्तानी सेना ने छम्ब-जूरियां सेक्टर में अखनूर पर कब्जे के लिए ग्रांड स्लेम अभियान शुरू कर दिया। भारतीय थल सेना व भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। 6 सितम्बर को सियालकोट सेक्टर में ताबड़तोड़ हमले के कारण सियालकोट व लाहोर सीधे निशाने पर थे। जम्मू-कश्मीर से लाहौर तक समूचे मोर्चे पर लड़ाई फैल गई। खेमकरण, कसूरव फाजिल्का व सुलेमंकी से लेकर बाड़मेर के धोरों व कच्छ-रण तक लड़ाई फैल गई। इसके बाद 23 सितंम्बर को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। इस लड़ाई में भारत ने 740 वर्ग माइल्स में कब्जा किया। इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना को दो परमवीर चक्र (दोनों मरणोपरान्त), 37 महावीर चक्र (11 मरणोपरान्त) व 175 वीर चक्र (44 मरणोपरान्त) प्रदान किए गए।
बांगलादेश मुक्ति अभियान 1971
दिसम्बर 1971 में 14 दिन चली लड़ाई में भारतीय सेना के पराक्रम की बदौलत बांगलादेश नाम नए देश का उदय हुआ। दुनिया के सामरिक इतिहास में अब तक के सबसे बड़े आत्मसमर्पण के साथ पाकिस्तान को अपना यह इलाका खोना पड़ा। दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स, पूर्वी बंगाल रेजिमेन्ट व पुलिस ने असंख्य शरणार्थियों को भारतीय इलाके में धकेलना शुरू किया।
मई 1971 तक इनकी संख्या पांच लाख तक पहुंच गई। भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने पूर्वी पाकिस्तान में फौजियों को खदेड़ने के लिए बड़ा अभियान शुरू किया ताकि चितोंग, तचलना व खुलना जैसे पूर्वी पाकिस्तान के एंट्री पोइन्ट्स पर कब्जा किया जा सके। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में हुई सैन्य कार्रवाई 17 दिसम्बर 1971 को बांगलादेश की आजादी के साथ पूरी हुई। इसी दिन पाकिस्तानी सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
पश्चिम मोर्चे पर 1971 की लड़ाई
पाकिस्तान ने 3 दिसंम्बर,1971 को बिना किसी चेतावनी के युद्ध शुरू कर दिया। पश्चिम मोर्चे पर यह लड़ाई बाड़मेर-जैसलमेर सेक्टर तक सीमित रही। भारतीय सेना ने पहली बार इस रेतीले इलाके में इतने बड़े सैन्य अभियान को हाथ में लिया था। 4 दिसंम्बर 1971 को भारतीय सेना ने ताबड़तोड़ हमले करते हुए 12,200 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा कर लिया और भारतीय सेना सिन्ध के ग्रीन बेल्ट तक पहुंचने ही वाली थी कि 17 दिसंम्बर 1971 को युद्ध विराम घोषित कर दिया गया।
सियाचिन ग्लेशियर
सियाचीन ग-लेशियर में भी भारतीय फौज ने दुश्मन की नापाक हरकतों का करारा जवाब दिया है। सियाचिन 18 से 21 हजार फीट ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा सामरिक स्थल के रूप में पहचाना जाता है। यह तापमान जमाव बिन्दु पर रहता है और नवंम्बर से अप्रेल तक यह माइनस 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। मई से अक्टूबर तक भी यहां तापमान 10 से पन्द्रह डिग्री माइनस ही रहता है। भारतीय सेना ने यहां 13 अप्रेल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के तहत पाकिस्तान को करार जबाव दिया था।
करगिल युद्ध जीता
मई से जुलाई 1999 के बीच भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत करगिल सेक्टर में घुस आए 5 हजार से अधिक पाकिस्तान सैनिकों को खदेड़ निकाला था। इन पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा पर 1998-99 में सर्दियों के दिनों के दौरान कई चौकियों पर कब्जा जमा लिया था। भारतीय जवानों ने पाकिस्तान की इस हरकत का करारा जवाब देते हुए न सिर्फ इन चौकियों पर वापस कब्जा किया, बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों को खेदड़ बाहर निकाला।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
भारतीय फौज ने विश्व शांति के लिए कोरिया, गाजा, लेबनान व कंगों में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में काम करते हुए अपने साहस व बहादुरी का परिचय दिया है। भारतीय सेना अभी 7 प्रमुख संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में शामिल है। इनमें लेबनान, इजरायल व सीरिया की गोलन हाइट्स, कोंगो, सूडान, आइवरी कोस्ट, हैती व पूर्वी तैमूर प्रमुख हैं।
हिटलर ने की तारीफ
लड़ाई के मैदान में दुश्मन को धूल चटाने वाली भारतीय सेना की प्रशंसा सिर्फ देश ही नहीं करता,दूसरे देशों के नेता भी सेना की बहादुरी को सलाम करते हैं।
दुनिया के बड़े तानाशाहों में शुमार रहे हिटलर ने एक बार कहा था कि मैं सारा यूरोप जीत सकते हूं, लेकिन गोरखालैंड रेजीमेंट के अधिग्रहण करके, क्योंकि यही वो सेना है, जो जर्मनी और दूसरे मुल्कों की सेनाओं का सामना कर सकती है।
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