शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

foto....दर्शनीय हें गोपी तालाब और रुख्मनी मंदिर





दर्शनीय हें गोपी तालाब और रुख्मनी मंदिर 

कृष्ण की 16 हजार रानियां थीं, लेकिन इनमें रुक्मिणी उनकी पटरानी थीं। द्वारकाधीश मंदिर से दो किलोमीटर आगे कृष्ण की मुख्य रानी यानी पटरानी रुक्मिणी देवी का मंदिर है। ये मंदिर समंदर के किनारे है। द्वारकाधीश कृष्ण को रणछोड़ भी कहते हैं, क्योंकि वे 17 बार जरासंध से युद्ध करने के बाद मथुरा छोड़ कर द्वारका में आ बसे। एक बार कृष्ण और रुक्मिणी ने दुर्वासा ऋषि को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। दोनों ऋषि को लेकर अपने घर जा रहे थे, तभी रास्ते में रुक्मिणी को प्यास लगी। कृष्ण और रुक्मिणी ने खुद पानी पीया, पर दुर्वासा ऋषि को पानी पिलाना भूल गए। नाराज ऋषि ने भोजन करने से मना कर दिया और दोनों को शाप दे डाला। मान्यता है कि ऋषि के शाप के कारण द्वारका नगरी का पानी भी पीने योग्य नहीं है। शाप के कारण रुक्मिणी को अपने पति कृष्ण से अलग रहते हुए लंबे समय तक जंगल में प्रवास करना पड़ा।




समुद्र के किनारे बना रुक्मिणी का मंदिर वास्तुकला का सुंदर नमूना है। इस मंदिर में पानी दान करने की महत्ता है। श्रद्धालु यहां अपनी इच्छानुसार पानी का दान करते हैं। ये पानी गोशालाओं में और जरूरतमंदों तक पहुंचाया जाता है। मंदिर के बाहर बड़ी संख्या में साधु बैठे रहते हैं। श्रद्धालु उन्हें भी दान देते हैं।



गोपी तालाब मंदिर- द्वारका शहर से कुछ किलोमीटर बाहर गोपी तालाब है। यहां एक तालाब है, जिसके बारे में मान्यता है कि कृष्ण के साथ रास रचाने वाली गोपियों ने यहां जल समाधि ले ली थी। गोपी तालाब के आसपास कई गोपी तालाब मंदिर हैं। ये सभी मंदिर निजी हैं और सभी के पुजारी मंदिर के अति प्राचीन होने का दावा करते हैं। गोपी तालाब मंदिर से निकाली जाने वाली मिट्टी को सफेद चंदन कहा जाता है। श्रद्धालु इसे चंदन की तरह इस्तेमाल करने के लिए अपने साथ ले जाते हैं।



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