सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

बाड़मेर राजनितिक शख्शियत। । मरुधर की राजनीती के पथ प्रदर्शक।रामदान चौधरी


बाड़मेर राजनितिक शख्शियत। । मरुधर की राजनीती के पथ प्रदर्शक।रामदान  चौधरी 

समाज में शिक्षा क्रान्ति के जनक 

वर्तमान बाड़मेर जिले के पश्चिमी भाग को मालानी परगना के नाम से जाना जाता है. यह आजादी पूर्व जोधपुर रियासत का सीमान्त परगना था. इस क्षेत्र के पश्चिम में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की सीमा लगती थी. आजादी पूर्व मालानी का फैलाव जसोल से सिंध तक १०० मील लम्बा और ७५ मील चौड़ा था. इस परगना में ५०३ गाँव थे. 

सन १८३६ में जाटों का एक काफिला मालानी क्षेत्र में आकर रुका. इनमें एक परिवार तेजाजी डऊकिया का भी था. ये सन १८३० में बाड़मेर से ३० की.मी. दक्षिण-पूर्व में स्थित सरली गाँव में बस गए. तेजाजी के पूर्वज नागौर के 'पिरोजपुरा' गाँव के मूल निवासी थे. परन्तु कालांतर में झंवर और आगोलाई में बस गए थे और आगोलाई से ही प्रस्थान कर तेजाजी ने 'सरली' को अपनी कर्म स्थली बनाया.  

चौधरी रामदानजी का जन्म चैत बदी ३ संवत १९४० तदनुसार १५ मार्च १८८४ को सरली नामक गाँव में चौधरी तेजारामजी के यहाँ हुआ था.  आपका गोत्र डऊकिया तथा नख तंवर था. आपकी माताजी का नाम श्रीमती दौली देवी था. आप भाई बहीनों में सबसे छोटे थे. जब आप सात वर्ष के थे तब आपका परिवार १८९१ में सरली से खड़ीन आ गया. आप जब १३ वर्ष के थे तब आपके पिताजी का देहांत हो गया था. इसके दो वर्ष बाद १८९९ में (विक्रम संवत १९५६) में मारवाड़ में भयंकर छपनिया अकाल पड़ा तो आपको परिवार के सिंध की और पलायन करना पड़ा. रामदान जी को रेल लाइन बिछाने में काम मिल गया. उसी समय आपके बड़े भाई रूपाजी का देहांत हो गया इसलिए नौकरी छोड़ खड़ीन वापस आना पड़ा. १९०० से १९०५ तक आप गाँव में रहकर खेती करते रहे. इस दौरान १९०४ में आपकी शादी श्रीमती कस्तूरी देवी भाकर के साथ हो गयी. १५ मार्च १९०५ में पुनः आपको रेलवे में ट्रोली-मैन के पद पर रख लिया. १९०७ में आपको जमादार के पद पर पदोन्नत किया. १९०७ से १९२० तक रेलवे में जमादार के पद पर रहे. इस दौरान आपने स्वतः के प्रयास से पढ़ना लिखना सीख लिया. १९२० में आपको रेल-पथ निरिक्षक के पद पर पदोन्नत कर समदड़ी में लगा दिया. १९२३ में आपको जोधपुर में भेजा गया. जोधपुर प्रवास के दौरान आपका परिचय कई प्रबुद्ध जाटों से हुआ.  

अक्टूबर १९२५ में कार्तिक पूर्णिमा को अखिल भारतीय जाट महासभा का एक अधिवेसन पुष्कर में हुआ था उसमें मारवाड़ के जाटों में जाने वालों में चौधरी गुल्लाराम, चौधरी मूलचंद जी सियाग,मास्टर धारासिंह, चौधरी रामदान जी, भींया राम सिहाग आदि पधारे थे. इस जलसे की अध्यक्षता भरतपुर के तत्कालीन महाराजा श्री किशनसिंह जी ने की. इस समारोह में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली के अलावा राजस्थान के हर कोने से जाट सम्मिलित हुए थे. इन सभी ने पुष्कर में अन्य जाटों को देखा तो अपनी दशा सुधारने का हौसला लेकर वापिस लौटे. उनका विचार बना किमारवाड़ में जाटों के पिछड़ने का कारण केवल शिक्षा का आभाव है 

