नई दिल्ली। अस्सी के दशक में चंबल के बिहड़ों में फूलन देवी के नाम की इतना दहशत थी कि बड़े-बड़े लोगों की रूह कांपने लगती थी। कहा जाता था कि वो बहुत कठोर दिल वाली थी। हलांकि इसके पीछे बहुत बड़ा कारण था। जानकारों के मुताबिक फूलन को हालात ने इतना कठोर बना दिया कि उन्होंने बहमई में एक साथ लाइन में खड़ा कर 22 ठाकुरों की हत्या कर दी और उन्हें इसका जरा भी अफसोस नहीं हुआ।
डकैत से सांसद बनी फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गोरहा में हुआ था। महज 11 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी हो गई। पति व परिवार वालों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। बहुत तरह की प्रताडऩा और कष्ट झेलने के बाद फूलन का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ था। धीरे धीरे फूलन ने अपना खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बन बैठी। आमतौर पर फूलन को डकैत के रूप में राबिनहुड की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था।
फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे खतरनाक डाकू मानी जाती थीं। पहली बार 1981 में वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में तब आई जब उसने ऊँची जातियों के बाइस लोगों का एक साथ तथाकथित नरसंहार किया जो ठाकुर जाति के जमींदार लोग थे। उनके जीवन पर कई फिल्में भी बनीं लेकिन पुलिस का डर उन्हें हमेशा बना रहता था।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकडने की बहुत सी नाकाम कोशिशे की। इंदिरा गाँधी की सरकार ने 1983 में उनसे समझौता किया की उसे मृत्यु दंड नहीं दिया जायेगा और उसके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा और फूलन ने इस शर्त के तहत अपने दस हजार समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
फूलन देवी ने बिना मुकदमा चलाए ग्यारह साल तक जेल में बिताया। 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा ने उन्हे जेल से रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रुप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया।
1996 में फूलन ने लोकसभा का चुनाव जीता और वह संसद पहुँची। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गई। उसके परिवार में सिर्फ उसके पति उम्मेद सिंह हैं। 1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर बहुत सारी आपत्तियां दर्ज कराईं और भारत सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई।
फूलन मिजाज से बहुत चिड़चिड़ी थीं और किसी से बात नहीं करती थीं। खासतौर से पत्रकारों से बात करने से वह बहुत कतराती थीं। उनका आत्मसमर्पण एक ऐतिहासिक घटना थी क्योंकि उनके बाद चंबल के बीहड़ों में सक्रिय डाकुओं का आतंक धीरे-धीरे खत्म होता चला गया। जेल से रिहा होने के बाद जब फूलन देवी सांसद बन गई तो उनमें अन्य नेताओं वाले कोई नाज नखरे नहीं थे। वे अपना फ्लैट खुद साफ करती थीं। क्योंकि उन्होंने नौकर रखने से इनकार कर दिया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें