नई दिल्ली। यदि किसी को अपने सांवलेपन से ऎतराज है तो चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि अब वो दिन दूर नहीं जब ऎसे लोग अपना रंग बिल्कुल गोरा कर पाएंगे वो भी बहुत ही कम समय और कम पैसे में।
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऎसे जीन की खोज की है जो लोगों को गोरा बनाने के लिए उत्तरदायी है। वैज्ञानिकों ने इस जीन को "एसएलसी45ए2" नाम दिया है, जिस आने वाले समय में काम किया गया तो हो सकता है इस धरती पर सारे लोग गोरे ही गोरे नजर आएं।
लोगों को गोरे बनाने वाली इस जीन की खोज सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय के नेतृत्व में की गई। डॉ. नीरज के मुताबिक यह 22 हजार वर्ष पहले से ही भारत में पाया जाता रहा है, यह जीन मिलेनिन बनाने वाले दूसरे जीन को नियंत्रित भी करता है क्योंकि मिलेनिन कम बनने से इंसान का रंग गोरा होता जाता है।
अपनी इस क्रांतिकारी खोज के लिए वैज्ञानिकों ने भारत तथा विश्व की जातियों के पांच हजार डीएनए नमूनों का मिलान करते हुए पाया की गोरा बनाने वाले जीन संरचना यूरोप के लोगों में समान है। वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में ऎसे जीन के अलावा विभिन्न तरह तरह की संचरना पाई गई।
इस अध्ययन के लिए डॉ. नीरज तथा उनके सहयोगियों ने दक्षिण भारत में करीब 1228 लोगों की त्वचा के रंग का माप लिया तथा फिर अनुवांशिक विश्लेषण किया। इस शोध में पता चला कि एसएलसी45ए2 जीन त्वचा के रंग भिन्नता के 27 फीसदी को प्रस्तुत करता है इसी के चलते इसें गोरा बनाने वाला जीन कहा गया।
इसके अलावा इस शोध में दुनिया के 95 लोगों में जीन की जांच भी की तथा पाया कि यह गोरा बनाने वाला यह जीन 22 और 28 हजार साल पहले एक ही पूर्वज से यूरोप और भारत में पहुंचा। जबकि इस जीन की उत्पत्ति पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया के आस-पास के क्षेत्र में होना बताया गया है।
इस जीन की खोज से सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा जो अपना रंग सांवलेपन से गोरा करना चाहते हैं। इस जीन पर आधारित यदि कोई दवाई बाजार में आती है तो जरूर ही सांवले लोगों के लिए यह एक सौगात होगी।
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऎसे जीन की खोज की है जो लोगों को गोरा बनाने के लिए उत्तरदायी है। वैज्ञानिकों ने इस जीन को "एसएलसी45ए2" नाम दिया है, जिस आने वाले समय में काम किया गया तो हो सकता है इस धरती पर सारे लोग गोरे ही गोरे नजर आएं।
लोगों को गोरे बनाने वाली इस जीन की खोज सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय के नेतृत्व में की गई। डॉ. नीरज के मुताबिक यह 22 हजार वर्ष पहले से ही भारत में पाया जाता रहा है, यह जीन मिलेनिन बनाने वाले दूसरे जीन को नियंत्रित भी करता है क्योंकि मिलेनिन कम बनने से इंसान का रंग गोरा होता जाता है।
अपनी इस क्रांतिकारी खोज के लिए वैज्ञानिकों ने भारत तथा विश्व की जातियों के पांच हजार डीएनए नमूनों का मिलान करते हुए पाया की गोरा बनाने वाले जीन संरचना यूरोप के लोगों में समान है। वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में ऎसे जीन के अलावा विभिन्न तरह तरह की संचरना पाई गई।
इस अध्ययन के लिए डॉ. नीरज तथा उनके सहयोगियों ने दक्षिण भारत में करीब 1228 लोगों की त्वचा के रंग का माप लिया तथा फिर अनुवांशिक विश्लेषण किया। इस शोध में पता चला कि एसएलसी45ए2 जीन त्वचा के रंग भिन्नता के 27 फीसदी को प्रस्तुत करता है इसी के चलते इसें गोरा बनाने वाला जीन कहा गया।
इसके अलावा इस शोध में दुनिया के 95 लोगों में जीन की जांच भी की तथा पाया कि यह गोरा बनाने वाला यह जीन 22 और 28 हजार साल पहले एक ही पूर्वज से यूरोप और भारत में पहुंचा। जबकि इस जीन की उत्पत्ति पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया के आस-पास के क्षेत्र में होना बताया गया है।
इस जीन की खोज से सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा जो अपना रंग सांवलेपन से गोरा करना चाहते हैं। इस जीन पर आधारित यदि कोई दवाई बाजार में आती है तो जरूर ही सांवले लोगों के लिए यह एक सौगात होगी।
दुनिया में काले और गोरे के बीच चल रही अमानुष प्रवर्ति को विराम लगा जायेगा।
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