सेना ने 14 साल पुराने पथरीबल मुठभेड़ मामले को बंद करते हुए कहा है कि रिकॉर्ड में दर्ज सबूतों से किसी भी आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप साबित नहीं हो सके। सैन्य अधिकारियों ने श्रीनगर में न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को इस फैसले से अवगत करा दिया है।
एक रक्षा प्रवक्ता ने जम्मू में बताया कि रिकॉर्ड में दर्ज सबूतों से किसी भी आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप साबित नहीं हो सके। प्रवक्ता ने कहा कि बहरहाल, यह साबित हो गया कि यह (पथरीबल मुठभेड़) पुलिस और सेना का विशेष खुफिया सूचनाओं पर आधारित एक संयुक्त अभियान था।
इस प्रवक्ता ने कहा कि सैन्य अधिकारियों ने कल यह मामला बंद कर दिया है और श्रीनगर में न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को इस बारे में सूचित कर दिया गया है। वर्ष 2006 में सीबीआई ने कथित फर्जी मुठभेड़ के लिए सेना के पांच अधिकारियों पर अभियोग लगाया था और राज्य पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।
जांच के लिए यह मामला जनवरी 2003 में सीबीआई के सुपुर्द किया गया था। सीबीआई ने आरोप लगाया कि 7-राष्ट्रीय राइफल्स के अधिकारी और जवाऩ ब्रिगेडियर अजय सक्सेना, लेफ्टिनेंट कर्नल ब्रहेन्द्र प्रताप सिंह, मेजर सौरभ शर्मा, मेजर अमित सक्सेना और सूबेदार इदरीस खान ने फर्जी मुठभेड़ कर पांच बेकसूर नागरिकों को मार डाला और कहा कि ये लोग दक्षिण कश्मीर के छत्तीसिंहपोरा में सिखों पर हुए हमले में शामिल आतंकवादी थे।
दक्षिण कश्मीर के पथरीबल में 26 मार्च 2000 को पांच व्यक्ति मारे गए थे। सेना ने दावा किया था कि जो लोग मारे गए, वे 21 मार्च 2000 को सिख समुदाय के 35 सदस्यों को गोली मार कर मौत के घाट उतार देने के लिए जिम्मेदार थे। जब यह घटना हुई थी तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर थे।
प्रवक्ता ने बताया कि सीबीआई की जांच और मार्च 2012 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सेना ने श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से यह मामला ले लिया। उन्होंने बताया, 50 से अधिक गवाहों से जिरह की गई। इनमें कई नागरिक, राज्य सरकार और पुलिस के अधिकारी शामिल थे।
सीबीआई के 18 पन्नों के आरोपपत्र में कहा गया था कि सिख समुदाय के लोगों के मारे जाने के बाद उस इलाके में तैनात सेना की यूनिट परिणाम देने के लिए जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक दबाव में थी। प्रवक्ता ने बताया कि अतीत में जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के 59 मामलों में 123 सैन्य कर्मियों को दोषी पाया गया।
एक रक्षा प्रवक्ता ने जम्मू में बताया कि रिकॉर्ड में दर्ज सबूतों से किसी भी आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप साबित नहीं हो सके। प्रवक्ता ने कहा कि बहरहाल, यह साबित हो गया कि यह (पथरीबल मुठभेड़) पुलिस और सेना का विशेष खुफिया सूचनाओं पर आधारित एक संयुक्त अभियान था।
इस प्रवक्ता ने कहा कि सैन्य अधिकारियों ने कल यह मामला बंद कर दिया है और श्रीनगर में न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को इस बारे में सूचित कर दिया गया है। वर्ष 2006 में सीबीआई ने कथित फर्जी मुठभेड़ के लिए सेना के पांच अधिकारियों पर अभियोग लगाया था और राज्य पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।
जांच के लिए यह मामला जनवरी 2003 में सीबीआई के सुपुर्द किया गया था। सीबीआई ने आरोप लगाया कि 7-राष्ट्रीय राइफल्स के अधिकारी और जवाऩ ब्रिगेडियर अजय सक्सेना, लेफ्टिनेंट कर्नल ब्रहेन्द्र प्रताप सिंह, मेजर सौरभ शर्मा, मेजर अमित सक्सेना और सूबेदार इदरीस खान ने फर्जी मुठभेड़ कर पांच बेकसूर नागरिकों को मार डाला और कहा कि ये लोग दक्षिण कश्मीर के छत्तीसिंहपोरा में सिखों पर हुए हमले में शामिल आतंकवादी थे।
दक्षिण कश्मीर के पथरीबल में 26 मार्च 2000 को पांच व्यक्ति मारे गए थे। सेना ने दावा किया था कि जो लोग मारे गए, वे 21 मार्च 2000 को सिख समुदाय के 35 सदस्यों को गोली मार कर मौत के घाट उतार देने के लिए जिम्मेदार थे। जब यह घटना हुई थी तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर थे।
प्रवक्ता ने बताया कि सीबीआई की जांच और मार्च 2012 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सेना ने श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से यह मामला ले लिया। उन्होंने बताया, 50 से अधिक गवाहों से जिरह की गई। इनमें कई नागरिक, राज्य सरकार और पुलिस के अधिकारी शामिल थे।
सीबीआई के 18 पन्नों के आरोपपत्र में कहा गया था कि सिख समुदाय के लोगों के मारे जाने के बाद उस इलाके में तैनात सेना की यूनिट परिणाम देने के लिए जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक दबाव में थी। प्रवक्ता ने बताया कि अतीत में जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के 59 मामलों में 123 सैन्य कर्मियों को दोषी पाया गया।
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