शनिवार, 20 अप्रैल 2013

यह झुनझुना काटेगा टिकट

यह झुनझुना काटेगा टिकट

जयपुर। राज्य में विधान परिषद के गठन को केन्द्र से मंजूरी मिल भी जाती है तो इसके गठन की प्रक्रिया इतनी लम्बी है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में इसका अस्तित्व में आना सम्भव नहीं दिख रहा है, लेकिन इसे विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायकों के टिकट काटने का अच्छा हथियार माना जा रहा है। यह हथियार कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही काम आ सकता है। केन्द्रीय केबिनेट से मंजूरी विधान परिषद के गठन का शुरूआती पड़ाव भर है। संसद और राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद भी सदस्यो ंकी चुनाव प्रक्रिया काफी लम्बी है।

प्रदेश में इसी साल नवम्बर में चुनाव होने हैं। विधान परिषद के चुनाव भी चुनाव आयोग को ही कराने हैं, लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते विधान सभा के चुनाव कराना आयोग की पहली प्राथमिकता रहेगा। ऎसे में विधान परिषद का गठन विधानसभा चुनाव से पहले होना सम्भव नहीं दिख रहा है। लेकिन जानकारों का कहना है कि सरकार राष्ट्रपति से इसकी मंजूरी तक की प्रक्रिया भी पूरी करा लेती है तो विधानसभा चुनाव में इसका बड़ा राजनीतिक फायदा उठाया जा सकता है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को कहा भी है कि हमने अपना काम पूरा कर दिया है। अब गठन चुनाव से पहले हो या बाद में इससे फर्क नहीं पड़ता है।

ऎसे उठाया जा सकता है राजनीतिक फायदा
कांग्रेस अभी सत्ता में है और सत्तारूढ़ दल के लिए अपने मौजूदा विधायकों के टिकट काटना बहुत मुश्किल होता है। विधान परिषद में 66 सदस्य बनने हैं और इनमें से एक तिहाई राजनेता होंगे। कांग्रेस इसमें सीट देने के बहाने मौजूदा विधायकों के टिकट काट कर नए लोगों को मौका दे सकती है। टिकट बंटवारे के समय होने वाले असंतोष को भी इसके बहाने कम किया जा सकता है। भाजपा भी इसी तरह इसका फायदा उठा सकती है। दोनों ही दल इसके गठन का श्रेय भी लेंगे, क्योकि भाजपा ने सबसे पहले इसके गठन की घोषणा की थी और कांग्रेस के कार्यकाल में इसकी मंजूरी मिलेेगी।

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