गुरुवार, 8 अगस्त 2013

अपने को परमात्मा का परमात्मा को अपना माने-संत श्री आशारामजी बापू




अपने को परमात्मा का परमात्मा को अपना माने-संत श्री आशारामजी बापू

उमड़ा श्रद्धा का जनसैलाब, देश विदेश में हुआ सीधा प्रसारण

बाडमेर - विश्व में आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता भारतीय संस्कृति के प्रमुख स्तंभ विश्व विख्यात संत श्री आशारामजी बापू का एक दिवसीय सत्संग गुरुवार को स्थानीय नेहरू नगर के आदर्श स्टेडियम मे संपन्न हुआ| इस सत्संग कार्यक्रम मे श्रद्धालुओ जनसैलाब उमड़ पड़ा बापूजी के सत्संग स्थल पर पहुँचने से पहले ही पूरा पांडाल श्रद्धालुओ से भर गया! पंडाल में कही भी पैर रखने की जगह तक बची! बापूजी जैसे ही व्यास पीठ पर पहुचें सारा पांडाल हरी ओम की गूंज से गूंज उठा ! सभी श्रद्धालुओ ने मधुर मधुर नाम हरि-हरि ओम कीर्तन के साथ बापूजी का भव्य स्वागत किया! अनेको ने हाथ जोड़कर प्रणाम करके बापूजी का अभिवादन किया तो किसी ने जमींन पर माथा टेककर प्रणाम किया,अनेको साधको ने दंडवत प्रणाम किया! बापूजी ने भी सभी का अभिवादन स्वीकार किया और बडी संख्या मे प्रदेश भर से पहुंचे जनमेदनी रूबरू हुए और बड़े ही स्नेह से कहा कि क्या हाल चल है और स्वयं ही जवाब भी दिया मौज मे हो.. बापूजी ने अपने चिर परिचित अंदाज में कहा की वफाई के दो तरीके है आजमा के देख ले,बनजा प्रभु का या प्रभु को अपना बना के देख ले| बापूजी ने सत्संग कि अविरल अमृत धारा बहाते हुए कहा कि जीवन में कोई कोई व्रत होना चाहिए व्रत से स्वास्थ्य तो ठीक होता ही है|साथ ही संकल्प भी पुरे होते है|इस पावन श्रावण मास के सोमवार विषय पर बापूजी ने ऋगवेद का सन्दर्भ देते हुए कहा कि जो प्रति माह पूनम का व्रत करता है| उसमे संकल्प सिद्धि का समर्थ आ जाता है|इस व्रत के साथ सत्संग और संत दर्शन हो हो आध्यात्मिक उन्नति सहज ही होने लगती है|

भगवान को अपना और अपने को भगवान का माने| सुख-दुःख, लाभ-हानि, बचपन, जवानी, बुडापा आते है और जाते है लेकिन जो इन सबको जानने वाला है वह कभी नहीं जाता, वही आत्मा परमात्मा है | वही भगवन है| वास्तव में भगवन ही हमारे हैं| भगवन न ही दूर हैं, न दुर्लभ हैं, बाद मैं मिलेंगे ऐसा भी नहीं है | हमारा अपना आपा, आत्मा होकर बैठे हैं| अपने को कभी बीमार न मानें| बीमारी आती है चली जाती है, दुःख भी आकर चला जाता है लेकिन उसे जानने वाले आप सदा एक रस हो | बापू जी ने इन दो बातों को जीवन में पालने का वचन भी माँगा| बापूजी ने गुरु ज्ञान कि कुंजिया देते हुए कहा कि विशेष तिथि पर्व,ग्रहण आदि सभी शुभ पर्वो का लाभ जरुर लेना चाहिए| मंगलवारी चतुर्थी,बुधवारी अष्टमी,रविवारी सप्तमी ,क्रष्ण जन्मास्टमी है,सोमवती अमावस्या होली,दीपावली पर जप करने से विशेष फल मिलता है,अगर इन् दिनों में सदगुरु द्वारा प्राप्त मन्त्र का जप किया जाये तो आत्म शांति प्राप्त होती है,तो मनुष्य शीघ्र ही अपने जीवन के परम लक्ष्य आत्म साक्षात्कार कि प्राप्ति में मदद मिलती है|बापूजी ने बडी संख्या मे पहुंचे श्रद्धाळूओ ने पावन रविवार की सप्तमी के अवसर पर ओमकार मंत्र का जप कराया बापूजी ने ओमकार मन्त्र का वैज्ञानिक विश्लेषण व् प्रयोगों का सन्दर्भ देते हुए कहा कि ओमकार मन्त्र का गुंजन करने से मरी हुई कोशिकाएँ भी जीवित हो जाती है| मस्तिष्क जिगर व पेट के विभिन्न अंग आन्दोलित होकर सक्रियता से कार्य करने लगते है| सात बार ओमकार मन्त्र का गुंजन करने से ओमकार मन्त्र इस ब्रहमांड को चीर कर अनंत ब्रहमांडो के साथ जापक के चित्त को तदाकार करा देता है|ओमकार मन्त्र कि शक्ति का वर्णन नहीं हो सकता|कोई व्यक्ति प्रतिदिन गुरु उपदिष्ट मार्ग से १२० माला ओमकार कि जप करे व निषिध कर्मो का त्याग करे | तो उसे एक वर्ष में ही परमात्म प्राप्ति हो सकती है|

