यहां है एशिया की सबसे... "छोटी मस्जिद"
भोपाल। झीलों की नगरी भोपाल में वैसे तो देखने के लिए कई जगह हैं। पर `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` हमेशा से ही कौतुहल का विषय रही है। क्योंकि यह `एशिया की सबसे छोटी मस्जिद` मानी जाती है। यह मस्जिद गांधी मेडिकल कॉलेज के नजदीक फतेहगढ़ किले के बुर्ज के ऊपरी हिस्से पर बनी है।
इस मस्जिद का निर्माण `दोस्त मोहम्मद खान` ने करवाया था। साधारण स्थापत्य में बनी इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिए महज ढाई सीढियां हैं। इसलिए इसे `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` कहा जाता है।
`ढाई सीढ़ी की मस्जिद` भोपाल की पहली मस्जिद मानी जाती है। इस मस्जिद का नाम यह क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
हुआ यूं कि इसके निर्माण के समय यहां हर चीज ढाई बनाई गई थी जैसे यहां ढाई सीढियां हैं, जिस जगह मस्जिद है वहां कमरों की संख्या भी ढाई है, और इसके अलावा पहले जिस रास्ते से यहां आया जाता था, वहां भी ढाई सीढियां थीं। इसलिए इसका नाम `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` रख दिया गया।
इस मस्जिद का इतिहास 300 साल पुराना है। माना जाता है कि फतेहगढ़ किले में पहरा देने वाले सैनिक इस मस्जिद में नमाज अदा किया करते थे।
इतिहासकारों का मानना है कि अफगानिस्तान के तराह शहर से नूर मोहम्मद खान उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद खान जब भारत आए तो भोपाल में रानी कमलावति का शासन था। कमलावति के पति को उनके भतीजों ने षडयंत्र रचते हुए जहर देकर मार दिया था।
रानी इस बात से काफी परेशान थीं और वह अपने भतीजों से बदला लेना चाहती थीं। जिसके चलते उन्होंने घोषणा की कि जो उनके भतीजों को ढूंढ लेगा, उसे वह एक लाख रूपए का इनाम देंगी।
दोस्त मोहम्मद खान ने इस बदले को पूरा किया। उसके बदले रानी ने पचास हजार नगद रूपए और बाकी पचास हजार के लिए तत्कालीन फतेहगढ़ मोहम्मद खान को दे दिया।
बाद में दोस्त मोहम्मद ने फतेहगढ़ में किले का निर्माण कराया। इस किले की नींव काजी मोहम्मद मोअज्जम साहब ने रखी। इस बीच किले की पश्चिमी दिशा में स्थित बुर्ज को मस्जिद की शक्ल दी गई।
इस तरह 1716 में `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` भोपाल की पहली और एशिया की सबसे छोटी मस्जिद बनी।
भोपाल। झीलों की नगरी भोपाल में वैसे तो देखने के लिए कई जगह हैं। पर `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` हमेशा से ही कौतुहल का विषय रही है। क्योंकि यह `एशिया की सबसे छोटी मस्जिद` मानी जाती है। यह मस्जिद गांधी मेडिकल कॉलेज के नजदीक फतेहगढ़ किले के बुर्ज के ऊपरी हिस्से पर बनी है।
इस मस्जिद का निर्माण `दोस्त मोहम्मद खान` ने करवाया था। साधारण स्थापत्य में बनी इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिए महज ढाई सीढियां हैं। इसलिए इसे `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` कहा जाता है।
`ढाई सीढ़ी की मस्जिद` भोपाल की पहली मस्जिद मानी जाती है। इस मस्जिद का नाम यह क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
हुआ यूं कि इसके निर्माण के समय यहां हर चीज ढाई बनाई गई थी जैसे यहां ढाई सीढियां हैं, जिस जगह मस्जिद है वहां कमरों की संख्या भी ढाई है, और इसके अलावा पहले जिस रास्ते से यहां आया जाता था, वहां भी ढाई सीढियां थीं। इसलिए इसका नाम `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` रख दिया गया।
इस मस्जिद का इतिहास 300 साल पुराना है। माना जाता है कि फतेहगढ़ किले में पहरा देने वाले सैनिक इस मस्जिद में नमाज अदा किया करते थे।
इतिहासकारों का मानना है कि अफगानिस्तान के तराह शहर से नूर मोहम्मद खान उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद खान जब भारत आए तो भोपाल में रानी कमलावति का शासन था। कमलावति के पति को उनके भतीजों ने षडयंत्र रचते हुए जहर देकर मार दिया था।
रानी इस बात से काफी परेशान थीं और वह अपने भतीजों से बदला लेना चाहती थीं। जिसके चलते उन्होंने घोषणा की कि जो उनके भतीजों को ढूंढ लेगा, उसे वह एक लाख रूपए का इनाम देंगी।
दोस्त मोहम्मद खान ने इस बदले को पूरा किया। उसके बदले रानी ने पचास हजार नगद रूपए और बाकी पचास हजार के लिए तत्कालीन फतेहगढ़ मोहम्मद खान को दे दिया।
बाद में दोस्त मोहम्मद ने फतेहगढ़ में किले का निर्माण कराया। इस किले की नींव काजी मोहम्मद मोअज्जम साहब ने रखी। इस बीच किले की पश्चिमी दिशा में स्थित बुर्ज को मस्जिद की शक्ल दी गई।
इस तरह 1716 में `ढाई सीढ़ी की मस्जिद` भोपाल की पहली और एशिया की सबसे छोटी मस्जिद बनी।
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