बाड़मेर।मोहनगिरी के परिवार ने कभी समृद्धि नहीं देखी, लेकिन सुकून जरूर था। रहने के लिए पक्का घर भले ही नहीं था, लेकिन घास-फूस की छत हमेशा रही। मौसम बेमौसम होने वाली बीमारी का इलाज करवाने के लिए निजी चिकित्सालय की दहलीज तक जाने का दम तो कभी नहीं रहा, पर बिना उपचार के तड़फने की नौबत कभी न थी। घर में भोजन के भण्डार भरे हुए न रहे हो, पर भूखे पेट सोने की मजबूरी नहीं रही। लेकिन अब ऎसा नहीं है। अब मोहनगिरी के घर में न सुकून है, न छत है, न इलाज के लिए रूपए है। पूरे परिवार के लिए भूख से मरने की नौबत आ गई है।
आज से करीब तीन वर्ष पहले महाबार निवासी मोहनगिरी का एक पैर सूना पड़ गया। स्वयं मोहन व परिवार के अन्य सदस्यों ने इसे हल्के में लिया। समय बीतने पर मामला गंभीर हो गया और घुटने तक पैर सूख गया। स्थानीय चिकित्सकों की सलाह पर उसको अहमदाबाद ले जाया गया।
वहां पर चिकित्सकीय जांच में पता चला कि उसके घुटने में कैंसर है। उपचार के दौरान उसका पैर काटना पड़ा। मोहनगिरी विकलांग हो गया। निम्नवर्गीय परिवार ने जमीन बेचकर उपचार करवाया और सोचा कि चलो जिन्दगी तो बच गई, लेकिन मुसीबत टली नहीं बल्कि पूरे वेग के साथ ढाई वर्ष बाद फिर आ गई। आज से करीब छह माह पहले मोहनगिरी के पैर में पुन: दर्द शुरू हुआ। फिर से अहमदाबाद जाकर उपचार करवाने लायक रूपए नहीं होने के कारण उसने दर्द को सहन करने में ही अपनी बची हुई ऊर्जा नष्ट कर दी।
पांव में पड़ गए कीड़े
दर्द सहन करने का नतीजा यह हुआ कि मोहनगिरी के पांव में कीड़े पड़ गए। हालत बिगड़ने पर स्थानीय चिकित्सकों से उपचार लेना शुरू किया। लेकिन तब तक बहुत देर हो गई। पिछले चार माह से यह स्थिति है कि पांच सदस्यीय परिवार भरपेट रोटी नहीं खाकर मोहन को प्रतिमाह आठ-दस हजार रूपए की दवाएं खिला रहा है, लेकिन उसकी देह को बीमारी से मुक्ति नहीं मिल रही है। दवा के रूपयों का जुगाड़ अब तक गांव वालों, पड़ौसिंयों, रिश्तेदारों व घर में बचे हुए गहनों से होता रहा, लेकिन अब सभी स्त्रोत जवाब दे चुके हैं।
बरसात ने छीन ली छांव
पचास वर्षीय मोहनगिरी के परिवार में तीन नाबालिग पुत्र व एक पुत्री है। हाल ही में हुईबरसात ने इस परिवार की घास फूस की छांव भी छीन ली। घर में दो कच्चे झोंपे थे, दोनों ही गिर गए। आसमान रूपी छत के नीचे चारपाई पर लेटा दर्द से कराहता मोहन ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहा है कि कोई फरिश्ता भेज दे अथवा मौत दे दे।
भगवान ही मालिक है
मोहनगिरी के परिवार का अब कोई मददगार नहीं है। पूरे परिवार का भगवान ही मालिक है। यह बी पी एल भी नहीं है। इसलिए राशन का सस्ता गेहूं भी नसीब नहीं हो रहा है। मदद नहीं मिली तो पूरा परिवार तबाह हो जाएगा।
-हरिसिंह भाटी, पड़ौसी
आज से करीब तीन वर्ष पहले महाबार निवासी मोहनगिरी का एक पैर सूना पड़ गया। स्वयं मोहन व परिवार के अन्य सदस्यों ने इसे हल्के में लिया। समय बीतने पर मामला गंभीर हो गया और घुटने तक पैर सूख गया। स्थानीय चिकित्सकों की सलाह पर उसको अहमदाबाद ले जाया गया।
वहां पर चिकित्सकीय जांच में पता चला कि उसके घुटने में कैंसर है। उपचार के दौरान उसका पैर काटना पड़ा। मोहनगिरी विकलांग हो गया। निम्नवर्गीय परिवार ने जमीन बेचकर उपचार करवाया और सोचा कि चलो जिन्दगी तो बच गई, लेकिन मुसीबत टली नहीं बल्कि पूरे वेग के साथ ढाई वर्ष बाद फिर आ गई। आज से करीब छह माह पहले मोहनगिरी के पैर में पुन: दर्द शुरू हुआ। फिर से अहमदाबाद जाकर उपचार करवाने लायक रूपए नहीं होने के कारण उसने दर्द को सहन करने में ही अपनी बची हुई ऊर्जा नष्ट कर दी।
पांव में पड़ गए कीड़े
दर्द सहन करने का नतीजा यह हुआ कि मोहनगिरी के पांव में कीड़े पड़ गए। हालत बिगड़ने पर स्थानीय चिकित्सकों से उपचार लेना शुरू किया। लेकिन तब तक बहुत देर हो गई। पिछले चार माह से यह स्थिति है कि पांच सदस्यीय परिवार भरपेट रोटी नहीं खाकर मोहन को प्रतिमाह आठ-दस हजार रूपए की दवाएं खिला रहा है, लेकिन उसकी देह को बीमारी से मुक्ति नहीं मिल रही है। दवा के रूपयों का जुगाड़ अब तक गांव वालों, पड़ौसिंयों, रिश्तेदारों व घर में बचे हुए गहनों से होता रहा, लेकिन अब सभी स्त्रोत जवाब दे चुके हैं।
बरसात ने छीन ली छांव
पचास वर्षीय मोहनगिरी के परिवार में तीन नाबालिग पुत्र व एक पुत्री है। हाल ही में हुईबरसात ने इस परिवार की घास फूस की छांव भी छीन ली। घर में दो कच्चे झोंपे थे, दोनों ही गिर गए। आसमान रूपी छत के नीचे चारपाई पर लेटा दर्द से कराहता मोहन ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहा है कि कोई फरिश्ता भेज दे अथवा मौत दे दे।
भगवान ही मालिक है
मोहनगिरी के परिवार का अब कोई मददगार नहीं है। पूरे परिवार का भगवान ही मालिक है। यह बी पी एल भी नहीं है। इसलिए राशन का सस्ता गेहूं भी नसीब नहीं हो रहा है। मदद नहीं मिली तो पूरा परिवार तबाह हो जाएगा।
-हरिसिंह भाटी, पड़ौसी
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