कहीं फिर दगा ना दे जाएं नवाज शरीफ
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में नवाज शरीफ को हुकूमत मिलने से एक बात तो साफ हो गई है कि यह भारत के लिए सबसे कम बुरा नतीजा है। शरीफ पिछले कार्यकाल के दौरान भारत से दोस्ताना संबंध बनाने के लिए प्रयासरत थे। वर्ष 1999 में उनकी बर्बादी का करण बनी पाक सेना के साथ उनके तजुर्बे को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि वे पाकिस्तान की बाकी सरकारों की तरह भारत की पीठ पर छुर्रा नहीं घोपेंगे।
चुनाव प्रचार के दौरान भी शरीफ ने यह कहा था कि वे भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास करेंगे और कारगिल युद्ध की जांच भी करवाएंगे। गौरतलब है कि 1999 में जब भारत और पाक के बीच कारगिल युद्ध हुआ था, तब शरीफ ही पाक के प्रधान मंत्री थे, लेकिन उस वक्त आर्मी चीफ रहे परवेज मुशर्रफ ने उनका तख्ता पलट कर उन्हें देशनिकाला दे दिया था।
वहीं दूसरी ओर "अमन की आशा" के उन टूटे हुए सपनों का दर्द भी अभी भारत के दिल में जिंदा है। पाकिस्तानी राजनीतज्ञों की यह आदत रही है कि चुनाव के वक्त भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के वादे करना और चुनाव जीतते ही आसानी से उन वादों को तोड़ देना।
1993 में भी चुनाव से पहले बेनजीर भुट्टो ने बहुत भरोसे दिलाए थे कि भारत से संबंधों को सुधारेंगी और कश्मीर में शांति लाने की कोशिश करेंगी, लेकिन सत्ता उनके हाथ आते ही पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के दबाव में आकर फिर भुट्टो ने कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया।
इतिहास गवाह है भारत और पाकिस्तान के इस जर्जर रिश्ते का। हालांकि नवाज शरीफ के एक बार फिर सत्ता में आने से अमन की आशा की उम्मीद बंधी है, लेकिन क्या एक बार फिर पाक पर भरोसा करना ठीक होगा, क्योंकि शरीफ के पिछले कार्यकाल में भी भारत आतंकवादी हमलों से अछूता नहीं रहा था।
गौरतलब है कि 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद धमाकों के आरोपी अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान की आईएसआई ने पाक में पनाह दी थी। इस बार देखा जाए तो शरीफ को पूर्ण बहुतमत नहीं मिला और पाकिस्तान में गंठबंधन सरकार बन रही है।
यहां इस बात की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं कि नवाज शरीफ भारत के लिए कुछ करना चाहें और सरकार के अन्य लोग उन पर ऎसा ना करने के लिए दबाव बनाएं। इसी बीच जहां अमेरिका ने अफ्गानिस्तान से सेना हटाने की डेडलाइन दे दी है, ऎसे में पाकिस्तान सेना और आईएसआई भी क्षेत्र में अपना अधिकार बचाने के लिए जबरदस्ती घुसने की कोशिश करेगा जिसके चलते वह फिर भारत के विरोध में खड़ा हो सकता है।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में नवाज शरीफ को हुकूमत मिलने से एक बात तो साफ हो गई है कि यह भारत के लिए सबसे कम बुरा नतीजा है। शरीफ पिछले कार्यकाल के दौरान भारत से दोस्ताना संबंध बनाने के लिए प्रयासरत थे। वर्ष 1999 में उनकी बर्बादी का करण बनी पाक सेना के साथ उनके तजुर्बे को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि वे पाकिस्तान की बाकी सरकारों की तरह भारत की पीठ पर छुर्रा नहीं घोपेंगे।
चुनाव प्रचार के दौरान भी शरीफ ने यह कहा था कि वे भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास करेंगे और कारगिल युद्ध की जांच भी करवाएंगे। गौरतलब है कि 1999 में जब भारत और पाक के बीच कारगिल युद्ध हुआ था, तब शरीफ ही पाक के प्रधान मंत्री थे, लेकिन उस वक्त आर्मी चीफ रहे परवेज मुशर्रफ ने उनका तख्ता पलट कर उन्हें देशनिकाला दे दिया था।
वहीं दूसरी ओर "अमन की आशा" के उन टूटे हुए सपनों का दर्द भी अभी भारत के दिल में जिंदा है। पाकिस्तानी राजनीतज्ञों की यह आदत रही है कि चुनाव के वक्त भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के वादे करना और चुनाव जीतते ही आसानी से उन वादों को तोड़ देना।
1993 में भी चुनाव से पहले बेनजीर भुट्टो ने बहुत भरोसे दिलाए थे कि भारत से संबंधों को सुधारेंगी और कश्मीर में शांति लाने की कोशिश करेंगी, लेकिन सत्ता उनके हाथ आते ही पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के दबाव में आकर फिर भुट्टो ने कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया।
इतिहास गवाह है भारत और पाकिस्तान के इस जर्जर रिश्ते का। हालांकि नवाज शरीफ के एक बार फिर सत्ता में आने से अमन की आशा की उम्मीद बंधी है, लेकिन क्या एक बार फिर पाक पर भरोसा करना ठीक होगा, क्योंकि शरीफ के पिछले कार्यकाल में भी भारत आतंकवादी हमलों से अछूता नहीं रहा था।
गौरतलब है कि 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद धमाकों के आरोपी अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान की आईएसआई ने पाक में पनाह दी थी। इस बार देखा जाए तो शरीफ को पूर्ण बहुतमत नहीं मिला और पाकिस्तान में गंठबंधन सरकार बन रही है।
यहां इस बात की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं कि नवाज शरीफ भारत के लिए कुछ करना चाहें और सरकार के अन्य लोग उन पर ऎसा ना करने के लिए दबाव बनाएं। इसी बीच जहां अमेरिका ने अफ्गानिस्तान से सेना हटाने की डेडलाइन दे दी है, ऎसे में पाकिस्तान सेना और आईएसआई भी क्षेत्र में अपना अधिकार बचाने के लिए जबरदस्ती घुसने की कोशिश करेगा जिसके चलते वह फिर भारत के विरोध में खड़ा हो सकता है।
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