भोपाल। भले ही अभी कलयुग चल रहा हो, पर इस बार भगवान श्रीकृष्ण "द्वापर युग" में जन्म लेंगे। चौंकिए नहीं, क्योंकि 28 अगस्त को तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों के अद्भुत मेल के चलते दुर्लभ संयोग बना है। ये हूबहू वही योग है जो नंदलाल के अवतरण के समय द्वापर युग में बना था। 1986 के बाद ऎसा संयोग बना है। इस लिहाज से ये जन्माष्टमी विशेष पुण्यदायी होगी।
ऎसे बनेगा विशेष संयोग
पं. धर्मेद्र शास्त्री के अनुसार श्रीमद् भागवत में श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहणी नक्षत्र एवं वृष्ाभ के चंद्रमा की मध्यरात्रि में बताया गया है। 28 अगस्त को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रात रहेगी, इसी प्रकार दिन बुधवार है, दोपहर 12:50 मिनट से रोहणी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा। चंद्रमा उच्च राशि वृषभ में रहेगा। ऎसी जन्माष्टमी जयंती नाम से कहलाई जाती है।
ऎसा 26 साल बाद
पं. विष्णु राजौरिया के मुताबिक इसके पहले 27 अगस्त 1986 को ऎसा संयोग बना था। 1993, 2000 में भी बुधवार के दिन जन्माष्टमी आई थी। उस समय तिथि और नक्षत्र का मेल नहीं था, पर इस दिन, तिथि, नक्षत्र, लग्न सभी एकसाथ विद्यमान रहेगा। अष्टमी तिथि सूर्योदय से होने के कारण वैष्णव और स्मार्त दोनों सम्प्रदाय इस पर्व को एक ही दिन मनाएंगे।
ऎसे बनेगा विशेष संयोग
पं. धर्मेद्र शास्त्री के अनुसार श्रीमद् भागवत में श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहणी नक्षत्र एवं वृष्ाभ के चंद्रमा की मध्यरात्रि में बताया गया है। 28 अगस्त को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रात रहेगी, इसी प्रकार दिन बुधवार है, दोपहर 12:50 मिनट से रोहणी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा। चंद्रमा उच्च राशि वृषभ में रहेगा। ऎसी जन्माष्टमी जयंती नाम से कहलाई जाती है।
ऎसा 26 साल बाद
पं. विष्णु राजौरिया के मुताबिक इसके पहले 27 अगस्त 1986 को ऎसा संयोग बना था। 1993, 2000 में भी बुधवार के दिन जन्माष्टमी आई थी। उस समय तिथि और नक्षत्र का मेल नहीं था, पर इस दिन, तिथि, नक्षत्र, लग्न सभी एकसाथ विद्यमान रहेगा। अष्टमी तिथि सूर्योदय से होने के कारण वैष्णव और स्मार्त दोनों सम्प्रदाय इस पर्व को एक ही दिन मनाएंगे।
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