मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

1985 के विधानसभा चुनाव जैसलमेर सीट पर बगावती उम्मीदवारों ने समीकरण बिगाडे



राजस्थान: जैसलमेर विधान सभा सीट पर हर चुनाव में बागी उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं. यह अलग बात हेै कि एकाध मौकों को छोडकर अधिकतर चुनाव में वे हार गये. लेकिन उन्होंने प्रमुख दो पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों के मतों में सेंध लगाकर समीकरण जरूर बिगाड़े हैं.

जैसलमेर विधानसभा सीट से बगावत के सुर की पहल वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में हुई. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की पसंद के विपरीत पार्टी ने भोपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया. इसके विरोध में टिकट दौड में शामिल मुल्ताना राम बारूपाल ने बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतर कर जीत हासिल की.

अगले विधान सभा चुनाव 1989 में जनता दल प्रत्याशी डा जितेन्द्र सिंह कांग्रेस और भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों को शिकस्त देकर विधान सभा में पहुंच गये.

वर्ष 1993 में विधानसभा चुनाव में फिर बगावत के स्वर उभरे. कांग्रेस के अपने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर जनता दल से आए डाक्टर जितेन्द्र सिहं को प्रत्याशी बनाने पर मुस्लिम धार्मिक नेता परिवार के फतेह मोहम्मद डा सिंह की उम्मीदवारी को चुनौती देते हुए चुनाव मैदान में उतर गये. वे जीत तो नहीं पाये लेकिन डा सिंह की जमानत जब्त हो गई और भाजपा के गुलाब सिंह रावलोत चुनाव जीत गए.

वर्ष 1998 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने सशक्त दावेदार माने जा रहे सांग सिंह के स्थान पर डा जितेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा. टिकट नहीं मिलने से नाराज सांग सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडा. सांग सिंह खुद चुनाव नहीं जीत सके लेकिन डा जितेन्द्र सिंह को चुनाव परिणाम में तीसरे स्थान पर धकेल दिया.

कांग्रेस के गोवर्धन कल्ला ने भाजपा के डा सिंह और भाजपा के बागी उम्मीदवार सांग सिंह को पराजित कर वर्ष 1990 में अपनी हार का बदला लिया.

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