द्वारिकाधीश प्रभु के दिव्य दर्शन
द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है। द्धारिकाधीश प्रभु के मंदिर को गिरधरगढ़ भी कहा जाता है। यह मंदिर वैष्णव और वल्लभाचार्य संप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। द्वारकाधीश मंदिर शांत और शांत राजसमंद झील के एक शांत दृश्य प्रस्तुत करता है।
राजसमंद झील के किनारे बना ये विशाल मंदिर कई पर्यटकों को आकर्षित करता हैं, पुष्टिमार्ग की तरह यह मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है और वैष्णवजनों को खास तौर पर प्रिय है। दूर दूर से खास कर गुजरात और महाराष्ट्र से दर्शनार्थी यहां द्वारिकाधीश प्रभु के दिव्य दर्शन हेतू आते हैं । द्वारिकाधीश जी भगवान कृष्ण का रुप हैं।
प्रतिदिन मंदिर में बाहर से आए दर्शनार्थी लोगों की भीड़ रहती है, जब कोई खास उत्सव या विशेष दर्शन होते हैं यह संख्या और भी बढ जाती है। मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता है। प्रभु द्वारिकाधीश काफी समय पूर्व संवत 1726-27 में यहां ब्रज से कांकरोली पधारे थे। तब मेवाड़ यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिए प्रसिद्ध था ।
सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवलमंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। प्रभु द्वारिकाधीश के रोजाना आठ मुख्य दर्शन होते हैं जिनमें मंगला, शंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती एवं शयन हैं। कुछ विशेष दर्शन भी होते हैं जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, दिपावली, होली, अन्नकूट एवं छप्पनभोग आदि ।
दर्शनों का समय विशेष मनोरथ के दर्शन या अलग अलग मौसम के अनुरुप बदला जाता है, जैसे सर्दियों में भगवान के शयन के दर्शन जल्दी होते हैं। प्रभु द्वारिकाधीश के मंदिर में ही अन्य दर्शनीय स्थल भी है जैसे मथुराधीश जी, लड्डु गोपाल, परिकृमा, मंदिर का समयसूचक घंटा, मंदिर का बगीचा, तुलसी क्यारा, मंदिर की ध्वझा व प्रसाद घर आदि ।
द्वारिकाधीश मंदिर का एक बडा सा समय सूचक घंटा है जो हर एक घंटे में बजाया जाता है और इसकी आवाज पुरे नगर में काफी दूर दूर तक सुनाई देती है, प्रभु द्वारिकाधीश मंदिर में ही एक पुस्तकालय भी है। जहां बहुत ही पुरानी एवं अमुल्य पुस्तकें हैं ।
द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है। द्धारिकाधीश प्रभु के मंदिर को गिरधरगढ़ भी कहा जाता है। यह मंदिर वैष्णव और वल्लभाचार्य संप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। द्वारकाधीश मंदिर शांत और शांत राजसमंद झील के एक शांत दृश्य प्रस्तुत करता है।
राजसमंद झील के किनारे बना ये विशाल मंदिर कई पर्यटकों को आकर्षित करता हैं, पुष्टिमार्ग की तरह यह मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है और वैष्णवजनों को खास तौर पर प्रिय है। दूर दूर से खास कर गुजरात और महाराष्ट्र से दर्शनार्थी यहां द्वारिकाधीश प्रभु के दिव्य दर्शन हेतू आते हैं । द्वारिकाधीश जी भगवान कृष्ण का रुप हैं।
प्रतिदिन मंदिर में बाहर से आए दर्शनार्थी लोगों की भीड़ रहती है, जब कोई खास उत्सव या विशेष दर्शन होते हैं यह संख्या और भी बढ जाती है। मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता है। प्रभु द्वारिकाधीश काफी समय पूर्व संवत 1726-27 में यहां ब्रज से कांकरोली पधारे थे। तब मेवाड़ यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिए प्रसिद्ध था ।
सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवलमंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। प्रभु द्वारिकाधीश के रोजाना आठ मुख्य दर्शन होते हैं जिनमें मंगला, शंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती एवं शयन हैं। कुछ विशेष दर्शन भी होते हैं जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, दिपावली, होली, अन्नकूट एवं छप्पनभोग आदि ।
दर्शनों का समय विशेष मनोरथ के दर्शन या अलग अलग मौसम के अनुरुप बदला जाता है, जैसे सर्दियों में भगवान के शयन के दर्शन जल्दी होते हैं। प्रभु द्वारिकाधीश के मंदिर में ही अन्य दर्शनीय स्थल भी है जैसे मथुराधीश जी, लड्डु गोपाल, परिकृमा, मंदिर का समयसूचक घंटा, मंदिर का बगीचा, तुलसी क्यारा, मंदिर की ध्वझा व प्रसाद घर आदि ।
द्वारिकाधीश मंदिर का एक बडा सा समय सूचक घंटा है जो हर एक घंटे में बजाया जाता है और इसकी आवाज पुरे नगर में काफी दूर दूर तक सुनाई देती है, प्रभु द्वारिकाधीश मंदिर में ही एक पुस्तकालय भी है। जहां बहुत ही पुरानी एवं अमुल्य पुस्तकें हैं ।
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