आधी रात को महाविनाश से बची पृथ्वी
लंदन। दुनियाभर के लोग जब देर रात गहरी नींद में थे तब लगभग तीन किलोमीटर आकार एक क्षुद्रग्रह पृथ्वी के बिल्कुल करीब से गुजर गया। यह क्षुदग्रह आकार में उस क्षुद्रग्रह से एक तिहाई आकार का था जिसने 6.5 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर महाविनाश की लीला रची थी जिसमें डायनासारों के युग का अंत हो गया था।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 2.7 किलोमीटर आकार वाला क्षुद्रग्रह 1998क्यूई-2 भारतीय समयानुसार रात 02.29 बजे पृथ्वी से 58 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजर गया। यह दूरी फरवरी में पृथ्वी के करीब से गुजरने वाले क्षुद्रग्रह के मुकाबले 200 गुना अधिक दूर थी लेकिन क्यूई-2 फरवरी वाले क्षुद्रग्रह के मुकाबले आकार में पचास हजार गुना बड़ा था।
बेलफास्ट के क्वीन्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलन किट्जसिमंस ने कहा कि यह बेहद बड़ा क्षुद्रग्रह था। पृथ्वी के पास पड़ोस में इस किस्म के बस 600 क्षुद्रग्रह ज्ञात है। अगर भविष्य में इस किस्म का कोई क्षुद्रग्रह हमारे ग्रह से टकराता है तो यह समझ लीजिए कि इससे इतनी बड़ी विनाशलीला उत्पन्न होगी कि उसका असर वैश्कि स्तर पर दिखाई देगा।
क्षुद्रग्रहों का अध्ययन इस मायने में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह उपग्रह आकार में बेहद बड़ा होने के साथ-साथ बेहद अनोखा भी था। इसका गुरूत्वबल इतना अधिक था कि इससे अलग हुई चट्टान का पिंड भी इसके चारों तरफ उपग्रह की तरह चक्कर काट रहा है और खगोलिविदों ने उसे क्यूई-2 के चन्द्रमा का नाम दिया है।
क्षुद्रग्रह के बेहद नजदीक से गुजरने का सीधा लाभ खगोलियविदों को मिला और उन्होंने इस दुर्भल अवसर का लाभ उठाकर क्षुद्रग्रहों के बर्ताव को अधिक बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया। खगोलिविदो ने अंतरिक्ष में बेहद दूर तक देख सकने में सक्षम रेडार टेलीस्कोप का इस्तेमाल कर इस क्षुद्रग्रह की कई उच्च गुणवत्ता (रेजोल्यूशन) वाली तस्वीरें ली। खगोलविदों को इस सरीखा अनोखा अवसर अब 200 वर्ष के बाद ही मिलेगा क्योंकि यह अगले 200 वर्ष बाद ही पृथ्वी के पास से गुजरेगा।
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