स्वामी जी बोले, ‘महाशय, मैं यहां हिन्दू धर्म प्रचार के लिए आया हूं न कि धर्म परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे अपने धर्म परिवर्तन के अभियान को सदैव के लिए बंद कर प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। यही हरेक धर्म की सार्थकता है। यही सभी धर्मों का मकसद है। हमारी हिंदू संस्कृति विश्व बंधुत्व का संदेश देती है और मानवता को ही सबसे बड़ा धर्म मानती है।’ वह प्रोफेसर उनकी बातों से अभिभूत हो गए और बोले, ‘स्वामी जी, मेरा इन सब में काफी अल्प ज्ञान है, कृपया इस बारे में और विस्तार से कहिए।’
प्रोफेसर की यह बात सुनकर स्वामी जी ने कहा, ‘महाशय, इस पृथ्वी पर सबसे पहले मानव का आगमन हुआ था। उस समय कहीं कोई धर्म, जाति या भाषा न थी। मानव ने अपनी सुविधानुसार अपनी-अपनी भाषाओं, धर्म तथा जाति का निर्माण किया और अपने मुख्य उद्देश्य से भटक गया। यही कारण है कि समाज में तरह-तरह की कमियाँ आ गई हैं। लोग आपस में विभाजित नजर आते हैं। इसलिए मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि तुम अपना धर्म पालन करते हुए अच्छे ईसाई बनो और बेहतर इंसान बनो। हर धर्म का सार मानवता के गुणों को विकसित करने में है इसलिए तुम भारत के ऋषियों-मुनियों के शाश्वत संदेशों का लाभ उठाओ और उन्हें अपने जीवन में उतारो।’
वह प्रोफेसर मंत्रमुग्ध यह सब सुन रहे थे। स्वामी विवेकनन्द जी के प्रति उनकी आस्था और बढ़ गई और वो सतुष्ट होकर वहां से गए।
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