मुंबई। आपने अमिताभ बच्चन की एक सुपर हिट फिल्म “कुली“ तो देखी ही होगी, इस फिल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग यहीं इसी जगह पर की गई थी। अगर याद नहीं आ रहा तो आपको फिल्म फिजा की वह कव्वाली “पिया हाजी अली“ तो ज़रूर याद होगी, इसकी शूटिंग भी यहीं की गई है।
हाजी अली दरगाह एक मस्जिद तथा दरगाह है जो कि मुंबई के दक्षिणी भाग में वरली के समुद्र तट से करीब 500 मीटर समुद्र के अंदर एक छोटे से टापू पर स्थित है। मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है। दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है।
शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है जहां एक दरगाह और एक मस्जिद समुद्र के बीच में टापू पर स्थित है और जहां एक ही समय पर हजारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते है।
कौन थे ये संत?
हाजी अली की दरगाह का निर्माण सन 1431 में एक अमीर (धनवान) मुस्लिम व्यवसायी सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में करवाया गया था, जिसने अपनी सारी धन दौलत त्याग कर मक्का की यात्रा (हज) का रुख किया। हाजी अली मुख्य रूप से पर्शिया (अब उज्बेकिस्तान) के बुखारा नमक जगह के रहने वाले थे तथा पूरी दुनिया की सैर करते हुए अंत में 15 वीं शताब्दी के लगभग मुंबई में आकर बस गए थे।
उनके जीवन से जुड़ी एक सच्ची घटना हम आपको बताने जा रहे है। एक बार संत हाजी अली ने एक गरीब महिला को सड़क पर रोते हुए तथा विलाप करते देखा जिसके हाथ में एक खली डिब्बा था, उन्होंने उस महिला से पूछा की उसको क्या तकलीफ है, उसने झिझकते हुए जवाब दिया की वह तेल लेने गई थी और ठोकर लगने से उसका सारा तेल जमीं पर ढुल गया है और अब उसका पति उसे बहुत पीटेगा, संत ने उस महिला से कहा की मुझे उस जगह पर लेकर चलो जहां तुम्हारा तेल गिरा है। वह महिला उन्हें उस जगह पर लेकर गई संत उस जगह पर बैठ गए और अपने ऊंगली से जमीन को कुरेदने लगे। कुछ ही देर में जमीन से तेल की एक मोटी धार फव्वारे के रूप में निकली। महिला ने ख़ुशी से झूमते हुए अपना पूरा डिब्बा तेल से भर लिया।बाद में हाजी अली को एक घबराहट पैदा करने वाला सपना बार बार आने लगा की उन्होंने दुखी महिला की मदद करने के लिए धरती मां को कुरेदकर उन्हें तकलीफ पहुंचाई है। पश्चाताप की आग में जलते हुए वे बुरी तरह से बीमार पड़ गए तथा उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया की उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके शरीर को एक कोफीन में भरकर अरब सागर में छोड़ दिया जाये।
हाजी अली ने अपनी मक्का यात्रा के दौरान अपना शरीर त्याग दिया तथा आश्चर्यजनक रूप से वह ताबुत जिसमें उनका मृत शरीर रखा था तैरते हुए इस जगह पहुँच गया तथा मुंबई में वरली के समीप एक छोटे से टापू की चट्टानों में अटककर रुक गया जहां आज उनकी दरगाह है, जिसे हम हाजी अली की दरगाह कहते हैं।गुरुवार तथा शुक्रवार को यहां पर कम से कम 40,000 लोग दर्शन के लिए आते हैं। आस्था और धर्म को दरकिनार करके यहां हर जाति तथा धर्म के लोग आकर इस महान संत की दुआएं लेते हैं।
हाजी अली दरगाह एक मस्जिद तथा दरगाह है जो कि मुंबई के दक्षिणी भाग में वरली के समुद्र तट से करीब 500 मीटर समुद्र के अंदर एक छोटे से टापू पर स्थित है। मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है। दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है।
शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है जहां एक दरगाह और एक मस्जिद समुद्र के बीच में टापू पर स्थित है और जहां एक ही समय पर हजारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते है।
कौन थे ये संत?
हाजी अली की दरगाह का निर्माण सन 1431 में एक अमीर (धनवान) मुस्लिम व्यवसायी सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में करवाया गया था, जिसने अपनी सारी धन दौलत त्याग कर मक्का की यात्रा (हज) का रुख किया। हाजी अली मुख्य रूप से पर्शिया (अब उज्बेकिस्तान) के बुखारा नमक जगह के रहने वाले थे तथा पूरी दुनिया की सैर करते हुए अंत में 15 वीं शताब्दी के लगभग मुंबई में आकर बस गए थे।
उनके जीवन से जुड़ी एक सच्ची घटना हम आपको बताने जा रहे है। एक बार संत हाजी अली ने एक गरीब महिला को सड़क पर रोते हुए तथा विलाप करते देखा जिसके हाथ में एक खली डिब्बा था, उन्होंने उस महिला से पूछा की उसको क्या तकलीफ है, उसने झिझकते हुए जवाब दिया की वह तेल लेने गई थी और ठोकर लगने से उसका सारा तेल जमीं पर ढुल गया है और अब उसका पति उसे बहुत पीटेगा, संत ने उस महिला से कहा की मुझे उस जगह पर लेकर चलो जहां तुम्हारा तेल गिरा है। वह महिला उन्हें उस जगह पर लेकर गई संत उस जगह पर बैठ गए और अपने ऊंगली से जमीन को कुरेदने लगे। कुछ ही देर में जमीन से तेल की एक मोटी धार फव्वारे के रूप में निकली। महिला ने ख़ुशी से झूमते हुए अपना पूरा डिब्बा तेल से भर लिया।बाद में हाजी अली को एक घबराहट पैदा करने वाला सपना बार बार आने लगा की उन्होंने दुखी महिला की मदद करने के लिए धरती मां को कुरेदकर उन्हें तकलीफ पहुंचाई है। पश्चाताप की आग में जलते हुए वे बुरी तरह से बीमार पड़ गए तथा उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया की उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके शरीर को एक कोफीन में भरकर अरब सागर में छोड़ दिया जाये।
हाजी अली ने अपनी मक्का यात्रा के दौरान अपना शरीर त्याग दिया तथा आश्चर्यजनक रूप से वह ताबुत जिसमें उनका मृत शरीर रखा था तैरते हुए इस जगह पहुँच गया तथा मुंबई में वरली के समीप एक छोटे से टापू की चट्टानों में अटककर रुक गया जहां आज उनकी दरगाह है, जिसे हम हाजी अली की दरगाह कहते हैं।गुरुवार तथा शुक्रवार को यहां पर कम से कम 40,000 लोग दर्शन के लिए आते हैं। आस्था और धर्म को दरकिनार करके यहां हर जाति तथा धर्म के लोग आकर इस महान संत की दुआएं लेते हैं।
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