रिफाइनरी पर सियासत, रिपोर्ट पर सवाल
जमीन अवाप्ति से प्रभावित किसानों ने कहा- हमसे आज तक बात नहीं की गई
लीलाला में रिफाइनरी की हवा को बताया राजनीतिक स्टंट, कहा : भूमाफिया चला रहे हैं आंदोलन
पचपदरा में शिलान्यास नहीं होने तक जारी रहेगा किसानों का धरना
बाड़मेर रिफाइनरी के मुद्दे पर बाड़मेर में सियासत भले ही गरमा गई। मगर लीलाला के किसान आज भी नहीं चाहते हैं कि वहां रिफाइनरी स्थापित हो। भूमाफिया की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में किसानों की फर्जी तरीके से सहमति जाहिर करने का खुलासा हुआ है। गुस्साए किसानों ने जिम्मेदारों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने की तैयारी कर ली है। जमीन अवाप्ति से प्रभावित किसानों का रिफाइनरी के विरोध में धरना 140वें दिन जारी रहा। यहां मौसम की गर्माहट के बीच माहौल शांत था। किसानों ने संकेत दिए हैं कि वे किसी भी सूरत में रिफाइनरी लीलाला में लगाने के पक्षधर नहीं है। उन्होंने पचपदरा में रिफाइनरी का शिलान्यास होने पर धरना समाप्त करने का ऐलान किया। रिफाइनरी पर बवाल के बीच राजस्व मंत्री हेमाराम के इस्तीफे से राजनीतिक भूचाल की स्थिति पैदा हुई। गुरुवार को बी एन टी टीम ने लीलाला पहुंचकर किसानों की हकीकत को जानने की कोशिश की।
बाड़मेर. रिफाइनरी के विरोध में लीलाला में १४० दिन से धरने पर बैठे किसान।
रिपोर्ट पर यूं उठे सवाल
1. राजस्व मंत्री, सांसद, जिला प्रमुख की मौजूदगी में बुधवार को बायतु पनजी में आयोजित बैठक में पेश की गई रिपोर्ट में नब्बे फीसदी किसान रिफाइनरी के लिए जमीन अवाप्ति को सहमत होने का उल्लेख किया गया। इसको लीलाला के किसानों ने गलत बताया।
2. किसानों की रिपोर्ट में डेढ़ सौ से अधिक किसान जमीन अवाप्ति के विरोध में है। जिन्होंने हस्ताक्षर युक्त सूची प्रशासन को सौंपी है। उन्होंने बुधवार को बैठक में पेश की गई रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए आपत्ति दर्ज करवाई है।
धरने पर बैठे किसानों के सवाल
१. सरकार या प्रशासन के नुमाइंदे हमारी मांग पर विचार क्यों नहीं कर रहे?
२. सरकार के नुमाइंदे लीलाला में आकर प्रभावित किसानों से बातचीत करने की बजाए बायतु में क्यों मीटिंग कर रहे हैं?
३. सांसद हरीश चौधरी, राजस्व मंत्री हेमाराम व जिला प्रमुख मदन कौर ने बुधवार को लीलाला की बजाए बायतु पनजी में क्यों बैठक की? लीलाला क्यों नहीं आए या बायतु में लीलाला के किसानों को क्यों नहीं बुलवाया?
