शिल्पग्राम में "जंगलराज"!
बाड़मेर। यदि यह कोई निजी संपत्ति होती तो बाड़मेर उत्तरलाई रोड की इस जमीन की कीमत करीब दस करोड़ होती। उस पर 2008-09 में 39 लाख की लागत से बनाए गए हाट बाजार से लाखों रूपए कमा लिए होते और करोड़ों का मुनाफा, लेकिन विडंबना यह है कि यह सरकारी संपदा है। करोड़ो की इस संपत्ति को संबंधित महकमा लग रहा है कौड़ी की भी नहीं समझ रहा है। शिल्पग्राम में जिस तरह "जंगल" बन गया है, इतनी बेकद्री किसी सरकारी भवन की नहीं है।
थार महोत्सव और अन्य दिनों में आने वाले पर्यटकों को बाड़मेर की काष्ठ, मृणाल, कशीदाकारी, अजरख जरीब, खादी और अन्य उत्पाद एक ही जगह उपलब्ध हों और यहां के कलाकारों व कारीगरों को रोजगार के साथ प्रोत्साहन मिले इसके लिए शिल्पग्राम की स्थापना वर्ष 2008- 09 में की गई। जिला परिषद की बाड़मेर जोधपुर मार्ग की जमीन को सर्वाधिक उपयुक्त मानते हुए करीब दस बीघा से ज्यादा जमीन उपलब्ध करवाई गई। तय हुआ कि हाट बाजार के लिए आकर्षक दुकानें बनेगी और इनके आगे बरामदा। यहां व्यापारी अपना सामान रखने के साथ रह भी सकेंगे और बिक्री के लिए बरामदे में दुकानें लगेगी। 24 दुकानों का निर्माण करवाया गया। 2009-10 में बने इस आकर्षक हाट बाजार के पहले साल यहां एक बार प्रदर्शनी भी लगी लेकिन इसे बाद विभाग मानो इसे भूल ही गया।
जंगल और जर्जर
हाईवे 112 पर स्थित इस परिसर में बबूल के पेड़ खड़े हो गए है। मुख्य दरवाजे का एक हिस्सा समाज कंटक उठाकर ले गए है। अंदर जंगल ही जंगल नजर आ रहा है। पगडंडी लायक रास्ते में भी कंटीली झाडियां उगी है। पहले बाजार में चौदर दुकानें है। नई नजर आ रही इन दुकानों में बरामदे की पटि्टयां टूटी हुई है। लाइट फिटिंग उखड़ रही है। चारों तरफ गंदगी पसरी पड़ी है। दूसरे परिसर में दस दुकानें है, जिनकी हालत भी ऎसी ही है।
अब बहुत गुंजाइश
केयर्न, राजवेस्ट सहित कई कंपनियां आई है। इसके अलावा बाहर से लोगो का आना जाना लगा रहता है। बड़े व्यापारियों ने मॉल्स बना दिए है। काष्ठ, मृणाल, कशीदाकारी, बाड़मेर प्रिंट के चद्दर की दुकानों पर अच्छी ग्राहकी हो रही है। हाट बाजार भी बाड़मेर व उत्तरलाई के मुख्य मार्ग पर है। ऎसे में यहां अब हाट बाजार को लेकर एकदम नाउम्मीद होना भी गलत है।
जिला परिषद की संपत्ति
हाट बाजार जिला परिषद की संपत्ति है। जिला परिषद में इसकी फाइल तो है लेकिन यहां आगे क्या करना है,इसको लेकर कुछ भी नहीं सोचा गया है। परिषद की ओर से इसका कोई उपयोग नहीं लिया जा रहा है। करोड़ो की संपत्ति को लेकर बेफिक्री हावी है।
रंगमंच के रंग उडे
इसी परिसर में एक रंगमंच का निर्माण किया गया है। मेला लगने के दौरान रात में कलाकारों की सांस्कृतिक संध्या के लिए निर्माण हुआ था। यहां पर एक कमरे में कलाकारों के तैयार होने। इसका उपयोग खुले थियेटर के तौर पर भी किया जा सकता है। यहां पर भी अब बबूल की झाडियों के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
अतिक्रमण नहीं
गनीमत इतनी है कि यहां चारदीवारी की गई है। इस कारण अतिक्रमण नहीं हो रहे है। पड़ौस की बस्ती के लोग यहां कचरा डालकर व गंदगी फैल रहे है।
सीईओ जिला परिषद एल आर गुगरवाल से बातचीत
सवाल- शिल्पग्राम परिसर में भवन में जंगल ही जंगल हो गया है, यहां भवन की बेकद्री हो रही है? यह जानकारी में है?
जवाब- मेरी जानकारी में है। इसके लिए बजट का प्रबंध कर भवन को ठीक करवाया जाएगा। इसके बाद केयर्न या अन्य किसी को देकर जिला परिषद की आय का स्रोत बनाया जाएगा।
सवाल- भवन तो ठीक है। यहां बबूल की झाडियां ऎसी उगी है कि जंगल नजर आता है। ऎसे लगता है कोई यहां जाता ही नहीं। सारसंभाल नहीं है।
जवाब- तो फिर इसकी सार संभाल लेंगे और इसको ठीक करवाकर उपयोग किया जाएगा ताकि जिला परिषद को आय हो जाए।
सवाल- आय नहीं हाट बाजार बनाकर क्षेत्र की कला को प्रोत्साहन देने और थार महोत्सव व अन्य अवसरों पर मेले लगाकर पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद था।
जवाब- इसके लिए भी प्रयास किए जाएंगे। हाट बाजार की व्यवस्था करवाएंगे। इस मामले में कार्रवाई करेंगे।
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