शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दुसरों की सेवा करना ही धनतेरस है - साध्वी प्रियरजना श्री



दुसरों की सेवा करना ही धनतेरस है - साध्वी प्रियरजना श्री

सरस्वती महापूजन सम्पन्न


बाड़मेर स्थानीय जिन कानितसागर सूरी आराधना भवन में चातुमासिक विराजित पूज्य साध्वीवर्या मधुरभाषी व्याख्यात्री श्री प्रिय रजंना श्री म.सा. ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि धन तेरस का अर्थ धन की वर्षा से नहंी है लोग आज के दिन चांदी स्टील आदि के बर्तन खरीदकर धन तेरस मनाते है किन्तु असली धन तेरस है दुखियों के दु:ख दर्द दूर करने का सकल्प लेना। संस्कृत में इसका अर्थ होता है - धऩतेरस -तुम्हारा रसयानी प्राण , मनोभाव धन्य हो जाये, दूसरों की सेवा करके तुम्हारा जीवन रस कृतार्थ हो जाये तो समझों आज धन तेरस हो गर्इ। यदि आज के दिन आपने एक भी दु:खी प्राणी का दु:ख दर्द मिटा दिया । किसी अस्पताल में जाकर रोगियों कि सार संभाल ले ली उन्हें सान्तवना दी और उनकों सुख शांति पहुंचार्इ तो समझ लो आपकी धनतेरस वास्तव में धनतेरस हो गर्इ अन्यथा धन की पूजा करके चाहे तेरस मनाओं या चौहदस मनाओं उससे कोर्इ फर्क नहीं पड़ता दिलावली के पंचपर्वो के आरंभ में पहला पर्व धन तेरस का पर्व अपने आप को जीवन में परहित एवं परोपकार की प्ररेणा देता है नि:स्वार्थ और निरपेक्ष भाव से जितना बन सके दुसरों की सेवा सहायता का सकल्प करना और उसके अपनी धन सम्पति का सदुपयोग करना यह लक्ष्मी के आमंत्रण की पूर्व भूमिका है जो परोपकार करेगा लक्ष्मी स्वयं उसके द्वार पर आकर दस्तक देगीं।

महाभारत आदि पुराणों के अनुसार कार्तिक वदी तेरस के दिन धनवन्तरी प्रकट हुए इसलिए यह धन तेरस धनवन्तरी जन्म दिन के रूप में मनार्इ जाती है धन तेरस के दिन नये वस्त्र नये बर्तन, चांदी सिक्के आदि खरीदने की तरह जीवन के लिये कुछ नये सकल्प भी ग्रहण कर लिजियें । इस वर्ष क्या विषेष काम करना है किस शुभ काम में अपनी लक्ष्मी का कितना नियाेंजन करना है इसकी एक कल्पना भी मन में लायेंगें तो धन तेरस आतिमक धन व पुण्य लक्ष्मी कमाने में आपकी सहायता करेगी। धन के स्वामी बनो, दास नहीं।

साध्वी श्री प्रिय दिव्याजना श्री ने उतराध्ययन खुद के अध्ययन का मार्मिक निवेदन करते हुए कहा कि जो विवेकी होता है वह बहुभुत होता है। पांच कारणों से जीव ज्ञान षिक्षा प्राण नहीं कर सकता है 1 अभिमान 2 क्रेाध, 3. प्रमाद 4. रोग 5. आलस्य।

हमारा तप ही ज्योति अर्थात अगिन स्वरूप है जो हमारे कर्म रूपी इर्ंधन को जलाने वाला है आत्मा ही ज्योति कुण्ड है मन,वचन और काया के शुभ योग से होने वाला शुभ व्यापार घी, है दया और विनय रूप है।

साध्वी श्री प्रिय शुभांजना श्री ने कहा जिसमें स्नान कर आत्मा कर्म रूपी मैल को दूर कर सकती है ब्रह्राचर्य शांतितीर्थ है जिसके सेवन से आत्मा राग द्वेष रूप पाप से मुक्त हो सकती है समझदार व्यकित वृहत हंसी मंजाक नहीं करता है। अपनी इनिद्रयों को वष में रखता है किसी की ग्रहा बात को प्रकट करने वाला नहीं होता है। सदाचारों का पालन करने वाला होता है खाने-पिने में अत्यंत आसक्त न हो। बार-बार का्रेध नहीं करता है। कभी झूठ नहीं बोलता है इन गुणों को जीवन में आत्मसात करने वाला ही सम्यक ज्ञान हासिल कर सकता है।

खरतरगछ संघ के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं उपाध्यक्ष भूरचंद सखलेषा ने बताया कि आज दोहपर में विधा की देवी सरस्वती माता का महापूजन सम्पन्न हुआ जिसमें सैकडों की संख्या में बालक बालिकाओं एवं महिलाओं व पुरूषों ने सफेद वस्त्रों में भाग लिया बाद में पूज्य साध्वी वर्या के द्वारा विभिन्न मंत्रोचार एवं वासक्षेप से महापूजन सम्पन्न हुआ इसी कड़ी में कौन बनेगा सुपर सरस्वती प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें प्रथम कंचन सखलेषा, द्वितीय पूंजा डूंगरवाल, तृतीय जिज्ञासा तातेड़़ रहे। बाद में प्रभावना का वितरण किया गया। आज से छठ तप की आराधना प्रारम्भ होगी। प्रभावना वितरीत की गर्इ एवं रात्रि में भकित संध्या का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मांगीलाल मालू, भूरचंद सखलेषा, सोहनलाल सखलेशा, जगदीष बोथरा,पारसमल मेहता, बाबूलाल तातेड़, मोहनलाल मालू, मेाहनलाल संखलेषा, बषीधर बोथरा, बाबूलाल छाजेड़, मांगीलाल धारीवाल, मांगीलाल छाजेड़,, सम्पतराज संखलेषा, खेतमल तातेड़,, रमेष मालू, नरेष लूणीया, सुनिल छाजेड़, राजेन्द्र वडेरा, सहित सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपसिथत थे।

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