४. बार-बार जो मांग पत्र पेश किए जा रहे हैं वे लोग कौन है सरकार इसका पता क्यों नहीं लगा रही है? प्रशासन को झूठी रिपोर्ट दी जा रही है।
बिना सहमति तैयार हुई रिपोर्ट
अखा, देदा, नींबा, चुतरा पुत्र नारणा की 184 बीघा जमीन अवाप्ति में प्रस्तावित है। इन खातेदारों ने जमीन नहीं देने की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि सरकारी नुमाइंदों को सौंपी गई रिपोर्ट में इन्हें जमीन देने के लिए सहमत होने का उल्लेख किया गया है। इसी तरह भोमाराम, वीरमाराम, आईदानराम, घेवरचंद पुत्र आंबाराम सुथार निवासी लीलाला की बिना सहमति के ही रिपोर्ट में नाम दर्ज है। इस तरह करीब डेढ़ दर्जन से अधिक किसानों के नाम रिपोर्ट में शामिल है।
एक ही मांग-पत्र दिया था
जमीन अवाप्ति के विरोध में लीलाला में धरना दे रहे किसानों ने बताया कि उन्होंने एक ही मांगपत्र पेश किया था। जिसमें एक करोड़ रुपए मुआवजा, नहरी भूमि आवंटन समेत कुल 25 मांगे शामिल थी। जिस पर किसी स्तर पर वार्ता नहीं हुई। इस बीच कुछ लोगों ने अपने ही स्तर पर बार बार संशोधित मांग पत्र पेश किए। जबकि किसानों ने दुबारा मांग पत्र पेश ही नहीं किया।
किसान नहं, भूमाफिया चाहते हैं रिफाइनरी
लीलाला में धरने पर डटे किसान नेता रूपाराम पुत्र गुमनाराम चौधरी बताते हैं कि रिफाइनरी के लिए अवाप्ति प्रक्रिया में उनकी 228 बीघा जमीन शामिल है। बुधवार को बायतु पनजी में आयोजित बैठक में एक भी किसान शामिल नहीं हुआ। वे किसी भी सूरत में जमीन देने को न पहले तैयार थे ना ही आज है। लीलाला में रिफाइनरी की हवा तो सिर्फ भूमाफिया फैला रहे हैं। जिन लोगों के पास जमीनें ही नहीं है वे लोग माहौल बिगाडऩे में जुटे हैं। किसानों को गुमराह करने के लिए नब्बे फीसदी किसान तैयार होने की रिपोर्ट पेश की गई। जबकि हकीकत में पिचहत्तर फीसदी किसान लीलाला में रिफाइनरी के विरोध में है।
जमीन अवाप्ति प्रक्रिया निरस्त करें
जांदुओं की ढाणी निवासी वखताराम पुत्र विशनाराम बताते हैं कि उनकी 40 बीघा जमीन अवाप्ति में शामिल है। जब से रिफाइनरी की घोषणा हुई है तब से किसान विरोध जता रहे हैं। जिन खातेदारों की जमीन अवाप्ति में शामिल हंै। वे लोग धरना स्थल पर डटे हैं। सरकार ने किसानों ने एक बार भी वार्ता नहीं की। इस बीच पचपदरा में रिफाइनरी स्थापित करने की कवायद शुरू हो गई। अब तो बाहरी लोग ही लीलाला में रिफाइनरी के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। हम तो किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देंगे। यह तो सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है।
मर जाएंगे मगर जमीन नहीं देंगे
लीलाला के किसान घमंडीराम पुत्र ठाकराराम बताते हैं कि रिफाइनरी के विरोध में वे बीते 140 दिन से धरने पर है। हमनें पहली बार मांगपत्र पेश किया था। जिस पर किसी स्तर पर विचार विमर्श तक नहीं किया गया। इसके बाद संशोधित मांग पत्र किसानों ने पेश ही नहीं किया। ये तो वो लोग हैं जो जमीनों की सौदेबाजी करते हैं। अपने निजी स्वार्थ की खातिर बार बार संशोधित मांग पत्र पेश करके प्रशासन व सरकार को गुमराह किया। हम तो मर जाएंगे मगर जमीन नहीं देंगे। यह निर्णय तो पहले से ही कर रखा है।
पचपदरा में रिफाइनरी से खुश है
