शनिवार, 9 मार्च 2013
एक बस्ती ऐसी जहां की औरतों को इंतजार रहता है सूरज डूबने का
सुकरो 80 साल की है। मीरा 18 की। गीता, सुनीता, रिजोना, विनीता, ऐसे कई कई नाम। उम्र और नाम अलग अलग। पर परेशानी सबकी एक सी। इनका दिन इस इंतजार में कटता है कि जल्द सूरज ढले, अंधेरा हो। जी हां, ये हाल है बरियातू स्थित आदिवासी बस्ती (वार्ड 4) की।
कालोनी में रोड किनारे है फोर्टिस हॉस्पिटल। लेकिन संपूर्ण स्वच्छता अभियान पर करोड़ों खर्च कर चुकी सरकार महिलाओं के लिए एक टॉयलेट नहीं बना सकी। बस्ती में तकरीबन 100 से अधिक आदिवासी परिवार है। ये कहती हैं कि काश! इस महिला दिवस पर सरकार बस्ती की मां बहनों के लिए कुछ करे। कम से कम एक टायलेट तो बनवा दे।
घंटों सहना पड़ता है दर्द
महिलाओं के लिए अलग कोर्ट खुल गए। बैंक बनने वाले हैं। प्रदेश की सरकार बिटिया वर्ष मना चुकी है।लेकिन राजभवन से महज पांच किलोमीटर दूर बेटियों की सिसकियां सुनने वाला कोई नहीं है। यहां टॉयलेट जाने के लिए बेटियों महिलाओं को घंटों दर्द सहना पड़ता है। अहले सुबह महिलाएं व बच्चियां समूह में बस्ती से पहाड़ की ओर निकल जाती हैं। उसके बाद यदि टॉयलेट जाने की नौबत आती है तो ये शाम होने का इंतजार करती हैं। बीच में टॉयलेट जाने की नौबत न आए, इसके लिए वे महिलाएं पानी नहीं पीती हैं।
न सड़क, न पानी यहां कई परेशानियां हैं। बस्ती में न तो पानी है, न ही सड़क। महिलाओं को खाना बनाने से लेकर बर्तन धोने तक के लिए पानी के इंतजाम में भटकना पड़ता है। सुनीता मुंडा बताती है कि रोड पर एक नल है, वहीं से पानी लाकर बर्तन धोते हैं।
नौ परिवार ने मिलकर लगवाया नल
मेरो उरांव 78 वर्ष की हैं। चलने में परेशानी होती है। इस परिवार में तीन महिलाएं काफी बूढ़ी हैं। इन महिलाओं सहित आसपास के नौ परिवार ने मिलकर एक पानी का टैप लगवाया है।
सभी सुविधाएं मिलेंगी
आदिवासी बस्ती स्लम एरिया घोषित हो गया है। 85 परिवार का फॉर्म भरा गया है। शौचालय, पानी, सड़क आदि सभी सुविधाएं मिलेंगी।
हुस्ना आरा, वार्ड चार की पार्षद
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