शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

विधानसभा क्षेत्र ओसियां: गढ़ बचाने की चुनौती

ओसियां। परिसीमन के बाद से क्षेत्र की तस्वीर और जातिगत समीकरण बदले हुए हैं। कांग्रेस का गढ़ रहे इस क्षेत्र में 1990 में जनता दल के रामनारायण विश्नोई और 2003 में भाजपा के बन्नेसिंह राठौड़ ने जीत हासिल की। इसके अलावा हमेशा कांग्रेस ने यहां अपना दबदबा जमाए रखा है। गत चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज परसराम मदेरणा के पुत्र महिपाल मदेरणा ने यहां से जीते थे। ओसियां: गढ़ बचाने की चुनौती
विधानसभा क्षेत्र ओसियां
विधायक महिपाल मदेरणा
कुल मतदाता 1,99,162

दोनों पार्टियों में बराबर उम्मीदवार
भंवरी प्रकरण में मंत्री पद गंवाने के बाद अब उनके जेल में होने से यहां चुनावी समीकरण बदले हैं। महिपाल की पत्नी लीला व पुत्री दिव्या का नाम कांग्रेस के दावेदारों में आगे है। पाली सांसद बद्रीराम जाखड़ भी अपनी पुत्री को यहां से चुनाव लड़वाने की जुगत में हैं। भाजपा के प्रमुख दावेदारों में नारायणराम बेड़ा, रामनारायण डूडी, शंभूसिंह खेतासर व भैराराम सियोल हैं।

जातिगत समीकरणों से जीत की उम्मीद कम!
मथानिया में चाय की थड़ी पर बैठे लोगों से चुनावी चर्चा छेड़ी, तो वे हार-जीत का समीकरण बताने लगे। उन्होंने कहा कि वर्षो से यहां कांग्रेस के काबिज होने के बावजूद पेयजल संकट कायम है। योजनाएं खूब हैं, लेकिन क्रियान्वयन नहीं हो रहा। विजयसिंह राज पुरोहित, सुखलाल जैन व बाबूदीन को नरेगा में लूट की शिकायत है। ऎसे में इस बार जातिगत समीकरणों से ही कोई जीत जाएगा, ऎसा लगता नहीं। तिवंरी में उपसरपंच रजनेश पारख ने कांग्रेस सरकार की उपलब्घियां बताने में कसर नहीं छोड़ी, लेकिन ओमप्रकाश राठी व युवा आनंद कासक ने भी उसी तरीके से उसका जवाब दिया। उन्होंने कहा कि वर्षो से महाविद्यालय नहीं है, अस्पताल में सुविधाएं नहीं है, तो फिर विकास कहां गया।

ओसियां के जगदीश के अनुसार पिछले कई वर्षो से दिग्गज नेता आए और गए, लेकिन उस अनुपात में विकास नहीं हुआ। समस्याएं अभी तक मुंह बाए खड़ी हैं। इस बार मतदाता चुनाव में पूरा हिसाब चुकता करने के लिए तैयार हैं।

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