किसान मानाराम पुत्र गुमनाराम निवासी लीलाला ने बताया कि रिफाइनरी की घोषणा के बाद ही धरना शुरू हो गया था। किसानों ने तय किया था कि जमीन नहीं देंगे। रिफाइनरी के विरोध के चलते पचपदरा में रिफाइनरी स्थापित करने का फैसला सरकार ने किया। जिससे हम सब किसान बेहद खुश है। जमीन अवाप्ति से सैकड़ों किसान बेघर हो जाते। इससे अच्छा है कि सरकारी जमीन पर रिफाइनरी स्थापित की जाए। सरकार के नुमाइंदों ने बुधवार को बायतु पनजी में बैठक आयोजित की। जिसमें एक भी किसान शामिल नहीं हुआ।
राजनीति कर रहे हैं सरकार के चहेते
लीलाला के किसान चेनाराम पुत्र मोटाराम बताते हैं कि लीलाला में रिफाइनरी के लिए सरकार के चहेते ही दबाव बना रहे हैं। यह उनका निजी स्वार्थ है। बायतु पनजी में बैठक आयोजित कर किसानों को गुमराह किया गया। पहले बताया था कि लीलाला में धरना स्थल पर किसानों की मौजूदगी में वार्ता होगी। वहां पर जो कुछ हुआ उसके बारे में हम कुछ नहीं कहना चाहेंगे। यह नेताओं का मामला है। किसान चाहते हैं कि जमीन अवाप्ति की प्रक्रिया निरस्त हो ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
हमें रिफाइनरी से कोई सरोकार नहीं
किसान आईदानराम निवासी जांदुओ की ढाणी बताते हैं कि रिफाइनरी सरकार व नेताओं की मर्जी हो वहां लगाएं। इससे हमें कोई सरोकार नहीं है। किसान अपनी मांगों पर अडिग है। इस स्थिति में गलत रिपोर्ट तैयार करके नब्बे फीसदी किसान सहमत होने की झूठी अफवाह फैलाई गई है। इसको लेकर किसानों में गुस्सा है। यह रिपोर्ट जिसने भी तैयार की है। उसके खिलाफ मामला दर्ज करवाएंगे।
बाड़मेर. इस्तीफे के बाद हेमाराम चौधरी के घर पर दिनभर उन्हें समझाने के लिए नेताओं का जमावड़ा लगा रहा। कर्नल सोनाराम चौधरी ने हाथाजोड़ी कर उन्हें मनाने का प्रयास किया। हेमाराम माने तो नहीं, लेकिन दोनों के चेहरे खिल गए। हेमाराम ने हाथ मिलाकर कर्नल को विदाई दी। फोटो त्न कालू माली
बाड़मेर रिफाइनरी के मुद्दे पर बाड़मेर में सियासत भले ही गरमा गई। मगर लीलाला के किसान आज भी नहीं चाहते हैं कि वहां रिफाइनरी स्थापित हो। भूमाफिया की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में किसानों की फर्जी तरीके से सहमति जाहिर करने का खुलासा हुआ है। गुस्साए किसानों ने जिम्मेदारों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने की तैयारी कर ली है। जमीन अवाप्ति से प्रभावित किसानों का रिफाइनरी के विरोध में धरना 140वें दिन जारी रहा। यहां मौसम की गर्माहट के बीच माहौल शांत था। किसानों ने संकेत दिए हैं कि वे किसी भी सूरत में रिफाइनरी लीलाला में लगाने के पक्षधर नहीं है। उन्होंने पचपदरा में रिफाइनरी का शिलान्यास होने पर धरना समाप्त करने का ऐलान किया। रिफाइनरी पर बवाल के बीच राजस्व मंत्री हेमाराम के इस्तीफे से राजनीतिक भूचाल की स्थिति पैदा हुई। गुरुवार को बी एन टी टीम ने लीलाला पहुंचकर किसानों की हकीकत को जानने की कोशिश की।
बाड़मेर. रिफाइनरी के विरोध में लीलाला में १४० दिन से धरने पर बैठे किसान।
रिपोर्ट पर यूं उठे सवाल
1. राजस्व मंत्री, सांसद, जिला प्रमुख की मौजूदगी में बुधवार को बायतु पनजी में आयोजित बैठक में पेश की गई रिपोर्ट में नब्बे फीसदी किसान रिफाइनरी के लिए जमीन अवाप्ति को सहमत होने का उल्लेख किया गया। इसको लीलाला के किसानों ने गलत बताया।
2. किसानों की रिपोर्ट में डेढ़ सौ से अधिक किसान जमीन अवाप्ति के विरोध में है। जिन्होंने हस्ताक्षर युक्त सूची प्रशासन को सौंपी है। उन्होंने बुधवार को बैठक में पेश की गई रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए आपत्ति दर्ज करवाई है।
धरने पर बैठे किसानों के सवाल
१. सरकार या प्रशासन के नुमाइंदे हमारी मांग पर विचार क्यों नहीं कर रहे?
