शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

मूवी रिव्यू: सत्याग्रह अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह में शामिल होने को बेताब है तो फिल्म आपके लिए है।

प्रकाश झा को जब कभी अपने पसंदीदा हीरो अजय देवगन का साथ मिला तभी उन्होंने ऐसी फिल्म बनाई जो दर्शकों की बड़ी क्लास और क्रिटिक्स की कसौटी पर भी खरी उतरी। 'गंगाजल', 'अपहरण' के बाद 'राजनीति' में अजय को लेकर कामयाबी की हैट-ट्रिक मना चुके झा ने इस बार भी अच्छी कोशिश की है जो यकीनन बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की एक खास क्लास को बटोरने का दम रखती है। पिछले कुछ अर्से से हर बार प्रकाश ने अपनी फिल्म में किसी सोशल कॉज को मुख्य मुद्दा बनाया है।Movies Review satyagraha
कहानी: रिटायर टीचर द्वारका आनंद (अमिताभ बच्चन) अपने सिद्घांतों पर चलने वाले ऐसे इंसान हैं, जो देश को भ्रष्टाचार की दलदल से निकालना चाहते है। दिल्ली में टेलिकॉम कंपनी चला रहा बिजनस टायकून मानव राघवेंद्र (अजय देवगन) का सपना अपने बिजनस को आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए मानवेंद्र कुछ भी कर सकता है। दूसरी ओर, राजनीति को बिजनस समझने वाला प्रदेश का मिनिस्टर बलराम सिंह (मनोज वाजपेयी) किसी भी तरह सत्ता तक पहुंचना चाहता है। यास्मीन (करीना कपूर) एक खोजी टीवी चैनल से जुड़ी है, किसी भी खबर की तह तक पहुंचकर सच को दर्शकों के सामने लाना यास्मीन एकमात्र मकसद है।

कभी स्कूल में गुंडागर्दी करने के लिए द्वारका आनंद के हाथों स्कूल से निकाले जाने वाला अर्जुन राजवंशी सिंह (अर्जुन रामपाल) अब राजनीति में अपना मुकाम बनाने के लिए सड़कों पर राजनीति करने में बिजी है। इन सभी की लाइफ में टर्निंग पॉइंट उस वक्त जब आता है जब द्वारका आनंद के इंजिनियर बेटे अखिलेश की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है। अखिलेश जिले में बन रहे एक फ्लाइओवर के प्रॉजेक्ट का हेड इंजिनियर है और फ्लाईओवर के निर्माण में चल रहे घपलों को उजागर करना चाहता है। अखिलेश की मौत के बाद मिनिस्टर बलराम सिंह की तरफ से परिवार को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने का ऐलान होता है। अखिलेश की मौत के तीन महीने बाद भी जब पत्नी (अमृता सिंह) को मुआवजा नहीं मिलता तो वह कलक्टर ऑफिस में पहुंचती है। दरअसल, द्वारका आनंद और अखिलेश की पत्नी ने मुआवजे की रकम एक स्कूल को देना चाहते हैं। यहीं से शुरू होती है, भ्रष्टाचार के खिलाफ अकेले द्वारका आनंद द्वारा शुरू की गई जंग जो उन्हें जेल पहुंचाती है। भ्रष्टाचार को मिटाने की लिए शुरू हुई इस जंग में मानवेंद्र, अर्जुन, अखिलेश की पत्नी, यास्मीन के साथ-साथ पूरे जिले के लोग एक हो जाते हैं।

ऐक्टिंग : अमिताभ बच्चन ने एकबार फिर साबित किया उनके नाम के साथ महानायक क्यों जुड़ा है। बेशक फिल्म में उनका किरदार झा की पिछली फिल्म आरक्षण में उनके किरदार की याद दिलाए लेकिन द्वारका के किरदार को बिग बी ने एक ऐसा लुक दिया जो दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरता है। अजय देवगन का किरदार दमदार है, भ्रष्ट नेता के किरदार में मनोज वाजपेयी लाजवाब रहे, फील्ड में लड़ने वाली जर्नलिस्ट यास्मीन के रोल में करीना कपूर को क्यों लिया गया, समझ से परे है।

निर्देशन: प्रकाश झा ने इस बार भी एक ऐसे सब्जेक्ट पर काम किया जिसमें उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का अच्छा मौका मिला। झा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने हजारों लोगों की भीड़ वाले कई सीन जोरदार ढंग से फिल्माएं हैं। इंटरवल से पहले फिल्म की गति कई बार थम सी जाती है।

संगीत: जनता का राज और रघुपति राघव राजा राम दो गाने खूब बन पड़े हैं। इन दोनों गानों को झा ने जिस भी सिचुएशन पर फिट किया वहीं फिट हुए।

क्यों देखें: अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह में शामिल होने को बेताब है तो फिल्म आपके लिए है। फिल्म में ऐसा मेसेज है जो हमारे राजनेताओं की कलई खोलने के साथ-साथ सरकारी दफ्तरों में खुले आम चल रही रिश्वतबाजी का पर्दाफाश करता है।

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