नई दिल्ली।। सन् 1993 में मुंबई में हुए बम ब्लास्ट के केस में सुप्रीम कोर्ट ने याकूब मेमन की मौत की सजा को बरकार रखा है, जबकि बॉलिवुड ऐक्टर संजय दत्त की सजा 6 साल से घटाकर 5 साल कर दी है। इसके साथ ही साफ हो गया है कि संजय दत्त को जेल जाना होगा। आर्म्स ऐक्ट के तहत दोषी संजय दत्त 18 महीने की सजा काट चुके हैं, तो उन्हें अब 42 महीने और जेल में गुजारने होंगे। इस मामले में कुल 27 लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सभी दोषियों को चार सप्ताह के भीतर पुलिस के सामने सरेंडर करना होगा।
देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भगोड़े आरोपियों के बाद याकूब मेमन मुंबई बम ब्लास्ट के केस में सबसे बड़ा दोषी है, लिहाजा टाडा अदालत से मिली उसकी मौत की सजा बरकार रखी जाती है। टाडा अदालत से मौत की सजा पाने वाले अन्य 10 दोषियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया गया है। कुल 12 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन एक की मौत जेल में ही हो चुकी है। जस्टिस पी. सदाशिवम और जस्टिस बी. एस. चौहान की बेंच ने 10 दोषियों की सजा उम्रकैद में तब्दील करते हुए कहा कि ये लोग गरीब और अनपढ़ हैं और साजिश के मोहरे भर थे।
टाडा अदालत ने संजय दत्त को आपराधिक षड्यंत्र रचने के आरोप से बरी कर दिया था, लेकिन शस्त्र अधिनियम के तहत गैरकानूनी ढंग से 9एमएम की पिस्टल और एके-56 रखने के अपराध में छह साल के कैद की सजा सुनाई थी। संजय दत्त पहले ही 18 महीने जेल में गुजार चुके हैं और फिलहाल जमानत पर हैं। संजय ने अपनी शादी और हाल में हुए बच्चों का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट से राहत की अपील की थी, जिसे ठुकराते हुए बेंच ने कहा कि उन पर साबित हुए आरोप ऐसे नहीं हैं कि उन्हें खुला छोड़ दिया जाए। कोर्ट का फैसला सुनते ही वहां मौजूद उनकी बहन प्रिया दत्त की आंखें भर आईं।इसके अलावा उम्रकैद की सजा पा चुके 20 दोषियों में से 17 की सजा बरकार रखी गई है। एक एचआईवी पीड़ित महिला की सजा को पूरा मानते हुए बरी कर दिया गया है और एक दोषी की सजा घटाकर 10 साल कर दी गई है। उम्रकैद पाने वाले 20 दोषियों में से एक की जेल में मौत हो चुकी है।
बेंच ने फैसला सुनाने के क्रम में शुरू में ही कह दिया कि टाडा कोर्ट ने कानून सम्मत प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया है, इसलिए प्रक्रिया के आधार पर सजा को चुनौती दी गईं याचिकाएं स्वीकार नहीं होंगी। बेंच ने उन्हीं याचिकाओं पर फैसला दिया जिनमें सबूत के आधार पर चुनौती दी गई थी।
12 मार्च 1993 को मुंबई में सिलसलेवार ढंग से हुए 13 बम विस्फोटों में 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इन धमाकों की वजह से 27 करोड़ रुपये की संपत्ति भी नष्ट हुई थी। टाडा अदालत ने इस मामले में कुल 129 आरोपियों में से 100 को सजा सुनाई थी। 12 लोगों को मौत, जबकि 20 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। टाडा अदालत के फैसले के खिलाफ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जबकि सीबीआई ने आरोपियों की सजा बढ़ाने की मांग की थी।
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