गुरुवार, 4 जुलाई 2013

आखिर मिल गया एड्स का इलाज


आखिर मिल गया एड्स का इलाज
कुआलालंपुर।एचआईवी का इलाज अब तक नामुमकिन माना जा रहा है, लेकिन हाल के कुछ परिणामों ने इसके इलाज को नई दिशा दी है। जी हां! अमरीका के दो एचआईवी पॉजीटिव मरीज अब बिना दवा के जीवन जी रहे हैं, वो भी पूरी तरह स्वस्थ रहकर।


बुधवार को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता टिमोथी हेर्निक और डेनियल कुरीट्स्टस ने बताया कि अमरीका के दो एचआईवी पीडित मरीज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ प्रतिरोधक ब्लड सेल्स मिलने से अब बिना एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी (एचआईवी की दवा) के आराम से जीवन जी रहे हैं। ये कदम इस बीमारी के इलाज की दिशा में किसी चमत्कार से कम नहीं है। भविष्य में ये पद्धति इलाज में कारगर साबित हो सकती है।


ये है माजरा


ये दोनों मरीज लंबे अर्से से एंटी एचआईवी ड्रग ले रहे थे। बाद में इन्हें ब्लड कैंसर हुआ, जिसके निदान के लिए उन्होंने बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया। ट्रांसप्लांट में उन्हें स्वस्थ शरीर के ताकतवर व प्रतिरोधक सेल्स मिले। सेल्स ने मरीज की प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ा दी कि वे एचआईवी वायरस की शक्ति क्षीण करते गए। अब ये दोनों ही मरीज बीते 15 और 7 सप्ताह से स्वस्थ्य जीवन जी रहे हैं।


यहां से मिली दिशा


स्वस्थ्य व प्रतिरोधक सेल्स हासिल कर एचआईवी को मात देने की पद्धति 2007 में सबसे पहले अमरीकी नागरिक टिमोथी रे ब्राउन पर आजमाई गई थी। वे एचआईवी के साथ-साथ ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर का एक प्रकार) से पीडित थे। उन्होंने एक ऎसे शख्स से स्टेम सेल्स हासिल किए, जिसके सेल्स की प्रतिरोधक क्षमता लाजवाब थी।

भविष्य में उम्मीद


शोधकर्ता डेनियल कुरीट्स्टस की मानें, तो ये इलाज पद्धति भविष्य में नई दिशा दिखा रही है। ताकतवर ब्लड सेल्स ही एचआईवी को कमजोर करने का हथियार हैं। हालांकि ये कहना जल्दबाजी होगी कि इस पद्धति से एचआईवी पूरी तरह खत्म हो जाएगा, क्योंकि एचआईवी वायरस कमजोर शरीर होते ही सक्रिय होता है।



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