भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर मतभेदों को दूर करने के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठक मंगलवार को बेनतीजा रही। अलग-अलग नजरियों के बावजूद राजनीतिक दलों ने हालांकि विधेयक को जल्द पारित कराने की इच्छा जताई। बैठक में तय किया गया कि मतभेदों के दूर करने के लिए 18 अप्रैल को नए सिरे से सलाह मशविरा किया जाएगा।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बैठक के बाद कहा कि दो विकल्प हैं। एक यह कि विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजा जाए। दूसरा विकल्प यह है कि इस मुद्दे का समाधान सर्वदलीय बैठक में किया जाए। 18 अप्रैल को दिन भर बैठक चलेगी, जिसमें सरकार विभिन्न दलों द्वारा सुझाए गए संशोधनों का अध्ययन करके उनके आधार पर सरकारी संशोधन पेश करेगी।
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को उम्मीद है कि विधेयक बजट सत्र में ही पारित होगा। उन्होंने कहा कि कुछ प्रगति हुई है और उम्मीद है कि विधेयक इसी सत्र में पारित हो जाएगा। सुषमा ने कहा कि भाजपा ने अपनी चिंताओं वाले 12 बिन्दु सरकार को सौंपे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने विधेयक में विशेष आर्थिक जोन (सेज) शब्द हटाकर उसकी जगह विनिर्माण जोन किया है हालांकि दोनों एक ही बात है।
भाजपा ने सुझाव दिया कि अधिग्रहण की बजाय भूमि को लीज (पट्टे) पर दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे भूमि किसान के पास ही रहेगी और उसे नियमित वार्षिक आय प्राप्त होगी। जिस उद्देश्य से भूमि दी गई है, यदि उसका इस्तेमाल उसके लिए नहीं होता तो भूमि किसान को वापस की जा सकती है। सुषमा ने कहा कि भाजपा ने सार्वजनिक उद्देश्य को लेकर भारी भरकम परिभाषा पर आपत्ति व्यक्त की है। बैठक के दौरान सपा के रेवती रमण सिंह ने मुआवजे की कम दर पर आपत्ति की। उन्होंने सुझाव दिया कि जिन किसानों की जमीन ली जाए, उनके परिवार के युवा सदस्यों को नौकरी दी जाए।
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