शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

धार्मिक स्थलों और प्राकृतिक सौंदर्य का मेल है रामेश्वरम



हिंदू धर्म में तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित रामेश्वरम ज्योतिर्लिग एक विशेष स्थान रखता है। यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उत्तर में जितना महत्व काशी का है, उतना ही महत्व दक्षिण में रामेश्वरम का भी है जो सनातन धर्म के चार धामों में से एक है। कहा जाता है कि रामेश्वरम ज्योतिर्लिग की विधिपूर्वक आराधना करने से मनुष्य ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु ज्योतिर्लिग पर गंगाजल चढ़ाता है, वह साक्षात जीवन से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
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तीर्थस्थल रामेश्वरम

रामेश्वरम चेन्नई से करीब 425 मील दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित एक सुंदर टापू है, जिसे हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी चारों तरफ से घेरे हुए हैं। प्राचीन समय में यह टापू भारत के साथ सीधे जुड़ा हुआ था। बाद में धीरे-धीरे सागर की तेज लहरों ने इसे काट दिया, जिससे यह टापू चारों ओर से पानी से घिर गया। फिर अंग्रेजों ने एक जर्मन इंजीनियर की मदद से रामेश्वरम् को जोड़ने के लिए एक रेलवे पुल का निर्माण किया।

पौराणिक कथा

जितना प्रसिद्ध दक्षिण का रामेश्वरम मंदिर है उतना ही इसका पुराना इतिहास है। कहते हैं कि भगवान श्री राम जब रावण का वध करके और माता सीता को कैद से छुड़ाकर अयोध्या जा रहे थे तब उन्होंने मार्ग में गन्धमादन पर्वत पर रुक कर विश्राम किया था। उनके आने की खबर सुनकर ऋषि-महर्षि उनके दर्शन के लिए वहां पहुंचे। ऋषियों ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने पुलस्त्य कुल का विनाश किया है, जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पातक लग गया है। श्रीराम ने पाप से मुक्ति के लिए ऋषियों के आग्रह से ज्योतिर्लिग स्थापित करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने हनुमान से अनुरोध किया कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर शिवलिंग लेकर आएं लेकिन हनुमान शिवलिंग की स्थापना की निश्चित घड़ी पास आने तक नहीं लौट सके। जिसके बाद सीताजी ने समुद्र के किनारे की रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना डाला। श्रीराम ने प्रसन्न होकर इसी रेत के शिवलिंग को प्रतिष्ठापित कर दिया। यही शिवलिंग रामनाथ कहलाता है। बाद में हनुमान के आने पर उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को उसके साथ ही स्थापित कर दिया गया। इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा।

रामेश्वर मंदिर की संरचना

रामेश्वरम का मंदिर भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर एक हजार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा है। चालीस-चालीस फुट ऊंचे दो पत्थरों पर चालीस फुट लंबे एक पत्थर को इतने सलीके से लगाया गया है कि दर्शक आश्चर्यचकित हो जाते हैं। विशाल पत्थरों से मंदिर का निर्माण किया गया है। माना जाता है कि ये पत्थर श्रीलंका से नावों पर लाये गये हैं।

24 कुओं का विशेष महत्व

श्री रामेश्वरम में 24 कुएं है, जिन्हें 'तीर्थ' कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन कुओं के जल से स्नान करने पर व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यहां का जल मीठा होने से श्रद्धालु इसे पीते भी हैं। मंदिर-परिसर के भीतर के कुओं के सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि ये कुएं भगवान श्रीराम ने अपने अमोघ बाणों के द्वारा तैयार किये थे। उन्होंने अनेक तीर्थो का जल मंगाकर उन कुओं में छोड़ा था, जिसके कारण उन कुओं को आज भी तीर्थ कहा जाता है।

अन्य तीर्थ स्थल आप यहां के सेतु माधव, बाइस कुण्ड, विल्लीरणि तीर्थ एकांत राम, कोदण्ड स्वामी मंदिर, सीता कुण्ड जैसे धार्मिक स्थलों का दर्शन कर सकते हैं। वैसे रामेश्वरम केवल तीर्थस्थल ही नहीं है बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय स्थल है। यहां देखने के लिए आपको और भी बहुत कुछ मिल जाएगा।

कैसे पहुंचें

रामेश्वरम से 154 किलोमीटर की दूरी पर मदुरई हवाई अड्डा है। आप यदि रेल के जरिए जाना चाहते हैं तो रामेश्वरम रेलवे स्टेशन देश के विभिन्न शहरों से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए मुंबई से सीधी रेलगाड़ियां चलती है। अगर आप रामेश्वरम घूमना चाहते हैं तो यहां आपको यातायात की हर सुविधा उपलब्ध मिलेगी।

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