कुछ समय बाद चौधरी गुल्लारामजी के रातानाड़ा स्थित मकान पर चौधरी मूलचंद सिहाग नागौर, चौधरी भिंयारामजी सिहाग परबतसर, चौधरी गंगारामजी खिलेरी नागौर, बाबू दूधारामजी औरमास्टर धारा सिंह की एक मीटिंग हुई. यह तय किया गया कि किसानों से विद्या प्रसार के लिए अनुरोध किया जाए. तदनुसार २ मार्च १९२७ को ७० जाट सज्जनों की एक बैठक श्री राधाकिसन जी मिर्धा की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में चौधरी गुल्लारामजी ने जाटों की उन्नति का मूलमंत्र दिया कि - "पढो और पढाओ" . साथ ही एक जाट संस्था खोलने के लिए धन की अपील की गयी. यह तय किया गया कि बच्चों को निजी स्कूल खोल कर उनमें भेजने के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजा जाय पर उनके लिए ज्यादा से ज्यादा होस्टल खोले जावें. चौधरी गुल्लारामजी ने इस मीटिंग में अपना रातानाडा स्थित मकान एक वर्ष के लिए छात्रावास हेतु देने और बिजली, पानी, रसोइए का एक वर्ष का खर्च उठाने का वायदा किया. इस तरह ४ अप्रेल १९२७ को चौधरी गुल्लारामजी के मकान में "जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना की । इसमें चौधरी रामदानजी का भी पूरा योगदान रहा. आपने न केवल मासिक चन्दा देकर बल्कि रेलवे के अन्य लोगों से भी काफी सहायता दिलवाई. आप लंबे समय तक तन-मन-धन से इस संस्था की सहायता करते रहे.  

१९३० तक जब जोधपुर के छात्रावास का काम ठीक ढंग से जम गया और जोधपुर सरकार से अनुदान मिलने लग गया तब चौधरी मूलचंद जी, बल्देवराम जी मिर्धा, भींया राम सियाग, गंगाराम जी खिलेरी, धारासिंह एवं अन्य स्थानिय लोगों के सहयोग से बकता सागर तालाब पर २१ अगस्त १९३० को नए छात्रावास की नींव नागौर में डाली । बाद में चौधरी रामदानजी के सहयोग से बाडमेर में व १९३५ में चौधरी पूसरामजी पूलोता, डांगावास के महाराजजी कमेडिया, प्रभुजी घतेला, तथा बिर्धरामजी मेहरिया के सहयोग से मेड़ता में छात्रावास स्थापित किया गया 

आपने जाट नेताओं के सहयोग से अनेक छात्रावास खुलवाए । बाडमेर में १९३४ में चौधरी रामदानजी डऊकिया की मदद से छात्रावास की आधरसिला राखी । १९३५ में मेड़ता छात्रवास खोला । आपने जाट नेताओं के सहयोग से जो छात्रावास खोले उनमें प्रमुख हैं:- सूबेदार पन्नारामजी ढ़ीन्गसरा व किसनाराम जी रोज छोटी खाटू के सहयोग से डीडवाना में, इश्वर रामजी महाराजपुरा के सहयोग से मारोठ में, भींयाराम जी सीहाग के सहयोग से परबतसर में, हेतरामजी के सहयोग से खींवसर में छात्रावास खुलवाए । इन छात्रावासों के अलावा पीपाड़, कुचेरा, लाडनुं, रोल, जायल, [[Alay|अलाय, बीलाडा, रतकुडि़या, आदि स्थानों पर भी छात्रावासों की एक श्रंखला खड़ी कर दी । इस प्रकार मारवाड़ के जाट नेताओं जिसमें चौधरी बल्देवराम मिर्धा, चौधरी गुल्लारामजी, चौधरी मूलचंदजी, चौधरी भींयारामजी, चौधरी रामदानजी बाडमेर आदि प्रमुख थे, ने मारवाड़ में छात्रावासों की एक श्रंखला स्थापित करदी तथा इनके सुचारू संचालन हेतु एक शीर्ष संस्था "किसान शिक्षण संस्थान जोधपुर" स्थापित कर जोधपुर सरकार से मान्यता ले ली, जिसे सरकार से छात्रावासों के संचालन हेतु आर्थिक सहायता प्राप्त होने लगी.  इस शिक्षा प्रचार में मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़ा होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया । 
जाट बोर्डिंग हाऊस बाडमेर के संस्थापक

