वीर पनराज की का मेला कल
जैसलमेर सीमावर्ती जिले जैसलमेर का इतिहास गौरवशाली रहा है। इस धरती पर मातृभूमि व गौ रक्षक जन्म लेते रहे है। जिले के रेतीले धोरों के मध्य स्थित पनराजसर में ऐसे ही एक गौ भक्त जुंझार पनराज जी ने जन्म लिया।
पनराज सेवा समिति युवा मंडल के लीलू सिंह बड्डा ने बताया कि 13वीं सदी में जैसलमेर में अकाल का साया था। मुगलों के अत्याचार भी अधिक थे। यहां से गायों को ले जाकर मारा जाता था।
बालाणा गांव में देव कंवर की कोख से वीर पनराज ने जन्म लिया। उनके पिता का नाम कंगण जी था। पनराज जी बालाणा में रहते थे। उस समय जैसलमेर के शासक रतनसिंह थे। इन्हें जागीर मिलने के बाद इन्होंने पालसर गांव बसाया जो वर्तमान में पनराजसर के नाम से जाना जाता है।
समिति के अध्यक्ष रेवंतसिंह तेजपाला ने बताया कि प्रणवीर पनराज ने क्षात्र धर्म निभाते हुए गौ माता व ब्राह्मणों की रक्षार्थ अपने प्राण त्याग दिए। अपने पूर्वज झाला बिजेराव से प्राप्त पदवी अतर भड़ किवाड़ भाटी को गौरवांवित किया। लेकिन विडंबना है कि पनराज जी के शौर्य की गाथा केवल स्थानीय चारण भाट कवियों तक ही सीमित रही। चारण कवि रतन दान भाखरानी ने अपनी ओजस्वी डिंगल काव्य शैली में दंद जात रेणकी में शूरवीर पनराज के रण कौशल का वर्णन किया है।
उल्लेखनीय है कि पनराज द्वारा दिल्ली बादशाह के शाही पहलवान इक्का को मल्ल युद्ध में पछाड़कर फैकने का भी प्रमाण मिलता है। महारावल घड़सी को जैसलमेर की राजगद्दी पर बिठाने में भी इनकी भूमिका सराहनीय रही है। विक्रम संवत 1378 में 45 कोस क्षेत्र की जागीर उन्हें घोड़ा घुमाने पर प्रदान की गई थी। इस क्षेत्र में राहड़ भाटियों के 12 गांव राहड़की के नाम से जाने जाते है।
वीर पनराजसर के गांव में प्रतिवर्ष दो बार भाद्रपद और माघ सुदी दसम को भव्य मेला लगता है। हजारों श्रद्धालु नतमस्तक होकर अपनी मुरादे मांगते हैं।
जैसलमेर. गौ भक्त पनराज जी राहड़।
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