यायावरी बिजनेसमैन का अनूठा सफर
दूर-दूर तक बिकता है लोहे का सामान
जिजीविषा की मिसाल है नरेन्द्र लोहार
- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
व्यवसाय की कई धाराओं में मोबाईल बिजनैस का चलन भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण रहा है। सदियों से आंचलिक और दूरदेशीय फेरी व्यवसाय ने लोक जीवन में व्यावसायिक हितों को परिपुष्ट किया है।
आज हर क्षेत्र में तरह-तरह का व्यवसाय व्यापक फलकों पर पसरा हुआ होने के बावजूद फेरी व्यवसाय भी अपना वजूद बनाये हुए है। इसी व्यवसाय से जुड़े हुए व्यापारी नरेन्द्र लोहार पिछले बीस वर्ष से राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में फेरी व्यवसाय करते रहे हैं।
सीख लेने लायक है उनकी जिन्दगी
भीषण गर्मी की तपन हो या फिर सर्द हवाओं का जोर, अदम्य साहस और जिजीविषा ही है जो उनके जीवन के मुश्किलों भरे सफर में भी साथ नहीं छोड़ती। मेहनत-मजूरी करके कमाने-खाने का पुरुषार्थ रखने वाले लोगों के लिए नरेन्द्र की जिन्दगी सीख लेने लायक है। एक फेरी व्यवसायी हजारों किलोमीटर का सफर साल भर में तय करता हुआ अपनी जिन्दगी की गाड़ी को चला रहा है।
चलना ही जिन्दगी है...
जोधपुर के मसूरिया बाबा के पास लौहारों की बस्ती में रहने वाले पचास वर्षीय नरेन्द्र लौहार (मोबाइल नम्बर 9680403556) के लिए जैसलमेर भी उनका प्रमुख कद्रदान है जहाँ वे कितनी ही बार आ चुके हैं।
इस बार भी वे अपने तीन साथियों के साथ जैसलमेर आए हुए हैं। वे यहाँ घूम-घूम कर कैंचियाँ, पेचकस, प्लास, टैस्टर, कतरनी आदि लोहे का सामान बेचते हैं। उनका कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में उनके सामान के कद्रदान और इलाकों की अपेक्षा ज्यादा हैंं।
लोहे सी जिन्दगी लोहे के साथ
वे लोहे का सारा सामान नागौर से खरीद कर लाते हैं। उनकी पुरानी पीढ़ियां लोहे के औजार, हथियार, झारे, छलनियां और घर-गृहस्थी में काम में आने वाली सामग्री बनाते रहे हैं लेकिन अब उनके काफी परिवारों ने परंपरागत कामों के साथ ही बनी बनायी सामग्री का व्यापार शुरू कर दिया है।
बीस साल से जारी है फेरा-फेरी
इस समय जोधपुर के मसूरिया बाबा के पास बनी उनकी बस्ती मेंं डेढ़ सौ से दो सौ परिवार लौहारी का काम कर रहे हैं। नरेन्द्र बताते हैं कि व्यापार के लिए भ्रमण का उनका दौर पिछले बीस साल से इसी प्रकार जारी है। महीने में बीस दिन वे बाहर रहकर सामान बेचते हैं जबकि मुश्किल से आठ-दस दिन ही घर पर रह पाते हैं। उनकी छह में से दो लड़कियाें की शादी हो चुकी है जबकि एकमात्र पुत्र है जो उनके काम में हाथ बँटाता है।
मजूरी के बिना चैन कहाँ
इस विपन्नावस्था को कुदरत का अभिशाप मानकर चलने वाले नरेन्द्र कहते हैं कि मेहनत मजूरी ही उनके जीवन का लक्ष्य है जिसके बूते उनका लम्बा-चौड़ा परिवार पल रहा है। वे मानते हैं कि साल भर अधिकांश दिनों तक भ्रमण वाला व्यापार करना उनके लिए काफी मुश्किलों भरा जरूर है लेकिन इसका कोई विकल्प भी नहीं है।
वे मानते हैं कि महंगाई की वजह से उनके काम में परेशानियां बढ़ी हैं और आजकल जहां जाते हैं वहां रहने तथा खाने-पीने का खर्च भी खूब बढ़ गया है। जैसलमेर में वह तथा उसके संगी व्यापारी हजूरी धर्मशाला में ठहरे हुए हैं।
वह चाहते हैं कि उनके धंधे को बरकत देने के लिए सरकार की ओर से कुछ किया जाए, असंगठित क्षेत्र के लोहारों के लिए विशेष योजना शुरू की जाए तथा गरीब लोहारों के बेहतर जीवनयापन एवं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के प्रबन्ध किए जाएं तो बहुत बड़ी संख्या में लोहारों का भाग्य सँवर सकता है। आज नरेन्द्र जैसे कितने ही लोग हैं जो जी भर के मेहनत करते हुए अपने पसीने से परिवारों को सिंच रहे हैं।
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