चौधरी रामदानजी का १९२९ में जोधपुर से बायतू तथा १९३० में बाड़मेर स्थानान्तरण हो गया. अब आपने बाड़मेर के किसानों पर ध्यान देना शुरू किया. आपने बाडमेर में एक जाटावास बस्ती बसाई और वहीं अपना मकान बनाया. बाड़मेर को अपनी कर्म स्थली बनाते हुए इस एरिया के किसानों से सम्पर्क किया. कुछ बच्चों को लाकर अपने निवास स्थान पर लाकर रखा और पढाना शुरू किया. उस समय बाडमेर में एक मिडिल स्कूल और एक प्राथमिक स्कूल था. बच्चे वहां पढ़ने जाते और रामदानजी के मकान में रहते. यहाँ आपकी पत्नी सबके भोजन की व्यवस्था करती थी. जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तब अपने पड़ौस के मकान में श्री भीकमचंदजी का मकान किराये पर लिया और वहां ३० जून १९३४ को जाट बोर्डिंग हाऊस बाड़मेर की स्थापना की. चौधरी मूलचंदजी नागौर के कर कमलों से इसका उदघाटन हुआ. उस समय १९ छात्रों ने इसमें प्रवेश लिया था 
इस संस्था की स्थापना करने के बाद रामदान जी तन-मन-धन से इसकी उन्नति में लग गए. बाड़मेर के आसपास के गाँवों का भ्रमण कर आपने कई और बच्चों को बोर्डिंग में भर्ती करवाया. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो इस छात्रावास का आर्थिक भार भी बढ़ने लगा, तब आपने ग्रामीण एरिया और रेलवे कर्मचारियों से चन्दा एकत्रित कर छात्रावास का खर्चा चलाया. इस कार्य मेंचौधरी आईदानजी भादू बाड़मेर ने आपका पूरा सहयोग किया. जून १९३६ तक इस संस्था में ३५ विद्यार्थी हो गए और बाड़मेर में यह संस्था अपने आप में एक अनूठी संस्था बन गयी. १९३७ में इस छात्रावास को जोधपुर सरकार से ३० रूपया मासिक अनुदान मिलने लग गया. अब चौधरी रामदानजी इस बोर्डिंग के लिए स्थाई निर्माण करवाने में लग गए. गाँवों में घूम कर तथा रेलवे कर्मचारियों से चंदा एकत्रित कर १९४१ तक वर्तमान छात्रावास के आधे भाग का निर्माण पूरा कर लिया. अब किराए के भवन से बोर्डिंग नए भवन में स्थानांतरण करवा दिया. इस हेतु १९४२ तथा १९४४ में बाड़मेर में किसान सम्मेलन आयोजित किए. इनमें चौधरी बलादेवरामजी मिर्धा, हाकिम गोवर्धनसिंह्जी, चौधरी मूलचंदजी नागौर, चौधरी रामदानजी ने छात्रावास को पूरा करने हेतु चंदे की अपील की. तिलवाड़ा पशु मेले से भी चन्दा एकत्रित किया. इन प्रयासों से छात्रावास का निर्माण १९४६ तक पूरा हो गया.  

बाडमेर जिला किसान सभा की स्थापना

चौधरी रामदानजी १४ मार्च १९४६ को बाड़मेर से रेलवे के प्रथम-रेलपथ-निरीक्षक पद से सेवानिवृत हो गए. इसके बाद आपने पूरा ध्यान समाज सेवा में लगा दिया. अब आपने जाट बोर्डिंग हाऊस बाड़मेर के साथ मारवाड़ किसान सभा का भी काम देखना शुरू कर दिया. किसानों की प्रगती को देखकर मारवाड़ के जागीरदार बोखला गए । उन्होंने किसानों का शोषण बढ़ा दिया और उनके हमले भी तेज हो गए । जाट नेता अब यह सोचने को मजबूर हुए कि उनका एक राजनैतिक संगठन होना चाहिए । सब किसान नेता २२ जून १९४१ को जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर में इकट्ठे हुए जिसमें तय किया गया कि २७ जून १९४१ को सुमेर स्कूल जोधपुर में मारवाड़ के किसानों की एक सभा बुलाई जाए और उसमें एक संगठन बनाया जाए । तदानुसार उस दिनांक कोमारवाड़ किसान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी और मंगल सिंह कच्छवाहा को अध्यक्ष तथा बालकिशन को मंत्री नियुक्त किया गया. ९४६ में बलदेव रामजी मिर्धा ने मारवाड़किसान सभा की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जिसमें श्री नरसिंह्जी कच्छवाहा को अध्यक्ष व श्री नाथूरामजी मिर्धा को मंत्री बनाया तथा चौधरी रामदानजी को कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्त किया. साथ ही बाड़मेर परगने में भी किसान सभा की एक इकाई का गठन कर श्री रामदानजी को वहां का अध्यक्ष नियुक्त किया. ३ मार्च १९४८ को श्री जयनारायणजी व्यास के नेतृत्व में जोधपुर में नयी सरकार बनी जिसमें मारवाड़ किसान सभा की और से श्री नाथूरामजी मिर्धा कृषि मंत्री बने. [28]इस सरकार ने किसानों के हित में १९४९ के शुरू में मारवाड़ लैंड रेवेन्यू एक्ट व मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट १९४९ पारित कर दिए जिसमें लागबाग आदि समाप्त करते हुए किसान को अपनी जमीन का मालिक बना दिया. इन कानूनों के बनते ही श्री रामदान जी मालानी के गाँव-गाँव ढाणी-ढाणी जाकर किसानों को इन कानूनों की जानकारी दी और लागबाग द करवाई