बापूजी ने भगवन श्री कृष्ण और यशोदा के प्रसंग पर कहा कि जो दूसरों को यश दे ,वह है यशोदा,और जो प्रतेक मनुष्य के चित्त को आकर्षित करे वह है, कृष्ण | आत्मा कृष्ण है,और हम अपनी बुद्धि को यशोदा कि तरह यश देना वाला बनाए तो हमें शीघ्र ही भगवत्प्राप्ति हो सकती है| बापूजी ने अपनी बुद्धि को भगवत तत्त्व गृहणी बुद्धि बनाने पर जोर देते हुए कहा कि बुद्धि तीन प्रकार कि होती है,भोंदू बुद्धि ऐसी होती है कि सत्संग सुना कि भूल गयी,दूसरी होती है मोतिया बुद्धि ,जैसे मोती में एक बार छेद कर दो तो वो सदैव बना रहता है ,ऐसे ही इस प्रकार कि बुद्धि का आदमी सत्संग सुनकर याद भी रखता है,और दूसरों को सूना भी सकता है ,लेकिन परमात्मा प्राप्ति के यह पर्याप्त नहीं है| तीसरी है, तेलिये बुद्धि,जैसे तेल कि एक बूंद पूरे थाल को ढक सकती है| ऐसे ही इस प्रकार का व्यक्ति सत्संग,संयम और सदगुरु बताये गये मार्ग पर चलकर आत्मज्ञान को प्राप्त करता है,भगवन वेदव्यास और ब्रह्मा ज्ञानी संतो कि बुद्धि तेलिये बुद्धि होती है| बापूजी ने भगवान को भोग लगाने का अर्थ बताते हुए कहा कि भगवान भाव के भूखे है|भाव पूर्वक भगवान को प्रति करना,भगवत प्रीति अर्थ कर्म करना ही वास्तविक भगवान को भोग लगाना है| भगवान की पूजा पर बापूजी ने कहा परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही वास्तविक पूजा है| भगवान सत् चित आनंद स्वरुप है| ऐसे ही हमारा आत्मा भी सत् स्वरूप है|जो चेतना है| वह उस चेतन स्वरूप परमात्मा की ही है| ह्रदय में जो आन्नद आता है| उस परमात्मा का ही है| शरीर मानने वाला है| और मै जानने वाला अमर आत्मा हूँ ऐसा ज्ञान प्राप्त करना आत्म साक्षात्कार करना ही भगवान कि पूजा है|भजन पर बापूजी ने कहा कि वास्तविक भजन वह है जिससे ह्रदय में परमात्म रस आये| जिस कार्य को करने से ह्रदय आनंद से भर जाए ह्रदय से परमात्म रस आने लगे वह है, भजन|

संत श्री ने सामजिक जीवन में सफलता के उपाय बताते हुए कहा कि पराई निंदा से सदैव बचना चाहिए | न निंदा करें, न सुनें | जब हम किसी की निंदा करते हैं तो उसे नुकसान हो या ना भी हो लेकिन निंदा करने वाले को तो हानि होती ही है | निंदा करने से सरीर में हानिकारक द्रव्य ( न्युरोप्रोपेटाइड ) बनता है जिससे शारीर में कालेस्ट्राल की मात्र बढ जाती है | अनेकों रोगों के साथ हृदयाघात की संभावना बढ जाती है | बापू जी ने कहा कि घर में झगडे आदि शांत हो इसके लिए सब मिलकर ' हे प्रभु आनंददाता..' प्रार्थना करनी चाहिए |

बापूजी ने दिया मंत्र दीक्षा का दान

सत्संग स्थल पर दुरदाराज से आये श्रद्धालुओ व स्थानीय सत्संग आयोजन समिती की पार्थना पर बापूजी ने मंत्र दीक्षा का दान दिया जिसमे संत श्री आसारामजी बापू बच्चो को बुद्दी,स्मरण शक्ति बढाने हेतु सारस्वतय मंत्र की दीक्षा दी व बड़ो को गुरुमंत्र की दीक्षा दी गयी |इस हेतु बापूजी ने कोई चीज वस्तु ,रुपया पैसा ,दक्षिणा आदि नहीं लेकर आने वचन वचन लिया है |बापूजी इस दीक्षा के सत्र में एक आशीर्वाद मंत्र भी प्रदान किया जिसके जप से गृहकलह दूर होने के साथ-साथ शरीर की रोगों से रक्षा होती है, किडनी के रोग ,लीवर सम्बन्धी रोग ,ह्रदयघात जैसी जटिल बिमारिया न हो अगर हो तो जल्दी दूर हो जाये इस प्रकार के प्रयोग भी दीक्षा के कार्यक्रम में बापूजी द्वारा सिखाय गये | बापूजी द्वारा थल बस्ती नामक एक विशेष योगिक क्रिया सिखाई गयी जिससे शरीर के 132 प्रकार के रोग ठीक होते है| स्वाभाव कि बुरी आदते छुट्ती है|शरीर निरोग रहता है|

बापूजी की रेल चली भक्तो के बीच,भक्ति धाम एक्सप्रेस

सत्संग स्थल पर श्रद्धालुओ को बापू जी के निकट से शुलभ दर्शन हो इस हेतु एक विशेष रेल बनायीं गयी | जो कि बिना धुए,बिना बिजली के पटरियों पर चलती है|पटरियों पर चलती रेल में बापूजी के निकट से दर्शन कर भक्त भाव विभोर हो गए| इस ट्रेन में बापूजी को अपने नजदीक पाकर दर्शन कर भक्त निहाल हो गये| ट्रेन का नाम पूछने पर भक्तो ने बताया कि इसका नाम तो हमें नहीं पता लेकिन हमारे लिए तो यह गुरु दर्शन एक्सप्रेस ही है|

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