वाशिंगटन। चन्द्रमा पर पानी ढूंढ़ने में भारत का चन्द्रयान मिशन कामयाब रहा। चन्द्रयान के साथ भेजे गए "मून मिनरलॉजी मैपर" (एम3) उपकरण ने यह ऎतिहासिक काम किया। नासा ने इसकी पुष्टि की है।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार ऎसा पहली बार हुआ है कि चन्द्रमा की सतह से काफी गहराई में पानी ढूंढ़ निकाला गया। पानी तलाशने के लिए एम3 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के चन्द्रयान-1 के साथ भेजा गया।
पहली बार वर्ष 2009 में चन्द्रयान एम3 ने चन्द्रमा की सतह की विभिन्न कोणों से साफ तस्वीरें भेजी थी। इन तस्वीरों से चन्द्रमा पर जल अणुओं की उपस्थिति दर्ज की गई थी। हालांकि चन्द्रमा पर मौजूद पानी मोटी परत के रूप में उपलब्ध है।
जॉन होपकिंग्स यूनिवर्सिटी अप्लाइड फिजिक्स लैबोरेटरी (एपीएल) से जुड़ी वैज्ञानिक रचेल क्लीमा ने कहा,"चंद्रमा से निकाली गई चट्टान सामान्य रूप से सतह के नीचे होती हैं और इसके प्रभाव से ही बुलियाल्डस क्षेत्र का निर्माण हुआ।"
उन्होंने कहा,"हमने पाया कि इस क्षेत्र में अच्छी खासी मात्रा में हाइड्राक्सिल है जिसमें ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु हैं। यह इस बात का सबूत है कि इस गड्ढे में मौजूद चट्टान के साथ पानी (मोटी परत के तौर पर) भी है। "
बुलियाल्डस चंद्रमा पर एक ऐसा क्षेत्र है जो सौर हवाओं के लिए विपरीत पर्यावरण मुहैया कराता है जिस कारण सतह में भारी मात्रा में पानी पैदा होता है।
नासा के अनुसार कई वषरें तक वैज्ञानिक यही मानते रहे कि चंद्रमा से मिली चट्टानें सूखी हैं और अपोलो मिशन के दौरान जिस पानी का पता चलने का दावा किया गया था, उसका ताल्लुक भी किसी न किसी रूप से पृथ्वी से रहा होगा। चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता चल जाने के बाद यह धारणा बदल गई।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार ऎसा पहली बार हुआ है कि चन्द्रमा की सतह से काफी गहराई में पानी ढूंढ़ निकाला गया। पानी तलाशने के लिए एम3 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के चन्द्रयान-1 के साथ भेजा गया।
पहली बार वर्ष 2009 में चन्द्रयान एम3 ने चन्द्रमा की सतह की विभिन्न कोणों से साफ तस्वीरें भेजी थी। इन तस्वीरों से चन्द्रमा पर जल अणुओं की उपस्थिति दर्ज की गई थी। हालांकि चन्द्रमा पर मौजूद पानी मोटी परत के रूप में उपलब्ध है।
जॉन होपकिंग्स यूनिवर्सिटी अप्लाइड फिजिक्स लैबोरेटरी (एपीएल) से जुड़ी वैज्ञानिक रचेल क्लीमा ने कहा,"चंद्रमा से निकाली गई चट्टान सामान्य रूप से सतह के नीचे होती हैं और इसके प्रभाव से ही बुलियाल्डस क्षेत्र का निर्माण हुआ।"
उन्होंने कहा,"हमने पाया कि इस क्षेत्र में अच्छी खासी मात्रा में हाइड्राक्सिल है जिसमें ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु हैं। यह इस बात का सबूत है कि इस गड्ढे में मौजूद चट्टान के साथ पानी (मोटी परत के तौर पर) भी है। "
बुलियाल्डस चंद्रमा पर एक ऐसा क्षेत्र है जो सौर हवाओं के लिए विपरीत पर्यावरण मुहैया कराता है जिस कारण सतह में भारी मात्रा में पानी पैदा होता है।
नासा के अनुसार कई वषरें तक वैज्ञानिक यही मानते रहे कि चंद्रमा से मिली चट्टानें सूखी हैं और अपोलो मिशन के दौरान जिस पानी का पता चलने का दावा किया गया था, उसका ताल्लुक भी किसी न किसी रूप से पृथ्वी से रहा होगा। चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता चल जाने के बाद यह धारणा बदल गई।
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