लगबाग बंद होने से जागीरदार तिलमिला गए और अत्याछार बढ़ा दिए. किसान नेताओं पर कातिलाना हमला कर हत्याएं करना शुरू कर दिया. इन घटनाओं में मालानी में २७ लोगों ने प्राण गँवाए. इसे समय में रामदांजी पहाड़ बन कर किसानों के रक्षार्थ सामने आए और किसानों की हर प्रकार से मदद की. आप द्वारा बाड़मेर किसान सभा के अध्यक्ष तथा बाद में विधायक की हैसियत से जो सेवाएं आपने किसानों की करी आज तक भी बाड़मेर के किसान उनको याद कर आपके प्रति श्रद्धानत होते हैं.  मारवाड़ किसान सभा तथा १४ अगस्त १९४९ को जयपुर में गठित राजस्थान किसान सभा के अध्यक्ष श्री बलदेव राम जी मिर्धा व अन्य नेताओं के प्रयासों का परिणाम यह हुआ की १९५२ के प्रारम्भ में राजस्थान की सरकार ने जागीरदारी प्रथा समाप्त करने का अधिनियम पारित कर दिया. इससे राजस्थान का किसान सदा के लिए जागीरदारी प्रथा से मुक्त हो गया. १९५५ में राजस्थान टेनेन्सी एक्ट बन जाने के बाद तो किसान स्वयम अपने जमीन का मालिक बन गया. इस कार्य में श्री बलदेव राम मिर्धा और अन्य जाट नेताओं के साथ श्री रामदान जी का भी महत्वपूर्ण योगदान था.
सामाजिक सेवा

चौधरी रामदानजी मारवाड़ के अन्य जाट नेताओं की तरह किसानों में प्रचलित सामाजिक कुरीतियाँ हटाने के हामी थे. आप बाल विवाह, म्रत्यु-भोज, मुकदमेबाजी, अफीम, तम्बाकू, दीन-प्रथा[  आदि कुरीतियों के विरोधी थे और जीवनभर इनके खिलाफ संघर्ष करते रहे. श्री रामदानजी म्रत्यु-भोज को किसानों का दुश्मन मानते थे. अतः उन्होंने ब्याह-शादियों, किसान-सम्मेलनों. तिलवाडा चैत्री पशु मेला, राजनैतिक-सम्मेलनों आदि सभी अवसरों पर म्रत्यु-भोज को बंद करने का आव्हान करते थे. जब इसमें आपको आशातीत सफलता नहीं मिली तब इसे कानूनन बंद कराने का प्रयास किया. १९५७ में जब आप विधायक बने तब आपने मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाडिया जी से आग्रह कर "राजस्थान म्रत्यु-भोज निवारण अधिनियम १९६०" विधान सभा में पारित करवाया. इसके परिणाम स्वरूप बाड़मेर में म्रत्यु-भोज में बहुत कमी आई. दीन-प्रथा समाप्त करने के लिए आपने सर्वप्रथम अपने परिवार की लड़कियों का धर्म-विवाह करके किसानों के सामने इस प्रथा के खिलाफ एक उदाहरण प्रस्तुत किया और इस प्रथा को समाप्त करने में सफल रहे.  आप लड़कों की शिक्षा के साथ लड़कियों की शिक्षा के भी हिमायती थे. बाड़मेर इलाके में स्त्री-शिक्षा का प्रचार आपके प्रयत्नों से ही हुआ. आपके प्रयासों का ही परिणाम था की १९५३ तक ३१८ लड़कियाँ मिडिल तक पढ़ने में सफल हुई. आपने किसानों के बच्चों की पढाई के साथ साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बड़ी संख्या में जाट युवकों को सेना में भर्ती करवाया. १९५१ से १९५५ के बीच राजस्थान में पुलिस प्रशासन का विस्तार हुआ तो बड़ी संख्या में किसानों के बच्चो को पुलिस में नौकरी दिलवाकर किसानों का बड़ा भला किया.
परिवार का उत्थान

