लखनऊ । राजनीतिक विवादों को सुलझाने में माहिर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर के परिवार की सियासी रार खुलकर सामने आ गई। बड़े पुत्र पंकज शेखर ने भाजपा का दामन थाम कर सलेमपुर सीट से दावेदारी ठोंक अपने भतीजे रविशंकर सिंह उर्फ पप्पू भैया की मुश्किलें बढ़ा दी। वहीं बलिया के अभेद्द दुर्ग में छोटे भाई सांसद नीरज शेखर की राह भी अब आसान नहीं रहेगी।
ताउम्र समाजवादी सोच के अलम्बरदार रहे चंद्रशेखर का कुनबा विचारधाराओं के अलग-अलग खांचों में बंट गया है। युवा तुर्क की राजनीतिक विरासत पाने की जंग में उनके उत्तराधिकारियों को उनके चिंतन व मूल्यों से कोई सरोकार नहीं रहा। वोट के गणित और चुनावी जीत की चाहत में चंद्रशेखर के बेहद करीब रहे पारिवारिक रिश्ते में पौत्र रविशंकर सिंह उर्फ पप्पू सिंह अर्से पहले ही बसपा के साथ हो चुके थे। वर्तमान में विधानपरिषद सदस्य पप्पू सिंह सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी भी है।
उल्लेखनीय है कि नए परिसीमन में स्व. चंद्रशेखर का पैत्रक गांव इब्राहिमपट्टी अब बलिया के बजाए सलेमपुर संसदीय सीट का हिस्सा बन चुका है। इसी सीट पर गत लोकसभा चुनाव में पप्पू सिंह भाजपा से गठबंधन में जनता दल यू के प्रत्याशी थे लेकिन इस बार बसपा के हाथी पर सवारी कर सांसद बनना चाहते हैं लेकिन पंकज शेखर का भाजपाई हो जाना पप्पू सिंह के लिए शुभ नहीं है।
जानकारों का मानना है पंकज के इस फैसले से केवल सलेमपुर के समीकरण ही नहीं बदलेंगे बल्कि युवा तुर्क चंद्रशेखर के नाम से पहचानी जाने वाली बलिया संसदीय सीट पर छोटे भाई नीरज शेखर का सपा सांसद बने रहना भी मुश्किल होगा। परिसीमन के बाद भूमिहार एवं ब्राह्मण बहुल वाले इस इलाके में नया समीकरण बनने के कयास लगाए जा रहे हैं। वोटों के विभाजन में भाजपा खुद को अधिक मजबूत मान रही है। पंकज शेखर के आने से ताकत मिलने का दावा करते फेफना क्षेत्र से भाजपा के विधायक उपेंद्र तिवारी का कहना है कि मोदी लहर और सपा व कांग्रेस के खिलाफ माहौल भाजपा के पक्ष में है।
सूत्रों का कहना है कि स्व.चंद्रशेखर के परिजनों में आपसी अनबन की चर्चा काफी समय से होती रही है। तेरहवीं कार्यक्रम के दौरान ही पंकज शेखर ने सियासी विरासत का सवाल उठाया था लेकिन समाजवादी पार्टी ने नीरज को आगे कर उनकी उम्मीदों को झटका दिया था। बता दें कि चंद्रशेखर 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार बलिया से लोकसभा चुनाव जीते और उसके बाद से 1984 का चुनाव छोड़कर लगातार विजयी होते रहे लेकिन परिवारिक बिखराव में जीत का यह सिलसिला बनाए रखना नीरज शेखर के लिए आसान नहीं।
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