२. सरकार के नुमाइंदे लीलाला में आकर प्रभावित किसानों से बातचीत करने की बजाए बायतु में क्यों मीटिंग कर रहे हैं?
३. सांसद हरीश चौधरी, राजस्व मंत्री हेमाराम व जिला प्रमुख मदन कौर ने बुधवार को लीलाला की बजाए बायतु पनजी में क्यों बैठक की? लीलाला क्यों नहीं आए या बायतु में लीलाला के किसानों को क्यों नहीं बुलवाया?
४. बार-बार जो मांग पत्र पेश किए जा रहे हैं वे लोग कौन है सरकार इसका पता क्यों नहीं लगा रही है? प्रशासन को झूठी रिपोर्ट दी जा रही है।
बिना सहमति तैयार हुई रिपोर्ट
अखा, देदा, नींबा, चुतरा पुत्र नारणा की 184 बीघा जमीन अवाप्ति में प्रस्तावित है। इन खातेदारों ने जमीन नहीं देने की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि सरकारी नुमाइंदों को सौंपी गई रिपोर्ट में इन्हें जमीन देने के लिए सहमत होने का उल्लेख किया गया है। इसी तरह भोमाराम, वीरमाराम, आईदानराम, घेवरचंद पुत्र आंबाराम सुथार निवासी लीलाला की बिना सहमति के ही रिपोर्ट में नाम दर्ज है। इस तरह करीब डेढ़ दर्जन से अधिक किसानों के नाम रिपोर्ट में शामिल है।
एक ही मांग-पत्र दिया था
जमीन अवाप्ति के विरोध में लीलाला में धरना दे रहे किसानों ने बताया कि उन्होंने एक ही मांगपत्र पेश किया था। जिसमें एक करोड़ रुपए मुआवजा, नहरी भूमि आवंटन समेत कुल 25 मांगे शामिल थी। जिस पर किसी स्तर पर वार्ता नहीं हुई। इस बीच कुछ लोगों ने अपने ही स्तर पर बार बार संशोधित मांग पत्र पेश किए। जबकि किसानों ने दुबारा मांग पत्र पेश ही नहीं किया।
किसान नहं, भूमाफिया चाहते हैं रिफाइनरी
लीलाला में धरने पर डटे किसान नेता रूपाराम पुत्र गुमनाराम चौधरी बताते हैं कि रिफाइनरी के लिए अवाप्ति प्रक्रिया में उनकी 228 बीघा जमीन शामिल है। बुधवार को बायतु पनजी में आयोजित बैठक में एक भी किसान शामिल नहीं हुआ। वे किसी भी सूरत में जमीन देने को न पहले तैयार थे ना ही आज है। लीलाला में रिफाइनरी की हवा तो सिर्फ भूमाफिया फैला रहे हैं। जिन लोगों के पास जमीनें ही नहीं है वे लोग माहौल बिगाडऩे में जुटे हैं। किसानों को गुमराह करने के लिए नब्बे फीसदी किसान तैयार होने की रिपोर्ट पेश की गई। जबकि हकीकत में पिचहत्तर फीसदी किसान लीलाला में रिफाइनरी के विरोध में है।
जमीन अवाप्ति प्रक्रिया निरस्त करें
जांदुओं की ढाणी निवासी वखताराम पुत्र विशनाराम बताते हैं कि उनकी 40 बीघा जमीन अवाप्ति में शामिल है। जब से रिफाइनरी की घोषणा हुई है तब से किसान विरोध जता रहे हैं। जिन खातेदारों की जमीन अवाप्ति में शामिल हंै। वे लोग धरना स्थल पर डटे हैं। सरकार ने किसानों ने एक बार भी वार्ता नहीं की। इस बीच पचपदरा में रिफाइनरी स्थापित करने की कवायद शुरू हो गई। अब तो बाहरी लोग ही लीलाला में रिफाइनरी के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। हम तो किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देंगे। यह तो सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है।
मर जाएंगे मगर जमीन नहीं देंगे
लीलाला के किसान घमंडीराम पुत्र ठाकराराम बताते हैं कि रिफाइनरी के विरोध में वे बीते 140 दिन से धरने पर है। हमनें पहली बार मांगपत्र पेश किया था। जिस पर किसी स्तर पर विचार विमर्श तक नहीं किया गया। इसके बाद संशोधित मांग पत्र किसानों ने पेश ही नहीं किया। ये तो वो लोग हैं जो जमीनों की सौदेबाजी करते हैं। अपने निजी स्वार्थ की खातिर बार बार संशोधित मांग पत्र पेश करके प्रशासन व सरकार को गुमराह किया। हम तो मर जाएंगे मगर जमीन नहीं देंगे। यह निर्णय तो पहले से ही कर रखा है।
पचपदरा में रिफाइनरी से खुश है
किसान मानाराम पुत्र गुमनाराम निवासी लीलाला ने बताया कि रिफाइनरी की घोषणा के बाद ही धरना शुरू हो गया था। किसानों ने तय किया था कि जमीन नहीं देंगे। रिफाइनरी के विरोध के चलते पचपदरा में रिफाइनरी स्थापित करने का फैसला सरकार ने किया। जिससे हम सब किसान बेहद खुश है। जमीन अवाप्ति से सैकड़ों किसान बेघर हो जाते। इससे अच्छा है कि सरकारी जमीन पर रिफाइनरी स्थापित की जाए। सरकार के नुमाइंदों ने बुधवार को बायतु पनजी में बैठक आयोजित की। जिसमें एक भी किसान शामिल नहीं हुआ।
राजनीति कर रहे हैं सरकार के चहेते
लीलाला के किसान चेनाराम पुत्र मोटाराम बताते हैं कि लीलाला में रिफाइनरी के लिए सरकार के चहेते ही दबाव बना रहे हैं। यह उनका निजी स्वार्थ है। बायतु पनजी में बैठक आयोजित कर किसानों को गुमराह किया गया। पहले बताया था कि लीलाला में धरना स्थल पर किसानों की मौजूदगी में वार्ता होगी। वहां पर जो कुछ हुआ उसके बारे में हम कुछ नहीं कहना चाहेंगे। यह नेताओं का मामला है। किसान चाहते हैं कि जमीन अवाप्ति की प्रक्रिया निरस्त हो ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
हमें रिफाइनरी से कोई सरोकार नहीं
किसान आईदानराम निवासी जांदुओ की ढाणी बताते हैं कि रिफाइनरी सरकार व नेताओं की मर्जी हो वहां लगाएं। इससे हमें कोई सरोकार नहीं है। किसान अपनी मांगों पर अडिग है। इस स्थिति में गलत रिपोर्ट तैयार करके नब्बे फीसदी किसान सहमत होने की झूठी अफवाह फैलाई गई है। इसको लेकर किसानों में गुस्सा है। यह रिपोर्ट जिसने भी तैयार की है। उसके खिलाफ मामला दर्ज करवाएंगे।
बाड़मेर. इस्तीफे के बाद हेमाराम चौधरी के घर पर दिनभर उन्हें समझाने के लिए नेताओं का जमावड़ा लगा रहा। कर्नल सोनाराम चौधरी ने हाथाजोड़ी कर उन्हें मनाने का प्रयास किया। हेमाराम माने तो नहीं, लेकिन दोनों के चेहरे खिल गए। हेमाराम ने हाथ मिलाकर कर्नल को विदाई दी। फोटो त्न कालू माली
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