जहाँ आपने किसानों के बच्चों की शिक्षा व उनको नौकरियों में लगाने पर ध्यान दिया, उसी तरह अपने परिवार के बच्चों की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान रखा. आपके पाँच पुत्र और चार पुत्रियाँ थी और उनको सबको उच्च शिक्षा दिलवाई. आपके सबसे बड़े पुत्र श्री केसरीमलजी को ऊंची शिक्षा दिलाने के बाद व्यापार के साथ ही जाट बोर्डिंग हाऊस जोधपुर को संभालने का जिम्मा सौंपा. दूसरे पुत्र लालसिंह को ऍम ऐ , एल एल बी करवाने के बाद जोधपुर में हाकिम के पद पर नियुक्त कराया. जिन्होंने राजस्थान में विभिन्न पदों पर रहकर महत्त्व पूर्ण दायित्व निभाया. तीसरे पुत्रगंगाराम चौधरी को एल एल बी की शिक्षा दिलाकर वकालत में लगाया और समाज सेवा का अवसर दिया. बाद में गंगाराम चौधरी ने राजनीती में आकर राजस्थान के विभिन्न विभागों में मंत्री रहकर जनता की सेवा की. चोथे पुत्र खंगारमलजी तथा पांचवें पुत्र फतहसिंह्जी को भी उच्च शिक्षा दिलवाई. उस समय आपका परिवार मारवाड़ में काफी बड़ा और प्रगतिशील था.
राजनीती के माध्यम से समाज सेवा

१९५२ के प्रथम आम चुनाव से पहले १९५१ के आख़िर में मारवाड़ किसान सभा व राजस्थान किसान सभा का कांग्रेस में विलय हो जाने पर चौधरी रामदानजी भी कांग्रेस में सम्मिलित हो गए. १९५३ में नया पंचायती राज अधिनियम लागू हुआ. आपके प्रयासों से अनेक किसान सरपंच चुने गए. इसके बाद तहसील पंचायत के चुनाव हुए जिसमें १९५४ में आप बाड़मेर तहसील पंचायत के सरपंच चुने गए. बाड़मेर में १९५३ से १९५५ तक हुए भूमि-बंदोबस्त में भी किसानों का आपने व आपके पुत्र श्री गंगारामजी ने बराबर मार्गदर्शन किया. भूमि के वाजिब लगान निर्धारित करवाए. १९५७ में द्वितीय आम चुनाव में गुडामालानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्यासी के रूप में चुनाव लड़ा और विजयी रहे. १९५७ से १९६२ तक विधायक रहते बहुत समाज सेवा की. इस दौरान बाड़मेर में डाकू उन्मुलक करवाया तथा जागीर जब्ती क़ानून में जागीरों का अधिग्रहण करवाया. १९५९ में गुडामलानी पंचायत समिती के प्रधान पद पर पुत्र गंगारामजी को निर्वाचित करवाया. १९६० में म्रत्यु-भोज निवारण अधिनियम पास करवाकर बाड़मेर के किसानों को बर्बादी से बचाया. १९६२ में श्री रामदानजी ने राजनीती से सन्यास ले लिया और अपने उत्तराधिकारी के रूप में श्री गंगारामजी चौधरी को १९६२ के तृतीय आम चुनाव में कांग्रेस से गुडामलानी से विधायक जितवाया. बाड़मेर एरिया में आपके द्वारा की गयी सेवा के कारण श्री गंगारामजी बराबर बाड़मेर से चुनाव जीतते रहे तथा राजस्थान सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे.  

1 टिप्पणी: